पटना
बिहार की मुख्य राजनीतिक दल जेडीयू ने संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है. पार्टी के भीतर ललन सिंह सीएम नीतीश कुमार के सबसे भरोसेमंद माने नेताओं में से एक हैं. वहीं बिहार के सियासी गलियारों में ललन सिंह की पहचान एक पॉलिटिकिल स्ट्राइक करने वाले नेता के रूप में है, जो ऐन मौके पर दूसरे दल को कमजोर करने की रणनीति को बखूबी अंजाम देते हैं.
1974 के छात्र आंदोलन की उपज रहे ललन सिंह दिसंबर 2005 में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष बनाये गये थे. वे फरवरी 2010 तक जदयू के प्रदेश अध्यक्ष रहे. पहली बार 2000 में राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए. वे 2004 से 2009 तक बेगूसराय और 2009 से 2014 तक मुंगेर लोकसभा के सांसद थे. 2014 में लोकसभा चुनाव में हार के बाद उन्हें राज्यपाल कोटा से जून 2014 में बिहार विधान परिषद भेजा गया था. उनका कार्यकाल जून 2019 तक था.
वहीं, जीतन राम मांझी के कैबिनेट में उन्हें पथ निर्माण मंत्री की जिम्मेदारी दी गयी थी. वे इस पद पर फरवरी 2015 तक रहे. 2015 में दोबारा महागठबंधन सरकार बनने के बाद उन्हें नीतीश कैबिनेट में जगह मिली थी. वे जल संसाधन सह योजना एवं विकास मंत्री बनाये गये. इस पद से त्यागपत्र देकर उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव मुंगेर से लड़ा और विजयी हुये. इस समय लोकसभा में पार्टी संसदीय दल के नेता हैं.
चुनाव से पहले राजद और बााद में लोजपा में टूट – बता दें कि बिहार विधानसभा चुनाव से ऐन पहले राजद में बड़ी टूट हुई थी. पार्टी के कई दिग्गज नेता जेडीयू में शामिल हो गए थे, इनमें पांच विधान परिषद के सदस्य भी शामिल थे. चुनाव की तैयारी में जुटी राजद के लिए यह टूट पॉलिटिकल स्ट्राइक साबित हुआ. बताया जाता है कि राजद के विधान परिषदों को जेडीयू में शामिल कराने के पीछे ललन सिंह ने महत्ती भूमिका निभाई थी. वहीं पिछले दिनों लोजपा में हुई टूट के पीछे ललन सिंह का ही हाथ बताया गया था. हालांकि जेडीयू ने इस आरोप का सिरे से खारिज कर दिया था.
सामने है ये चुनौती- ललन सिंह के अध्यक्ष बनने के साथ ही सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के सवर्ण वोटरों को साधने की है. वहीं जेडीयू को बिहार में फिर से नंबर वन पार्टी बनाने की चुनौती है. पिछले चुनाव में जेडीयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई और पार्टी के पास वर्तमान में 45 विधायक हैं.