रक्षाबंधन – प्रेम का बंधन ” श्री श्री रविशंकर

श्री श्री रविशंकर

रक्षाबंधन श्रावण महीने ( अगस्त )में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।इस दिन भाई और बहन अपने बंधन को और भी अधिक दृढ़ करते हैं।बहनें अपने भाई की कलाई पर पवित्र धागा बांधती हैं।यह धागा,जो बहन के प्रेम और उदात्त भावों से ओतप्रोत होता है,राखी कहलाता है। भाई राखी बांधने के बदले में बहनों को उपहार एवम् उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं। राखी का त्यौहार विभिन्न रूपों में मनाया जाता है और भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे राखड़ी,बलेवा या सलूनो भी कहा जाता है। भारतीय पौराणिक कथाओं में राखी बांधने की परंपरा को लेकर कई कहानियां हैं। RAKHI 3

एक किंवदंती के अनुसार,राक्षसों का राजा,बाली ,भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था।भगवान विष्णु ने राजा बाली के राज्य की रक्षा करने के लिए,स्वयं अपने निवास स्थान बैकुंठ को छोड़ दिया था।देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ अपने निवास स्थान पर रहना चाहती थीं। वह ब्राह्मण स्त्री का वेश धारण करके बाली के पास तब तक के लिए शरण मांगने गईं,जब तक कि उनका पति घर वापस ना आ जाए। श्रावण पूर्णिमा उत्सव के दौरान,देवी लक्ष्मी ने राजा बाली को पवित्र धागा बांधा।उन्होंने ऐसा क्यों किया,यह पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि वह कौन हैं और वहां क्योंआई हैं। राजा उनके सदभाव और उनके उद्देश्य को जानकर भाव विभोर हो गया और उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वह देवी लक्ष्मी के पास वापस अपने निवास स्थान लौट जाएं।उसने अपने प्रभु और उनकी निष्ठावान पत्नी के लिए सबकुछ त्याग दिया। इसलिए,इस उत्सव को बलेवा भी कहा जाता है।

यह राजा बाली की अपने प्रभु के प्रति भक्ति है।ऐसा कहा जाता है कि तब से ही श्रावण पूर्णिमा के दिन पवित्र धागा बांधने या रक्षाबंधन के लिए बहनों को आमंत्रित करने की परंपरा आरंभ हो गई। तीन प्रकार के बंधन होते हैं : सात्विक,राजसिक और तामसिक।सात्विक बंधन आपको ज्ञान,प्रसन्नता एवं आनंद से बांधता है।राजसिक बंधन आपको सभी प्रकार की इच्छाओं और तृष्णाओं से बांधता है।तामसिक बंधन में कोई आनंद नहीं होता है,लेकिन फिर भी आप एक प्रकार का जुड़ाव महसूस करते हैं।

रक्षाबंधन को सात्विक बंधन कहा जाता है,जिसमें आप स्वयं को प्रत्येक व्यक्ति,ज्ञान और प्रेम के साथ बांधते हैं। रक्षाबंधन के दिन,सूर्योदय के साथ ही उत्सव आरंभ हो जाता है।  ईश्वर का आवाहन करने के पश्चात,बहन भाई की आरती करती है,उसके माथे पर टीका और चावल लगाती है और फिर मंत्रों का उच्चारण करते हुए,उसकी कलाई पर राखी बांधती है। फिर, वह भाई को मिठाई और उपहार देती है।भाई उसके द्वारा दी गई चीज़ों को स्वीकार करता है और उसे वचन देता है कि वह उसका ध्यान रखेगा,आवश्यकता पड़ने पर उसके साथ खड़ा रहेगा और फिर वह अपनी बहन को कुछ प्रतीकात्मक उपहार देता है।रक्षाबंधन का कार्यक्रम यहां समाप्त हो जाता है और फिर उत्सव का आरंभ होता है।परिवार का इकट्ठा होना ,अपने आप में ही उत्सव मनाने का एक कारण है। यदि रक्षाबंधन के सही भाव को समझा जाए ,तो इसमें प्रेम,शांति और रक्षा की भावना है। यद्यपि,आज इसे भाई और बहन का त्यौहार माना जाता है,लेकिन यह सदैव से ऐसा नहीं था।इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं,जहां राखी को रक्षा का प्रतीक माना गया है।पत्नी,पुत्री या मां भी राखी बांध सकती है।ऋषि उन लोगों को राखी बांधते थे,जो उनसे आशीर्वाद लेने आते थे।संत स्वयं को पवित्र धागा बांधते थे,ताकि अमंगल से उनकी रक्षा हो।यह ” पाप तोड़क,पुण्य प्रदायक पर्व ” है या ऐसा दिन है,जब वरदान की प्राप्ति होती है और सभी पापों का अंत होता है। ऐसा शास्त्रों में लिखा गया है।