रायपुर | जिस तरह तालाब में तैरने की अपेक्षा नदी में बहाव की ओर तैरना आसान होता है, उसी प्रकार जीवन प्रवाह में सतसंग ऐसा माध्यम है जिसमें भगवत चर्चा की प्रवाह में आगे बढ़ने की कोशिश आवश्यक है। यदि हम प्रयास नहीं करेंगे तो स्वतः पीछे चले जायेंगे क्योंकि जीवन एक प्रवाह है, इसलिए स्थिर रहना संभव नही है। उक्त बातें स्वामी गौतमानन्द जी महाराज, उपाध्यक्ष, रामकृष्ण मठ एवं रामकृष्ण मिशन बेलुर मठ ने विवेकानन्द विद्यापीठ के सभागार में व्यक्त किया। उन्होंने श्रीरामकृष्ण देव: जीवन और संदेश विषय पर वक्तव्य में आगे कहा कि हमारा जीवन सुख और दुख का मिश्रण है, परन्तु यह दोनों ही अनित्य है, नाम-सम्पत्ति भी अनित्य है। मानव जीवन में भगवान से साक्षात्कार और हमारे द्वारा किये गये सत्कर्म मात्र ही नित्य है।
भगवान से साक्षात्कार के लिए हमें जंगल में जाकर तपस्या की आवश्यकता नही है, भगवान हमारे हृदय में ही है। हमारे हृदय की शुद्धि, भगवान पर विश्वास, उन्हें चाहने की लालसा, सुबह-शाम निर्धारित समय पर उनका स्मरण-चिन्तन, ध्यान तथा प्रार्थना से हम भगवान का साक्षात्कार प्राप्त कर सकते हैं। भगवान श्रीरामकृष्णदेव ने सभी धर्माें की आराधना किया था, उन्होंने भगवान का साक्षात्कार भी प्राप्त किया था, इसीलिए महात्मा गाँधी कहा करते थे कि श्रीरामकृष्ण देव का जीवन हमें ईश्वर का साक्षात्कार कराता है।
स्वामी जी ने आगे बताया कि हम ईश्वर के संतान हैं, हम उनके किसी भी रूप से प्यार कर सकते हैं, केवल सत्य को ईश्वर मान लेने से हमारे बहुत से दुर्गुण स्वतः दूर हो जायेंगे। ईश्वर के निरंतर चिन्तन-मनन से जो आनन्द की प्राप्ति होती है वह बहुत उंचे दर्जे की होती है। यह आनन्द प्रयास से ही प्राप्त की जा सकती है, भौतिक वस्तुओं से कदापि नही। मानवता के कल्याण से जीवन में शान्ति और सुख आता है। उन्होंने वर्तमान शिक्षा के साथ स्कूल-कॉलेज में अध्यात्म की शिक्षा को शामिल करने की पैरवी भी किया।
उक्त कार्यक्रम विवेकानन्द मानव प्रकर्ष संस्थान द्वारा आयोजित किया गया। जिसमें संस्थान के निदेशक डॉ. ओमप्रकाश वर्मा एवं स्वामी अव्ययात्मानन्द जी, डॉ. बी. एल. सोनेकर, डॉ. समीर ठाकुर, मनोज यादव, आनन्द शुक्ला, विवेकानन्द इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन की प्राचार्या रश्मि पटेल, मनीषा चंद्रवंशी एवं बी.एड प्रशिक्षार्थी सहित नगर के गणमान्य नागरिक एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।