छत्रपति शिवाजी महाराज 392वीं जयंती: शिवाजी के नाम से डरते थे मुगल, जानें धर्मनिरपेक्ष मराठा साम्राज्य के सबसे महान योद्धा के बारे में

छत्रपति शिवाजी महाराज 392वीं जयंती: मराठा साम्राज्य के सबसे महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की 392वीं जयंती है। देशभर में राष्ट्र के महान मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती धूमधाम से मनाई जाती है। इतिहास इस बात का गवाह है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का महाराष्ट्र न तो दिल्ली की गद्दी के आगे झुकता था और न ही अहंकारी अंग्रेजों के आगे। 19 फरवरी 1630 को पुणे के शिवनेरी दुर्ग में जीजाबाई और शाहजी भोंसले के घर जन्मे शिवाजी राजे भोंसले या शिवाजी को मराठा साम्राज्य का सबसे महान योद्धा राजा माना जाता है। हर साल 19 फरवरी को मराठा राजा की जयंती को चिह्नित करने के लिए महाराष्ट्र और देश के अन्य हिस्सों में “शिव जयंती” बहुत उत्साह के साथ मनाई जाती है।

आज उनकी जयंती के मौके पर हम आपको उनसे जुड़ी ऐसी ही कुछ खास बातें बताने जा रहे हैं. यूं तो भारतीय सरजमीं के इतिहास में कई वीर सपूतों ने जन्म लिया और देश की आजादी के लिए कई बलिदान दिए. लेकिन इनमें मुगलों के खिलाफ युद्ध का बिगुल बजाने वाले शिवाजी की गौरव गाथा का अपना ही एक विशेष स्थान है.

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शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था. हालांकि उनके जन्म को लेकर इतिहासकारों में हमेशा से ही मतभेद रहा है. कुछ इतिहासकार उनका जन्म 1630 में मानते हैं तो कुछ का मानना है कि उनका जन्म 1627 में हुआ था. शिवाजी के पिता शाहजी भोसले अहमदनगर सलतनत में सेना में सेनापति थे. उनकी माता जीजाबाई यूं तो स्वयं भी एक योद्धा थी लेकिन उनकी धार्मिक ग्रंथों में भी खासा रूचि थी. उनकी इस धार्मिक रुचि के चलते उन्होंने कम उम्र में ही शिवाजी को महाभारत से लेकर रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों की शिक्षा दी थी. बचपन से ही शिवाजी का पालन-पोषण धार्मिक ग्रंथ सुनते सुनते हुआ, इसी के चलते उनके अंदर बचपन में ही शासक वर्ग की क्रूर नीतियों के खिलाफ लड़ने की ज्वाला जाग गई थी.

 

छत्रपति शिवाजी क्यों प्रसिद्ध हैं?

शिवाजी महाराज का नाम शिवई के नाम पर रखा गया था. मराठा राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज को उनके प्रशासन, साहस और युद्ध कौशल के लिए जाना जाता है. वह अपनी मराठा सेना के माध्यम से गुरिल्ला लड़ने की तकनीक पेश करने वाले पहले व्यक्ति थे. अपने बढ़ते वर्षों के दौरान मराठा राज्य में गिरावट के साथ, उन्होंने मुगल शासन और दक्कन सल्तनत को सफलतापूर्वक एक समृद्ध मराठा साम्राज्य खोजने के लिए चुनौती दी. औरंगजेब के साथ उनकी लड़ाई जगजाहिर थी. औरंगजेब कभी भी साहसी नायक को अपने अधीन नहीं कर पाएं

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शिवाजी ने शुरु की थी गोरिल्ला वॉर की नीति

शिवाजी को भारत के एक महान योद्धा और कुशल रणनीतिकार के रूप में जाना जाता है. शिवाजी ने गोरिल्ला वॉर की एक नई शैली विकसित की थी. शिवाजी ने अपने राज काज में फारसी की जगह मराठी और संस्कृत को अधिक प्राथमिकता दी थी. उन्होंने कई सालों तक मुगल शासक औरंगजेब से लोहा लिया था.

छत्रपति शिवाजी की मुगलों से पहली मुठभेड़ 1656-57 में हुई थी. उन्होंने मुगलों की ढेर सारी संपत्ति और सैकड़ों घोड़ों पर अपना कब्जा जमा लिया था. कहा जाता है 1680 में कुछ बीमारी की वजह से अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में छत्रपति शिवाजी की मृत्यु हो गई थी. इसके बाद उनके बेटे संभाजी ने राज्य की कमान संभाली थी.

धर्मनिरपेक्ष राजा थे छत्रपति शिवाजी

जहां एक ओर शिवाजी अपनी युद्धनिति से मुगलों की नाक में दम कर रखा था वहीं वो अपनी प्रजा का भी पूरा ध्यान रखते थे. शिवाजी एक धर्मनिरपेक्ष राजा थे उनके दरबार और सेना में हर जाति और धर्म के लोगों को उनकी काबलियत के हिसाब से पद और सम्मान प्राप्त था. सेना और प्रशासनिक सेवा में उन्होंने कई मुसलमानों को अहम जिम्मेदारी दे रखी थी. इब्राहिम खान और दौलत खान उनकी नौसेना में अहम पदों पर थे वहीं सिद्दी इब्राहिम को उन्होने तोपखाना का मुखिया नियुक्त किया था.