साहित्य,
राम के समान कोई दूसरा न और है,
राम ही है रास्ता व राम ही तो ठौर है।
प्राकृतिक चितेरे कौन राग व विराग के,
चित्त में चितै रहे वही तो चित्तचौर है।
ख़ार पे चले नहीं जो पाँव राम सा कभी,
रार में फँसा पड़ा वही तो ख़ास तौर है।
(ख़ार-काँटा, रार-समस्या)
जो गहीर घाव के पुकार पे बने दवा,
खुशबुएँ भरे हवा वो राम अम्ब- बौर है।
(अम्ब-बौर-आम का बौर)
संग में चले चलो न चित्त में दरार हो,
राम जी से प्यार का यही तो यार दौर है।
खंड – खंड से बने विराट रूप चंद्र के,
शुंड – मुंड से प्रचंड राम अम्ल-क्षौर है।
अंत ना बखान का कि विद्वता प्रकाण्ड सा,
मादमाती भांग सा ही राम रंग – गौर है।
हिन्द को सँवारते वो राम रूप धारते,
दुश्मनों को तारते वही तो शीर्ष- मौर है।
दीन पे दया करे व हीन पे दुआ करे,
धीरता बयाँ करे वो राम अन्न-कौर है।
राम का प्रभाव सुन व भाव से ही भाव बुन,
राम – रूपी नाव चुन तो धार पे भी ठौर है।
– : बल्लू बल