इस कोरोना काल में देश के पांच राज्यों में चुनाव सम्पन्न हुआ है । लेकिन पश्चिम बंगाल के साथ पांच राज्यों के चुनाव परिणाम की कुछ और बंया कर रहा है । इस चुनाव परिणामों से स्पष्ट है कि क्षेत्रीय दल अपने क्षेत्र में पकड़ बनाए हुए है । क्षेत्रीय भाषा, स्थानीय मुद्दों पर जातीय समूहों की अपेक्षाएं अपने क्षेत्रीयता की होती है , ऐसे पकड वाले नेता जनता का दिल जीतने में सफल रहतें है । ममता बनर्जी की बडी जीत इसका प्रमाण है | केरल में पिनराई विजयन भी अच्छी सरकार का पहचान बनाया है । तमिलनाडु में जयललिता से लेकर वर्तमान स्टालिन ने द्रविड में क्षेत्रीय पहचान कायम रखी है । वही पर असम में सर्बानंद सोनीवाल और हिंमत सरमा क्षेत्रीय आकांक्षा को पूर्ति करने वाले नेता के रूप मे पहचान बनाया हैं । इन क्षेत्रीय नेतृत्व की ऐसी ताकत ने उनकी पार्टी को जीत दिलाई है । इस कोरोना महामारी के बीच देश के पांच राज्यों में चुनाव सम्पन्न हुआ । जंहा पर ममता बनर्जी की क्षेत्रीय पार्टी TMC, केरल LDF, पुडुचेरी रंगा कांग्रेस, तमिलनाडु DMK, AIDMK, असम में क्षेत्रीय दल के सहयोग से भाजपा चुनाव जीते तो गये । इन पांच राज्यों में क्षेत्रीय नेताओं का वर्चस्व देखने को मिला । राष्ट्रीय पार्टी अपने स्तर पर कोई कसर नहीं छोडा था कुछ हद तक भाजपा बंगाल में क्षेत्रीय नेताओं को साथ लेकर चला इस कारण 3 से 76 तक पहुंच सका कुछ बडी भुल और अतिआत्मविश्वास ने भाजपा का रथ रोक दिया । यंहा पर राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के क्षेत्रीय नेताओ पर लोगों का विश्वास कम हो रहा है । वही भाजपा अपनी शीर्ष नेतृत्व के चलते कुछ हद तक सफल रहा है । शीर्ष नेतृत्व के दम पर किला फतह नहीं होगा |
जब तक राष्ट्रीय दल के क्षेत्रीय नेताओ का सीधा संबंध वंहा के जनता, क्षेत्रीय भाषा, संस्कृति पर नही होगा तो इन राज्यों परिणाम ऐसा ही रहेगा । क्षेत्रीय पार्टी में लोगो का विश्वास इसलिए बना रहता है कि वो क्षेत्रीय, भाषा, संस्कृति के साथ जनता अपना समझते है । इस वजह से छत्तीसगढ में वर्तमान में कांग्रेस सरकार है । इन सबको भूपेश बघेल में क्षेत्रीय नेता की छवि दिखता है । ऐसे कई राज्य है जिसमे बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हिमाचल, जम्मू कश्मीर, दिल्ली में आप ने क्षेत्रीय नेतृत्व के चलते सरकार पर है । छत्तीसगढ में क्षेत्रीय दल के रूप में अजीत जोगी कांग्रेस ने अपना वर्चस्व स्थापित किया । अब सभी राष्ट्रीय पार्टी को क्षेत्रीय नेतृत्व के नेटवर्क को मजबूत करना होगा । क्षेत्रीय नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित कर नेताओ को क्षेत्र के लोगो से सीधा संबंध स्थापित करना होगा । छत्तीसगढ में पूर्व क्षेत्रीय नेता खुबचंद बघेल, बिसाहु दास महंत, विद्याचरण शुक्ल, श्याम चरण, दिलीप सिंह जुदेव बलिराम कश्यप, अरविंद नेताम, नंदकुमार साय जैसे क्षेत्रीय नेतागण राष्ट्रीय पार्टी का नेतृत्व करते थे । इन सभी नेताओ का सीधा संबंध क्षेत्र के जनता और भाषा संस्कृति पर पकड होता था | जिस कारण से राष्ट्रीय पार्टी को सफलता मिलत रही । राष्ट्रीय पार्टी के शीर्ष नेता क्षेत्र के कई वर्षों में एक दो बार ही चक्र लगाते थे । अब तो उल्टा हो गया है शीर्ष नेतृत्व कई चक्र लगा रहें है और क्षेत्रीय नेतागण अपने नम्बर बढाने के लिए शीर्ष नेतृत्व को खुश करने पर लगे रहते है । अभी भी समय है क्षेत्रीयता को समझ कर राजनीति करनी होगी । वर्तमान समय में राष्ट्रीय पार्टी के क्षेत्रीय नेतृत्व का अभाव दिखता है । जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है भाजपा में शामिल हुए शिवेंद्रु अधिकारी है। राष्ट्रीय पार्टी को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए क्षेत्रीयता पर बल देना होगा साथ ही क्षेत्र में अपना पकड बनाए रखने वाले नेता का पहचान करना होगा ।
कुलदीप पंकज