अध्यात्म / सुविचार
संकर्षण शरण (गुरु जी),प्रयागराज : जय माँ,
क्षमा शब्द कह देने से न तो कोई क्षमा माँग पाता है ,और न तो कोई क्षमा कर पाता है। आजकल यह शब्द चालाकी और अपनी गलतियों को नजरंदाज करने का सूचना मात्र बन कर रह गया है। जो क्षमा याचना करता हुआ दीखता है वह फिर से वही करता है जिसके लिये क्षमा मांगी थी।
सिर्फ दिखावा और छल बन कर रह गया है। और इसलिये क्षमा करने वाला भी बात को नजरअंदाज भर कर देता है,किन्तु क्षमा का भाव उसके अंदर नहीं आ पाता। जो परमात्मा कर्मफल के रूप में देर-सबेर फल दे ही देता है।
अतः क्षमा जब माँग ही लिया तो वह गलती दोबारा न दुहराओ,जो तुम्हे एहसास हो गया हो,अन्यथा भुगतना तुम्हे ही पड़ेगा,आज नही तो कल। अपने किये गये अपराध,लापरवाही, कर्तव्यहीनता को समझो-बूझो-जानो और उसे फिर से सही सिद्ध करके दिखाओ तो वास्तविक क्षमा दान मिल सकता है। सिर्फ शब्दों का सहारा और तर्क देकर नहीं ,अपितु कार्य करके सिद्ध करो। तुम्हारा मूल्यांकन कार्यों से होगा ,शब्दों से नहीं।
शिक्षा :– सबसे मजबूत शब्द है क्षमा और तुम सबसे कमजोर जगह प्रयोग करके उसकी मर्यादा का उलंघन कर देते हो। स्वयं को धिक्कारो ,झकझोरो कि तुमने क्या किया है,और क्या कर रहे हो। सुधार लो स्वयं को। अपनी लापरवाही और कर्तव्यहीनता को ढंको नहीं बल्कि कर्तव्यपरायणता दिखलाओ। आगे बढ़ जाओगे।