भाई बहन के अटूट प्रेम का त्योहार है रक्षाबंधन। एक धागे के बदले में भाई बहन के हर दुख दर्द में, बहन की रक्षा में हमेशा साथ होने का वचन देता है। बहनें अपने भाई को राखी बांधकर उसकी लंबी आयु की कामना करती हैं। श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाए जाने वाले इस त्योहार को श्रावणी या सलूनो भी कहते हैं।
हिंदू धर्म में रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा वैदिक काल से रही है। इस त्योहार से कई धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। इस पावन त्योहार पर अमरनाथ यात्रा संपन्न होती है। माना जाता है कि इसी दिन हिमानी शिवलिंग भी आकार ग्रहण करता है। रक्षाबंधन को गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है। इस पूर्णिमा को श्रावण पूर्णिमा भी कहते हैं। देव और असुरों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब देवताओं की पराजय को निकट देख देवेंद्र इंद्र ऋषि बृहस्पति के पास गए। उनके सुझाव पर इंद्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था, जिसके फलस्वरूप इंद्र विजयी हुए। कहते हैं कि तब से पत्नियां अपने पति की कलाई पर युद्ध में उनकी जीत के लिए धागा बांधने लगी। एक अन्य मान्यता के अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज महाबली से तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया तब राजा महाबली ने भी भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान रसातल में राजा महाबली की सेवा में रहने लगे। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में है। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई तब द्रौपदी ने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बांध दिया। चीरहरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने इस बंधन का उपकार चुकाया। यह प्रसंग भी रक्षा बंधन के महत्व को बताता है।