नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला दिया है कि एक मंदिर में मुख्य देवता मंदिर से जुड़ी जमीन के मालिक हैं। पुजारी को केवल धार्मिक क्रियाएं करनी होती हैं और वे देवता के लिए संपत्ति का रखरखाव करते हैं। जस्टिस हेमंत गुप्ता और ए एस बोपन्ना की बेंच ने मध्य प्रदेश सरकार की ओर से जारी किए गए सर्कुलर को सही करार दिया जिसमें मंदिर की संपत्तियों के लिए पुजारियों के नाम राजस्व रिकॉर्ड से हटाने का निर्देश दिया गया था।
बेंच ने अपने आदेश में अयोध्या जमीन विवाद का उदाहरण दिया।
फैसले में कहा गया है, “कानून इसे लेकर स्पष्ट है कि पुजारियों के पास ऐसी जमीन केवल प्रबंधन के उद्देश्य के लिए होती है। वे सामान्य किराएदार नहीं हैं और उन्हें केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करना चाहिए। अगर वे प्रार्थना करने और जमीन के प्रबंधन के कार्यों को करने में असफल रहते हैं तो ऐसे अधिकार वापस लिए जा सकते हैं।”
बेंच का कहना था कि पुजारियों को जमीन का मालिक नहीं माना जा सकता।
इस मामले में मध्य प्रदेश सरकार ने हाई कोर्ट की ओर से सर्कुलर रद्द करने को चुनौती दी थी। राज्य सरकार ने अपनी अपील में कहा था कि पुजारियों की ओर से मंदिर की संपत्तियों की गैर कानूनी बिक्री को रोकने के लिए कार्यकारी निर्देश दिए गए हैं। दूसरी ओर, पुजारियों की दलील थी कि उन्हें जमीन के स्वामित्व का अधिकार दिया गया है और इसे कार्यकारी आदेश से वापस नहीं लिया जा सकता।