लंच का डिब्बा और बचपन की यारी, स्कूल की वो बातें जो बड़े होने पर बड़ी याद आती हैं

स्कूल के दिनों की बातें तो आज भी आपको अच्‍छी तरह याद होंगी। जब एक क्‍लासरूम में कई चेहरे होते थे, जिसमें कोई ब्‍यूटी क्‍वीन, स्‍पोर्टमैन, गॉसिप गर्ल, टॉपर और कोई ड्रामेबाज होता था। वो दिन याद हैं जब क्‍लासरूम में टीचर के सवाल पूछते ही जवाब देने के टाइम सब एक-दूसरे की सूरत देखने लगते थे, फिर क्‍लास का टॉपर स्‍टूडेंट उठता और जवाब ऐसे देना शुरू करता कि सब उसे देखते रह जाते? जब क्लास खत्म होती तो सब उसे टीज करने लग जाते थे, जो उसके चेहरे पर भी हंसी ले आता था।

सुबह जल्दी उठना, पूरा दिन बातें करना, स्कूल की असेंबली में नींद के झोंके आना, दोस्तों के साथ आखिरी बेंच पर बैठकर गपशप करना और बेसब्री से लंच ब्रेक का इंतजार करना वो भी सिर्फ ये देखने के लिए कि दोस्त अपने लंच बॉक्स में क्या लाया है। उस समय तो हमें इसकी अहमियत नहीं पता था, लेकिन बाद में जब ये यादें दिमाग में आती हैं, तो लगता है कि काश वो दिन फिर लौट आएं। आज हम आपको ऐसी ही खट्टी-मीठी स्कूल की यादों में वापस ले जाएंगे, जो आपको उन दिनों की याद दिला देगा। 

'क्या आपको याद है कैसे पूरे एक महीने पहले से स्कूल के एनुअल-डे के लिए तैयारियां शुरू हो जाती थी? पूरे स्कूल में जैसे दिवाली का माहौल बन जाता था। डांस, ड्रामा, सिंगिंग सबका एक कॉम्बिनेशन हमारे सामने आता था और हमें प्रैक्टिस के लिए पूरे 2 सप्ताह मिलते थे और उस दौरान कोई भी क्लासेज नहीं होती थीं। पूरे स्कूल में भाग-दौड़ मची रहती थी। बच्चों की अटेंडेंस पूरी रहने लगती थी, लेकिन टीचर्स भी पढ़ने पर ज्यादा जोर नहीं देते थे। आज भी वो चेहरे पर खूब सारे मेकअप के साथ, घागरा-चोली पहनकर डांस करने का वीडियो देख कर चेहरे पर हंसी आ जाती है। उस समय को याद करके अब ऐसा लगता है कि स्कूल थोड़ा जल्दी खत्म हो गया।'- अवनी बगरोला

बंक करना

'स्कूल के बारे में दूसरी सबसे पसंदीदा और यादगार चीज थी दोस्तों के साथ क्लास बंक करना। ये उन कुछ चुनिंदा चीज़ों में से एक है जो स्कूल की लाइफ को यादगार बना जाती हैं। मुझे अच्छे से याद है जब हम 9th में थे, तब हमारे मैथ्स के टीचर बहुत बोरिंग हुआ करते थे, तो हम लंच ब्रेक के बाद से ही स्कूल कैंटीन में बैठ जाते थे और फिर राउंड लेते स्पोर्ट्स टीचर से छिपकर पूरे स्कूल में भागते थे। कभी वॉशरूम में या स्कूल के खेल के मैदानों में और कभी-कभी स्कूल की छत पर। तब ये छोटी-छोटी मस्तियां करने में हमें इतना मज़ा आता था कि क्या ही बताएं। बस अब ये चीजें यादों में ही बदल गई हैं। न हम वो पुराने मस्तीखोर रहे और ना ही मस्ती करने की अब इच्छा रही।' -वर्णित जैन

दोस्तों के साथ बिताए वो पल

'स्कूल की अगर कोई बात है, जो सबसे ज्यादा याद आती है, वो दोस्तों के साथ बिताए पल हैं। हर साल नए दोस्त बनाना और उनके साथ इतनी आसानी से जुड़ जाना कि हम कभी नहीं सोचते कि हमारा जीवन उनके बिना कैसे निकल पाएगा। उस दोस्त से लड़कर भी हम इतना रोते हैं और अगले दिन फिर से उसके बगल में ही जाकर बैठ जाते हैं और फिर से बात करना शुरू कर देते हैं। हर साल हमारे दोस्त बढ़ते जाते थे, क्योंकि उस दौरान हम किसी को जज नहीं करते थे और हमें बस उनका साथ चाहिए होता था। उम्र के बढ़ने के साथ-साथ कभी कभी लगता है कि वापस उसी समय में चले जाऊं जिस समय सब कुछ अच्छा और सच्चा था।

मॉर्निंग असेम्बली

'इसमें कोई शक नहीं कि सुबह की असेम्बली बहुत बुरी लगती थी। गलत जूते या यूनिफॉर्म पहनने के कारण पकड़े न जाने की पूरी कोशिश करने से लेकर चिलचिलाती धूप से बचने के लिए नकली बीमारी के बहाने लगाने तक, ये सब हमारे लिए आज मीठी यादें हैं। अभी भी याद है कि असेम्बली के दौरान आधा समय हम नींद में रहते थे और सिर्फ सिर हिलाने या आंखें खुली रखने की कोशिश करते थे ताकि टीचर्स हमें वहां से बाहर न कर दें। ये चीजें अब याद कर हंसी आती है।'-अंकित मिश्रा

स्कूल की यूनिफॉर्म

'हर रोज एक ही तरह की यूनिफॉर्म पहनना हमारे लिए उबाऊ ज़रूर था, लेकिन निश्चित रूप से अब ये सोच बिलकुल बदल चुकी है। स्कूल की यूनिफॉर्म से जुड़ी यादें अब हमारे दिल में एक बहुत खास जगह रखती हैं। जब कभी उसे आप अपनी अलमारी से बहार निकालते हैं, तो जैसे यादों पिटारा खुल जाता है और स्कूल में बिताए पल आंखों के सामने आ जाते हैं।