नई दिल्ली
राजद्रोह कानून को औपनिवेशिक काल की देन बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि आखिर इसे हटाया क्यों नहीं जा रहा। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद इस पर चर्चा तेज होने की उम्मीद है। दरअसल, यह कानून ब्रिटिश काल का है। इसे 1870 में लाया गया था। ब्रिटेन में इस कानून की बहुत आलोचना हुई थी। ब्रिटेन में भाषण और अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने में इसके प्रभाव को दर्ज किया गया और फिर भारत पर लागू किया गया। हालांकि, भारी विरोध के कारण 1977 में ब्रिटेन के विधि आयोग द्वारा अधिनियम को समाप्त करने का सुझाव देते हुए एक कार्य पत्र प्रकाशित किया गया था। अमेरिका और ब्रिटेन दोनों में राजद्रोह को खत्म करने के पीछे का प्रमुख तर्क अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संरक्षण रहा है। सरकार के राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए राजद्रोह का संभावित दुरुपयोग भी राजद्रोह को खत्म करने का एक कारण बना।
क्या है राजद्रोह कानून?
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए में राजद्रोह को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार, अगर कोई व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है। या ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 124ए में राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है। इसके अलावा अगर कोई शख्स देश विरोधी संगठन के खिलाफ अनजाने में भी संबंध रखता है या किसी भी प्रकार से सहयोग करता है तो वह भी राजद्रोह के दायरे में आता है।
सजा का प्रावधान क्या है
राजद्रोह गैर जमानती अपराध है। राजद्रोह के मामले में दोषी पाए जाने पर आरोपी को तीन साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसके अतिरिक्त इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है।