पाई-पाई को मोहताज हुआ तालिबान, चीन से मांगी आर्थिक मदद

काबुल/बीजिंग
क्या तालिबान ने ड्रैगन को वो मौका दे दिया है, जिसका इंतजार चीन पिछले कई सालों से कर रहा था? आज ये सवाल अफगानिस्तान समेत पूरी दुनिया में इसलिए पूछे जा रहे हैं, क्योंकि तालिबान ने बंदूक के बल पर काबुल पर तो कब्जा कर लिया, लेकिन अफगानिस्तान में सरकार चलाने के लिए उसके पास पैसा नहीं है। तालिबान पाई-पाई को मोहताज हो चुका है और उसने जिन शर्तों के साथ चीन की तरफ हाथ बढ़ाया है, उससे साफ जाहिर हो गया है कि आने वाले वक्त में ड्रैगन अफगानिस्तान का खून चूस लेगा।

अमेरिका ने अफगानिस्तान के बैंक खातों को सील कर दिया है, जिसके बाद तालिबान के पास सरकार चलाने के लिए पैसा ही नहीं बचा है और आलम ये है कि तालिबानी आतंकी माथा पकड़ कर बैठे हैं। तालिबान ने पाकिस्तान के सामने पैसों की डिमांड रखी, लेकिन कंगाल पाकिस्तान के पास तालिबान की मदद के लिए पैसे कहां हैं, तालिबान ने सरकारी कर्मचारियों को ऑफिस आने के लिए कहा है, इसके साथ ही सरकार चलाने के सौ खर्च अलग होते हैं, ऐसे में पाकिस्तान ने तालिबान के सामने चीन की दलाली करनी शुरू कर दी और इस वक्त सिर्फ चीन ही है, जिसने तालिबान को मदद करने की बात सार्वजनिक तौर पर की है। लिहाजा, तालिबान अब चीन की शरण में पहुंच गया है और रिपोर्ट के मुताबिक चीन भी तालिबान की मदद करने के लिए तैयार हो गया है।

चीन से तालिबान ने मांगी मदद
तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने चीन की सरकारी मीडिया को दिए इंटरव्यू मं कहा है कि चीन ने अफगानिस्तान में शांति सुलह को बढ़ावा देने में रचनात्मक भूमिका निभाई है और देश के पुनर्निर्माण में योगदान देने के लिए उसका स्वागत है।'' चीन की मीडिया से बात करते हुए तालिबानी प्रवक्ता ने कहा कि '' चीन एक बहुत बड़ी शक्ति है और अफगानिस्तान में चीन का खुले दिल से स्वागत है और तालिबान का मानना है कि अफगानिस्तान के पुननिर्माण में चीन बहुत बड़ी भूमिका निभा सकता है।'' तालिबान के प्रवक्ता ने कहा कि ''तालिबान को उम्मीद है कि चीन अफगानिस्तान में निवेश करेगा, जिससे अफगानिस्तान के लोगों की आय बढ़ेगी और अमेरिकी प्रतिबंधों का असर नहीं पड़ेगा''

तालिबान ने सीधे तौर पर चीन को अफगानिस्तान बुला लिया है और पिछले महीने पहले चीन और तालिबान के बीच डील भी हो चुकी है, जिसकी वजह से जब तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा कर रहा था, उस वक्त चीन पूरी तरह से खामोश था। इसके साथ ही चीन की सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स कह चुका है कि तालिबान को मान्यता देने में चीन को कोई दिक्कत नहीं है। इसके साथ ही विशेषज्ञों का मानना है कि तालिबान के धार्मिक मामलों में नहीं पड़कर चीन का एकमात्र उद्येश्य अफगानिस्तान से दुर्लभ धातुओं का खनन करना है। अमेरिका ने 2005 में ही अनुमान लगाया था कि अफगानिस्तान में एक ट्रिलियन से ज्यादा रुपयों की दुर्लभ धातुएं मौजूद हैं और चीन इसी को हड़पने की फिराक में है। लिहाजा जब पिछले महीने तालिबान के प्रतिनिधियों और चीन के विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात हुई थी तो चीन ने तालिबान को फ्री हैंड दे दिया था, और सिर्फ एक मांग रखी थी कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल चीन के खिलाफ नहीं होने पाए।

अफगानिस्तान में क्या चाहता है चीन?
तालिबान से पहले ही चीन शतरंत की बिसात पर दोस्ती की चाल चल चुका है। चीन ने तालिबान को अफगानिस्तान में पुननिर्माण करने का लालच दिया है। तालिबान जानता है कि वो बंदूक के दम पर सत्ता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रख सकता है, लिहाजा वो चाहेगा कि अफगानिस्तान में विकास के प्रोजेक्ट लॉंच कर वो लोगों के दिलों में जगह बनाए और चीन से बड़ा साथी उसे कोई और मिल नहीं सकता है। और चीन इसी मौके की ताक में है। दरअसल, अमेरिकन जियोलॉजिकल सोसायटी के सर्वेक्षण ने अफगानिस्तान के अंदर एक सर्वेक्षण शुरू किया था। 2006 में अमेरिकी शोधकर्ताओं ने चुंबकीय गुरुत्वाकर्षण और हाइपरस्पेक्ट्रल सर्वेक्षणों के लिए हवाई मिशन भी किए थे। जिसमें पता चला था कि अफगानिस्तान में अकूत मात्रा में लोहा, तांबा, कोबाल्ट, सोना के अलावा औद्योगिक रूप से महत्वपूर्ण लिथियम और नाइओबियम के विशालकाय खनिज मौजूद है। ये ऐसे खनिज हैं, जो रातों रात किसी भी देश की तकदीर को हमेशा के लिए बदल सकते हैं।