पलानीस्वामी और स्टालिन खत्म कर रहे हैं ‘जानी दुश्मन’ वाला दौर, बदल रही तमिलनाडु की राजनीति

चेन्नई
अपने पूर्ववर्ती नेताओं से विपरीत तमिलनाडु में पलानिस्वामी और एमके स्टालिन एक स्वस्थ राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का खाका खींच रहे हैं, उस प्रदेश में जहां करीब 50 सालों से राजनीति कड़वाहट, दुश्मनी और हिंसा से भरे माहौल में होती रही है। दो मई को विधानसभा चुनाव नतीजों में तमिलनाडु की जनता ने एआइएडीएमके के दस सालों के शासन पर विराम लगाते हुए अगले पांच सालों के लिए सत्ता की कमान डीएमके को सौंप दी। 

पलानिस्वामी ने जनादेश स्वीकार करते हुए ट्विटर के माध्यम से स्टालिन को शुभकामनाएं दी। जवाब में स्टालिन ने पलानिस्वामी से सहयोग मांगा और कहा कि लोकतंत्र सत्ता पक्ष और विपक्ष का संगम है। चुनाव परिणाम के बाद पक्ष-विपक्ष के दो प्रमुख नेताओं के बीच का यह संवाद आपको औपचारिकता भर लगे लेकिन तमिलनाडु की राजनीति के लिहाज से यह अहम है, क्योंकि सत्ता परिवर्तन पर ऐसे मौके बीते कई दशकों में देखने को नहीं मिले। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि पलानिस्वामी और स्टालिन के बीच किसी तरह की निजी रंजिश नहीं है जैसा इतिहास में कभी करुणानिधि और एमजी रामचंद्रन और आगे चलकर करुणानिधि और जयललिता के बीच हुआ करती थी।
 
इस कड़वाहट की शुरुआत तब हुई जब तमिल सिनेमा के सुपरस्टार और लोकप्रिय नेता एमजी रामचंद्रन ने 1972 में डीएमके से अलग होकर एडीएमके बनाई जिसका बाद में नाम एआइएडीएमके रखा गया। इसके साथ ही एमजीआर और करुणानिधि की दोस्ती और दोनों की फिल्मों से लेकर राजनीति तक की कामयाबी जुगलबंदी का भी अंत हो गया। नई पार्टी बनाने के बाद 1977 में एमजीआर ने चुनाव जीता और 1987 में अपने निधन तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे।