गुरु वाणी,
कथा के माध्यम से पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) यह बताए कि आज राम राज्य चाहता तो हर कोई है लेकिन सबके अंदर रावण विद्यमान है सिर्फ पुतला जला लेने से रावण समाप्त नहीं होता , अपने अंदर की विकार काम ,क्रोध ,लोभ, मोह, अहंकार सब को समाप्त करना होगा। अपने अंदर के रावण का दहन करना होगा तब वास्तव में देश में राम राज्य आएगा । हम बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में रावण का पुतला जलाते हैं लेकिन क्या हमारे अंदर के विकार नष्ट होती है ? क्या हम अपने अंदर के रावण को मार पाते हैं ? सभी को अपने अंदर की कुप्रवृत्तियोंयों को समाप्त करने की आवश्यकता है।
चले राम के आदर्शों पर अब इतिहास बदलना होगा: परमात्मा हमें हर समय हर रूप में कुछ न कुछ सिखाते हैं , मानव रूप में इस धरती पर अवतरित होकर जीवन कैसे जिया जाता है ? पुत्र का, पति का ,मित्र का, राजा का धर्म, सब कुछ सिखाए, आज हमें उसी आदर्श को अपनाना है क्योंकि यह राघव का देश है, हम सब राम के आदर्श को अपनाते हैं । जंगल में रहकर कैसे संघर्ष किए,पति धर्म कैसे निभाए, साथ में हर पल गुरु चरणों का सहारा लेना गुरु के आज्ञा का पालन करना, पिता की आज्ञा का पालन करना, मां को सम्मान देना और सब से मित्रता का भाव रखना, सभी जीवो के प्रति प्रेम करना वानर, भालू यहां तक कि स्वयं विभीषण को भी मित्र के रुप में स्वीकार किए हमेशा शरणागत वत्सल रहे । छोटे-बड़े, ऊंच-नीच ,गरीबी -अमीरी, उनके राज्य में यह सब कभी नहीं रहा , आज भी सब सुबह से राम- राम ही बोलते हैं सबके वाणी पर एक ही नाम है राम ,राम ।अपने चरित्र को इसी तरह रखना कि सदियों तक सबके वाणी में नाम रहे, सब आदर्श समझे,हमेशा स्मरण करें। जो स्वयं प्रकृति के समस्त गुणों के पार है और जिनके शरण में आने से मनुष्य भवसागर से पार हो जाते हैं, वह भी केवट से गंगा पार कराने को कहते हैं यह सब क्या है ? क्या लीला है? भगवान हमेशा छोटा बनकर कार्य करने को कहते हैं जब कोई बड़ा कार्य करना हो तो स्वयं को छोटा बनना पड़ता है ,नम्रता लाना पड़ता है स्वयं में , हम सबको श्री राम के आदर्शों का पालन करने की आवश्यकता है । शत्रु भी अंतिम समय में अपनी वाणी में राम, राम ही बोलते हैं रावण अंत समय मे श्रीराम ही बोलते हैं क्यों? क्योंकि भगवान का नाम ही सत्य है।
हमेशा धर्म की जय होते आई है और होती रहेगी
महाभारत में भी भगवान श्रीकृष्ण ने यही कहा – यदा- यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…. जब-जब अधर्म की वृद्धि होती है धर्म की हानि होती है भगवान धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए धरती में अवतरित होते हैं, जो जीवन और मृत्यु दोनों को सार्थक बना देते हैं मानव जीवन को सार्थक बनाते हैं ।
आज मनुष्य मोह से ग्रसित है चाहते तो राम राज्य है लेकिन सभी धृतराष्ट्र और दुर्योधन का कार्य करते है, रामचरितमानस में रावण को भी मोह का प्रतीक बताया गया , रावण मोह और अहंकार के कारण पूरे लंका को तहस-नहस कर डाले, पूरी लंका नगरी को जाना पड़ा , सब को बर्बाद होना पड़ा ,यह मोह सकल व्याधि की जड़ है।
मोह सकल व्याधिन कर मुला…
सभी रोगों की जड़ मोह ही होती है और यह सब के पास होती है लेकिन मोह किसके प्रति होना चाहिए यह बताया गया, यदि मोह परमात्मा के प्रति हो ,धर्म के प्रति हो, सत्य के प्रति हो जैसे अर्जुन ने किया, तब निश्चित ही जीवन के महाभारत से विजय मिलती है , बुराई पर विजय ही मिलती है। सभी जगह जय जयकार ही होती है ।अपने अंदर की मोह को समाप्त करना, राम जैसे त्याग और भारत जैसे प्रेम की आवश्यकता है। तब राम राज्य संभव है। भगवान के साथ स्वयं लक्ष्मण अयोध्या के राज्य सुख को त्यागकर राम के साथ होते हैं ,माता सीता जो सभी सुखों को त्याग कर पति के पीछे समर्पित होती है ,भरत और शत्रुघ्न भाई की खुशी के लिए सुख का त्याग करते हैं सब में उसी तरह प्रेम की आवश्यकता है ।
भगवान पहले सब जगह को प्रवृत्तियों का अंत करते हैं फिर से आसन पर बैठते हैं और सब जगह धर्म की स्थापना करते है रामराज्य आता है ।
राम और रावण दोनों हमारे अंदर ही है अयोध्या भी हमारे अंदर है और लंका भी हमारे अंदर ही है हम किसको स्वीकार करते हैं यह जरूरी है , क्या हम राम के आदर्श को स्वीकार करते हैं ? या रावण की बुराई को स्वीकार करते हैं , जो सब कुछ संभाल लेना चाहता है किसी को कुछ देना नहीं चाहता ,मोह से ग्रसित है, मोह और अहंकार जो कभी झुकना नही चाहता, भले सब कुछ नष्ट हो जाए लेकिन अपनी गलती कभी स्वीकार ना करना , क्या हम इसी मोह को स्वीकार करते है, जब हम राम के आदर्श को स्वीकार करते हैं उनके अनुसार चलते हैं हम अयोध्या में होते हैं हम पूरे समय आनंद में होते हैं रामराज्य रहती है ।
रावण के पास सब कुछ था , पंडित थे, भगवान शिव के शिष्य थे, और स्वयं सोने की लंका मे रहते थे,यश मान – प्रतिष्ठा सब कुछ था, लेकिन बुद्धि उस तरह की नहीं थी । जब बुद्धि दूषित हो जाती है तो सोने की लंका को जल जाना पड़ता है, जब अहंकार आ जाता है तब सब कुछ समाप्त हो जाता है ,भगवान यह सब कुछ लीला के रूप में दिखाए ।किस तरह मनुष्य स्वयं को बर्बाद कर डालता है , किसी और को बर्बाद करने की आवश्यकता नहीं होती है, अपने दुख का और अपने विनाश का कारण स्वयं मनुष्य ही होता है। जब लोभ,अहंकार जैसे विकार आ जाता है ,मनुष्य बर्बाद हो जाता है ,इसीलिए पहले कुप्रवृत्तियों को समाप्त करना पड़ता है तब रामराज्य सभी तरफ होता है युगो -युगो तक रामराज्य रहता है, और सभी कोई रावण राज्य नहीं चाहते हैं रामराज ही चाहते हैं, सबको स्वयं में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है निश्चित ही रामराज्य रहेगा । सभी शिष्य,शिष्याओं को एवं समस्त प्रदेश वासियों को गुरूजी विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाये दिए।