रूस ने भारत को दिया सू-57 का ऑफर, मेक इन इंडिया को मिलेगा नया बल

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संपादकीय |  रूस और भारत के बीच रक्षा सहयोग का रिश्ता दशकों पुराना है, जिसने समय के साथ कई महत्वपूर्ण
आयामों को छुआ है। रूसी समाचार एजेंसी टास की रिपोर्ट के अनुसार, रूस ने भारत को अपने अत्याधुनिक
सू-57 स्टील्थ लड़ाकू विमान की आपूर्ति और भारत में ही इसके स्थानीय निर्माण की पेशकश की है। यह
पेशकश न केवल भारतीय वायुसेना की क्षमता को नई ऊँचाई तक ले जाने की संभावना रखती है, बल्कि
भारत की मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहल को भी उल्लेखनीय बल प्रदान कर सकती है। साथ
ही, रूस ने 2026 तक पहले से हुए समझौते के तहत शेष पाँच एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस सिस्टम की
डिलीवरी का भी वादा किया है, जबकि अतिरिक्त एस-400 सिस्टम की आपूर्ति को लेकर बातचीत अभी
जारी है। रूस की संघीय सैन्य-तकनीकी सहयोग सेवा के प्रमुख दिमित्री शुगायेव ने स्पष्ट किया है कि भारत
पहले से ही रूस के एस-400 सिस्टम का सफल उपयोग कर रहा है और इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच
सहयोग को आगे बढ़ाने की व्यापक संभावनाएँ हैं।
सू-57 को रूस की प्रमुख एयरोस्पेस कंपनी सुखोई ने विकसित किया है और इसे दुनिया के सबसे उन्नत और
खतरनाक फाइटर जेट्स में से एक माना जाता है। इसका पहला परीक्षण उड़ान वर्ष 2010 में हुआ था और
तब से रूस ने लगातार इसके डिजाइन, तकनीक और क्षमताओं को आधुनिक बनाने पर काम किया है। यह
फिफ्थ जनरेशन मल्टी-रोल लड़ाकू विमान अमेरिकी एफ-22 रैप्टर और एफ-35 लाइटनिंग II जैसे विमानों
के समकक्ष माना जाता है। इसकी सबसे बड़ी ताकत इसका स्टील्थ डिजाइन है, जिसे इस तरह तैयार किया
गया है कि दुश्मन के राडार इसे आसानी से पकड़ न पाएं। इसके एयरफ्रेम, विशेष मटेरियल और खास
कोटिंग दुश्मन की राडार तरंगों को अवशोषित या मोड़ देती है, जिससे यह विमान दुश्मन की सीमा में
घुसकर मिशन को अंजाम दे सकता है।
यह लड़ाकू विमान सुपरसोनिक गति पर बिना आफ्टरबर्नर का इस्तेमाल किए उड़ान भरने की क्षमता
रखता है, जिसे सुपरक्रूज कहा जाता है। सुपरक्रूज तकनीक ईंधन की खपत को कम करती है और विमान को
लंबी दूरी तक तेज गति में उड़ने में सक्षम बनाती है। इसकी अधिकतम रफ्तार लगभग 2,600 किलोमीटर
प्रति घंटा है और एक बार ईंधन भरने के बाद यह लगभग 3,500 किलोमीटर तक उड़ सकता है। यह
विशेषताएँ इसे दूरगामी ऑपरेशनों के लिए अत्यंत उपयोगी बनाती हैं। इसके अलावा, सू-57 की सुपर
गतिशीलता इसे अन्य लड़ाकू विमान की तुलना में बेहद फुर्तीला बनाती है। इसके थ्रस्ट-वेक्टरिंग इंजन और
उन्नत फ्लाइट कंट्रोल सिस्टम इसे हवा में किसी भी दिशा में अचानक मोड़ लेने, पलटने और दुश्मन के हमले
से बच निकलने की क्षमता प्रदान करते हैं।
सू-57 का एवियोनिक्स सिस्टम भी इसे बेहद आधुनिक बनाता है। इसमें उन्नत राडार, मल्टी-टारगेट ट्रैकिंग
सिस्टम, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर उपकरण और डेटा-लिंक तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। इसका राडार
