रायपुर
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने डॉ खूबचंद बघेल और आयुष्मान जन आरोग्य योजना द्वारा कारण बताओ नोटिस के ऊपर कई प्रश्न चिन्ह लगाते हुए कहा कि जिला प्रशासन अधिकारियो के द्वारा अस्पताल बंद कर देने की धमकी दिए जाने का विरोध किया है।
प्रदेश के सभी जिलों के लगभग छोटे बड़े सभी प्राइवेट अस्पतालों में 50त्न कोविड- मरीजों के लिए आरक्षण किए जाने के कारण कोविड मिश्रित अस्पतालों में मरीज आने से डर रहे हैं क्योंकि ऐसे अस्पतालों में पहले से मरीजों को राष्ट्रीय स्तर पर अस्पतालों के लिए दर्शाई गई गाइडलाइन के अनुसार अलग अलग रखे जाने की व्यवस्था नहीं के बराबर है। छत्तीसगढ़ के कुल जिलों से कलेक्टर और मुख्य चिकित्सा अधिकारियों द्वारा अस्पताल संचालकों को डराने धमकाने और अस्पताल बंद कर देने की धमकी की शिकायतें इन दिनों आम हो चली है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन छत्तीसगढ़ ने ऐसी धमकियों का संबंधित अधिकारियों से कड़ा प्रतिरोध भी किया है। मिश्रित प्रकार के मरीजों के अस्पताल होने की स्थिति में नॉन कोविड- मरीजों के संक्रमित होने की आशंका बहुत ज्यादा हो गई है और कोरोना काल में भी दूसरी बीमारियों के मरीज अब उपेक्षित हो रहे हैं क्योंकि कोविड- अस्पतालों में जाने से स्वाभाविक रूप से संक्रमित हो जाने का डर होता है। नॉन कोविड- मरीजों का इलाज पिछले दो महीने से लगभग रुक गया है।
आयुष्मान योजना के आंकड़ों से यह स्वाभाविक रूप से परिलक्षित हो जाएगा सभी अस्पतालों में 20 प्रतिशत बिस्तर आयुष्मान और डॉ खूबचंद बघेल योजना के अंतर्गत गरीबी रेखा से नीचे के मरीजों के लिए आरक्षित किए जाने से कठिनाइयां बढ़ रही हैं,अलग से 20 प्रतिशत बिस्तर खाली रखना प्रायोगिक नहीं है क्योंकि आपातकालीन मरीजों के लिए यह अन्याय पूर्ण स्थिति होगी सभी जिलों में मुख्य चिकित्सा अधिकारी के नोटिस पहुंचने से अस्पतालों में सभी प्रकार के मरीजों को इलाज करने में अचानक ब्रेक लग सकता है और पूरे प्रदेश में आज सहयोग की स्थिति हो जाएगी। इस प्रकार के नीतिगत निर्णय लेने से पहले बेहतर होता कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों एवं एसोसिएशन को विश्वास में लेकर एक पारदर्शी नीति बनाते ताकि युक्तिसंगत रास्ता निकाला जा सकता।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन स्वास्थ्य विभाग के इस नोटिस का विरोध करता है और अपील करता है कि किसी प्रकार की कार्रवाई की चेतावनी देने से कोविड- मरीजों के इलाज में जुटे हुए डॉक्टरों और अस्पताल संचालकों का मनोबल टूट सकता है। डर और भय का माहौल पैदा करने से असहयोग और संशय की स्थिति बनने से पहले बातचीत का रास्ता अपनाया जाना चाहिए।