जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ, तूफ़ान है मगर कस्ती छोड़कर – अमृतांशु शुक्ला

जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ

तूफ़ान है मगर कस्ती छोड़कर,
जाऊं भी तो कहा जाऊं।

अब तू बता दे मौला अपनी हस्ती छोड़कर,
जाऊं भी तो कहाँ जाऊं।

हर तरफ हवाओं में जहर सा घुल गया है,
ऐसे समय मे अपनी बस्ती छोड़कर,
जाऊं भी तो कहाँ जाऊं।

लाख हो ये संकट की घड़ी मगर,
मैं अपने जीवन की मस्ती छोड़कर,
जाऊं भी तो कहाँ जाऊं।।

अमृतांशु शुक्ला
ग्राम – टेमरी, जिला – बेमेतरा