रायपुर,
रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के दूसरे दिन देश के विभिन्न राज्यों से आए आदिवासी नर्तक दलों ने अपनी नृत्य की शानदान प्रस्तुति दी। पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन, सुर-ताल पर थिरकते हुए उन्होंने अपनी कला, संस्कृति, रीति-रिवाज और जीवनशैली का भी परिचय दिया। आज संध्या झारखंड का मुण्डरी, मेधालय का शाद मैस्ए, कर्नाटक का धुल्लु कुनिथा, धमतरी की मादरी आदिवासी लोकनृत्य, राजस्थान की गवरी और तमिलनाडु के कालीअट्टम लोकनृत्य की मनमोहक प्रस्तुति ने दर्शकों को बांधे रखा।
झारखंड के मुंडा जनजाति के कलाकारों के द्वारा बिरसा मुंडा को समर्पित लोकनृत्य मुण्डरी मंे कलाकार वीर रस का गायन कर हाथों में तीर-कमान लेकर नृत्य कर रहे थे। मेघालय के जनजातिय कलाकारों ने प्राचीन युद्ध शैली का शाद मैस्ए लोकनृत्य के माध्यम से शानदार प्रस्तुति दी। पुरूषों के द्वारा किया जाने वाला कर्नाटक का लोकनृत्य धुल्लु कुनिथा नृत्य ने दर्शकों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। इसमें कलाकार ढोलक को तेजी के बजाते हुए नृत्य कर रहे थे। बेहद ही आकर्षक वेशभूषा, चेहरे में नकाब पहने अपनी बोली भाषा में शौर्य गीत का प्रदर्शन करते हुए राजस्थान के कलाकारो ने गवरी नृत्य की मनमोहक प्रस्तुति दी। तमिलनाडु के जनजाति कलाकारों द्वारा मां काली की अराधना के लिए समर्पित लोकनृत्य कालीअट्टम ने महौल को भक्तिमय बना दिया। मां काली के रूप मंे आए कलाकर के आसपास अन्य कलाकारों ने नृत्य का प्रदर्शन किया। इसमें नृत्य के अंत में मां काली के द्वारा राक्षस का वध करना दिखाया गया। दर्शकों ने इस पूरे कायक्रम का खूब आनंद लिया।