एक साथ कई दुश्मन विमानों और मिसाइलों को ट्रैक कर सकता है। साथ ही, यह न केवल हवाई युद्ध के
लिए, बल्कि जमीन पर स्थित ठिकानों पर सटीक हमले करने और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में भी प्रभावी भूमिका
निभा सकता है। इसे एक मल्टी-रोल जेट के रूप में डिजाइन किया गया है, जो कई परिस्थितियों और
भूमिकाओं में इस्तेमाल किया जा सकता है। भविष्य के लिए इसे और भी उन्नत बनाने की दिशा में काम
जारी है, जिसमें नए इंजन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित नियंत्रण प्रणाली और ड्रोन-स्वार्म नेटवर्किंग
जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को शामिल किया जा रहा है। ये सुधार इसे आने वाले वर्षों में रूस की वायुसेना
का रीढ़ और विश्व की शीर्ष श्रेणी के फाइटर जेट्स में अग्रणी बनाएंगे।

भारत के लिए सू-57 का महत्व कई स्तरों पर समझा जा सकता है। सबसे पहले, यह विमान भारतीय
वायुसेना की क्षमताओं में एक बड़ा इजाफा करेगा। चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के संदर्भ में यह
भारत को रणनीतिक और तकनीकी बढ़त दिला सकता है। सू-57 जैसे लड़ाकू विमान की उपस्थिति दुश्मन
देशों के लिए एक गंभीर चुनौती साबित होगी, क्योंकि यह न केवल उनके राडार से बच सकता है बल्कि तेज
गति, लंबी दूरी और उन्नत हथियार प्रणालियों के जरिए निर्णायक प्रहार करने में सक्षम है। इसके अलावा,
स्थानीय निर्माण का प्रस्ताव भारत के एयरोस्पेस उद्योग के लिए एक बड़ा अवसर रूस का यह प्रस्ताव ऐसे
समय आया है जब वैश्विक स्तर पर रक्षा सहयोग और हथियारों की आपूर्ति को लेकर नए समीकरण बन रहे
हैं। भारत के लिए यह प्रस्ताव एक अवसर है कि वह न केवल अपनी वायु शक्ति को आधुनिक बनाए, बल्कि
एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को भी मजबूत करे। भारतीय
वायुसेना पहले से ही रूस निर्मित सू-30 मार्क-I जैसे लड़ाकू विमानों और एस-400 ट्रायम्फ वायु रक्षा
प्रणाली का उपयोग कर रही है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान एस-400 सिस्टम ने जो प्रदर्शन किया, उसने
इसकी प्रभावशीलता को साबित किया। इसलिए सू-57 को शामिल करना एक स्वाभाविक अगला कदम
प्रतीत होता है।
भारत और रूस के बीच यह प्रस्ताव न केवल रक्षा सहयोग को मजबूत करेगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर
भारत की स्थिति को भी सुदृढ़ करेगा। इस डील से भारत की वायुसेना के बेड़े में एक ऐसा विमान शामिल
हो सकता है, जिसे दुनिया के सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों में गिना जाता है। यह सौदा भारत की सुरक्षा
रणनीति के लिए एक गेमचेंजर साबित हो सकता है और आने वाले वर्षों में एशियाई क्षेत्र में शक्ति संतुलन
को नया आकार दे सकता है। कुल मिलाकर, रूस द्वारा दिए गए सू-57 स्टील्थ लड़ाकू विमान और स्थानीय
निर्माण के प्रस्ताव को भारत के रक्षा इतिहास में एक संभावित मील का पत्थर माना जा सकता है, जो
तकनीकी श्रेष्ठता, रणनीतिक मजबूती और आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम होगा।
– महेन्द्र तिवारी
पता: स्थापना अनुभाग, राष्ट्रीय अभिलेखागार, जनपथ, नई दिल्ली- 110001