कल्पना शुक्ला
परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) प्रयागराज ने मां के विषय में हम सबको यह बताएं कि अपने अंदर की उस माता से जुड़ जाओ जो शक्ति के रूप में है वह दया के रुप में हैं ,वह कृपा के रूप में है, वह विद्या के रूप में है ,वह निंद्रा के रूप में है ,वह बुद्धि के रूप में है ,वह मेघा के रूप में है ,वह शक्ति के रूप में है ,सब रूप में माँ विराजमान है।
सब रूप में शक्ति विराजमान है हम सबको उस माँ से जुड़ने की आवश्यकता है और हम उसको छोड़कर के दूसरे से जुड़े हुए है इसलिए जीवन दुखी होता जा रहा है , जीवन खराब होता जा रहा है, गलत सोच रहे है, इसलिए उस शक्ति से जुड़ जाए, जीवन आनंदमय हो जाएगा परमात्मा तत्व से जब जुड़ना हो तो आंखें बंद करनी पड़ती है लेकिन संसार में चलना हो तो आंखें खोल कर चलनी पड़ती है, आंखें सब की खुली रहनी चाहिए सभी सद्गुणों की आंखें खुली रहने चाहिए हम लोगों की सद्गुण की आंख बंद रहती है और दुर्गुण की आंख खुली रहती है क्रोध ,लोभ ,ईर्ष्या,आडम्बर,सबकी आंख खुली रहती है भ्रम की आंख खुली रहती है, मोह की आंख खुली रहती है, और सद्गुण की आंख बंद रहती है और जब सद्गुण की आंख बंद रहेगी तो अपने अंदर की शक्ति से तालमेल नहीं रह पाएगा, एनर्जी शिथिल पड़ी रहेगी और जब ऊर्जा शिथिल पड़ी रहेगी तो श्रद्धा विश्वास कुछ भी नहीं रह पाएगा इसलिए ऋषि-मुनियों ने कहा कि पहले अपने अंदर तथा विश्वास को जागृत करो।
मार्कंडेय ऋषि ने सब रूप में माता को प्रणाम किया । निंद्रा रूपेण संस्थिता, विद्या रूपेण संस्थिता , क्षमा रूपेण संस्थिता,तृष्णा रूपेण संस्थिता, मारकंडे जी ने सब रूप में माँ को प्रणाम किया।
माँ हर जगह हर किसी में है हर जगह है , आत्मा… अंत में माँ परमात्मा ..महात्मा… धर्मात्मा… पुण्यात्मा …. माँ के विषय में क्या कहना है , गुरुजी ने कहा कि माँ तो सबकी एक होती है इसमें मुझको क्या कहना है , यदि कहना है यदि कहना है तो यह कहना है कि मेरी मां का क्या कहना है…
मेरी मां का क्या कहना है, मां को हर रूप में याद करना चाहिए जब -जब हम लोग अपनी मां से जुड़ते हैं जो हमारे अंदर में शक्ति के रूप में विराजमान है तब हमारे जीवन का उद्धार होता है तब जाकर मोह और भृम को दूर कर सकते हैं मोह और भृम को दूर करने के लिए शक्ति की आवश्यकता होती है जब तक हम जागृत नहीं होंगे तो हमारा मोह नहीं मिटेगा, इसलिए तुलसीदास ने पहले माँ को प्रणाम किया,भवानी शंकरौ वंदे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ.. आदिशक्ति और गणेश जी को प्रणाम करते हैं ।
वंदे वाणी विनायकौ गणेश जी को प्रणाम करने के बाद श्रद्धा विश्वास रूप में माता की आराधना करते है मां के सामने हमारा मुंह खुल जाता है, अपने सब बात हम आसानी से कह सकते हैं जिसके सामने जाकर हमारा मुंह खुल जाए और सरलता से अपनी हर बात कह दे वह माँ होती है ।