विकास ने मोदी सरकार से पूछे पांच सवाल

रायपुर
भ्रष्टाचार की जांच करने एक फ्रांसिसी जज को नियुक्त करने के बाद मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए संसदीय सचिव व विधायक विकास उपाध्याय ने केंद्र की मोदी सरकार से पांच सवाल किए हैं। इस दौरान उन्होंने कहा कि कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 2018 में इस डील के संबंध में जो आरोप लगाए थे,वह फ्रांस की ओर से जांच करने कदम बढ़ाए जाने के बाद सच साबित हो रहे हैं। साबित हो गया है कि रफाल डील में प्रधानमंत्री मोदी की भूमिका पाक-साफ नहीं है। उन्होंने ऐसे ही पांच सवाल पूछकर मोदी सरकार को इस डील में हुए भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया है। विकास उपाध्याय ने कहा है कि इस पूरे सौदे में सवाल प्रधामंत्री मोदी से पूछे जा रहे हैं लेकिन जवाब उनकी टीम के सदस्य दे रहे हैं। कभी भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा या कोई और। आज जब इस पूरे भ्रष्टाचार की जांच फ्रांस की ओर से की जा रही है तो सवालों की शक्ल में या फिर फिकरे कस कर भाजपा के लोग दे रहे हैं।

पहला सवाल – प्रधानमंत्री मोदी 10 अप्रैल 2015 को फ्रांस यात्रा के दौरान 17 समझौतों पर दस्तखत किए, जिसमें एक रफाल विमान की खरीदी का भी था। फ्रांसिसी कंपनी से खरीदे जाने वाले विमानों की संख्या 126 से घटकर अचानक 36 हो गई। सरकार ने अभी तक देश के संसद या मीडिया को नहीं बताया है कि इतना बड़ा बदलाव कब, क्यों और कैसे हुआ?

दूसरा सवाल – रफाल की संख्या कम होने के बाद यह एक नया सौदा था, जिसकी कीमत, संख्या और शर्तें बदल गई थीं। सवाल यह है कि अगर यह नया आॅर्डर था तो नियमों के मुताबिक टेंडर क्यों नहीं जारी किए गए? यह भी सवाल उठता है कि इस फैसले में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर और कैबिनेट कमेटी आॅन सिक्यूरिटी की क्या भूमिका थी? और नहीं थी तो क्यों?

तीसरा सवाल- विन की कीमत को लेकर सरकार ने संसद में कोई जानकारी नहीं दी। वजह सुरक्षा और गोपनीयता का मामला बताया गया। जबकि गोपनीयता विमान की तकनीकी जानकारी के बारे में होनी चाहिए। परंतु सौदा होने से पहले रक्षा राज्य मंत्री सुधार ढामरे ने लोकसभा में बताया था कि एक विमान की कीमत 670 करोड़ रुपए है। जबकि एक विमान की कीमत 1600 करोड़ रुपए के करीब है। तो क्या सरकार की जिम्मेदारी देश को यह बताना नहीं है कि खजाने से लगभग 36,000 करोड़ रुपए से ज्यादा क्यों खर्च हो रहे हैं?

चौथा सवाल- मेक इन इंडिया में रक्षा क्षेत्र पर जोर देने की बात कही गई थी और वायुसेना की जरुरतों का आंकलन करने के बाद ही तय किया गया था कि 126 विमानों की जरूरत होगी। क्या भारत की जनता को बताया नहीं जाना चाहिए कि वायुसेना के लड़ाकू विमानों की जरूरत कम कैसे हो गई? और सरकारी क्षेत्र की कंपनी एचएएल जिसके पास लड़ाकू विमान बनाने का अच्छा-खासा अनुभव है, जहां सैंकड़ों जगुआर और सुखोई विमान बनाए गए हैं, को यह मौका क्यों नहीं दिया गया?

पांचवा सवाल- जिस दिन नरेन्द्र मोदी ने पेरिस में विमान खरीदी कर समझौते पर हस्ताक्षर किए,10 अप्रैल 2015 था। 25 मार्च 2015 को रिलायंस ने रक्षा क्षेत्र की एक कंपनी बनाई, जिसे सिर्फ 15 दिन बाद लगभग 30,000 करोड़ का ठेका मिल गया। उस समय फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांद ने कहा था, रिलायंस के नाम की पेशकश भारत की ओर से हुई थी उसके सामने कोई और विकल्प नहीं था। इससे साफ जाहिर है कि अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाकर ऐसे कंपनी को विमान बनाने का काम दे दिया गया जिसे इस क्षेत्र में कोई अनुभव ही नहीं था। तो क्या मोदी सरकार को इसकी वजह देश को बतानी नहीं थी?