नई दिल्ली
भगवान शिव की पूजा करने से इंसान के सारे कष्टों का अंत हो जाता है। वो तो भोले-भंडारी हैं, जिनकी कृपा मात्र से भक्त को वो सब हासिल हो जाता है जिसकी वो कल्पना करता है। शिव की कृपा से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे जीवन के चारों पुरुषार्थ प्राप्त किए जा सकते हैं और इसी वजह से प्रदोष व्रत की मान्यता है। एक महीने में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है। एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 7 जुलाई को है और इस दिन बुधवार है, इस कारण इस दिन पड़ने वाले व्रत को 'बुध प्रदोष व्रत' कहा जा रहा है।
प्रदोष व्रत प्रारंभ – 01:02 am जुलाई 07
प्रदोष व्रत समाप्त – 03:20 am जुलाई 08
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प्रदोष व्रत सुबह से रखा जाता है।
पूजा प्रदोष व्रत की पूजा गोधूलि बेला में होती है।
पूजा करने से पहले सारे व्रती पुनः स्नान करे और स्वच्छ श्वेत वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थल को पोछा लगाकर शुद्ध कर ले।
इसके बाद पांच रंगों से रंगोली बनाकर मंडप तैयार करें।
कलश अथवा लोटे में शुद्ध जल भर लें। कुश के आसन पर बैठ कर शिवजी की पूजा विधि-विधान से करें। ऊं नमः शिवाय मंत्र बोलते हुए शिवजी को जल अर्पित करें।
इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर शिवजी का ध्यान करें।
ध्यान के बाद, प्रदोष व्रत की कथा सुने अथवा पढ़ें।
कथा समाप्ति के बाद हवन सामग्री मिलाकर 11 या 21 या 108 बार ऊं ह्रीं क्लीं नमः शिवाय स्वाहा मंत्र से आहुति दें।
शिवजी की आरती करें, प्रसाद बांटे।
इन खास मंत्रों का करें जाप
हेल्थ के लिए: ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः, स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः
सफलता के लिए: ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः. शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च
कलह को दूर करने के लिए: छ मंत्र ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च, नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च