नई दिल्ली
प्रत्येक हिंदू वर्ष में चार नवरात्रियां आती हैं, जिनमें से दो प्रकट और दो गुप्त होती हैं। चैत्र और आश्विन माह में क्रमशः वासंतिक और शारदीय प्रकट नवरात्रि आती हैं तथा माघ और आषाढ़ माह में गुप्त नवरात्रि आती हैं। इस बार आषाढ़ी गुप्त नवरात्रि 11 जुलाई से 18 जुलाई 2021 तक रहेगी।
गुप्त नवरात्रियों का महत्व प्रकट नवरात्रियों से भी अधिक होता है। इस नवरात्रि में विभिन्न् प्रकार की मंत्र सिद्धियां प्राप्त की जाती हैं। दस महाविद्याओं की साधना करके उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। मान्यता है कि सामान्य गृहस्थ साधक भी यदि योग्य गुरु के मार्गदर्शन में गुप्त नवरात्रि के दौरान दस महाविद्याओं की साधना करें तो वह समस्त प्रकार के सांसारिक सुख, ऐश्वर्यशाली जीवन, मान-सम्मान, पद, प्रतिष्ठा, भूमि, संपत्ति हासिल कर सकता है। ये दस महाविद्याएं हैं काली, तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्न्मस्ता, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला।
पहला- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला)
दूसरा- उग्र कोटि (काली, छिन्न्मस्ता, धूमावती, बगलामुखी)
तीसरा- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी)।
साधक अपने गुरु की आज्ञा और मार्गदर्शन में गुप्त नवरात्रि के दौरान देवी के इन स्वरूपों की साधना और इनके मंत्र जप कर सकता है।
सामान्य नवरात्रि में आमतौर पर सात्विक और तांत्रिक दोनों प्रकार की पूजा की जाती है। वहीं गुप्त नवरात्रि में ज्यादातर तांत्रिक पूजा की जाती है।
गुप्त नवरात्रि में साधना को गोपनीय रखा जाता है। साधक को केवल अपने गुरु से ही साधना की चर्चा करने की अनुमति होती है।
माना जाता है कि गुप्त नवरात्रि में पूजा और मनोकामना जितनी ज्यादा गोपनीय होगी, सफलता उतनी ही ज्यादा मिलेगी।
तांत्रिकों के लिए गुप्त नवरात्रि विशेष महत्व की होती है, लेकिन यदि कोई गृहस्थ व्यक्ति गुरु की आज्ञा और मार्गदर्शन में साधनाएं करें तो उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए सात्विक जीवन जीना होता है।
क्या किया जाता है गुप्त नवरात्रि में?
गुप्त नवरात्रि में भी कलश की स्थापना की जा सकती है, लेकिन यह विशेष साधना के लिए की जाती है। सामान्य साधक के लिए घट स्थापना आवश्यक नहीं।
अगर कलश की स्थापना की है तो दोनों समय सुबह-शाम में देवी के मंत्र जाप, चालीसा या सप्तशती का पाठ करना चाहिए।
दोनों ही समय आरती और देवी को भोग लगाना आवश्यक है। इसमें देवी की प्रकृति के अनुसार भोग लगाया जाता है। सामान्य भोग लौंग और बताशा होता है।
मां को प्रतिदिन लाल पुष्प् अवश्य अर्पित करें।
पूरे नौ दिन अपना खान पान और आहार सात्विक रखें।