बीजापुर सुकमा के सीमांत क्षेत्रों में माओवादियों ने एक बड़ी सभा का आयोजन….शीर्ष नेता की 64 फीट उंचा स्मारक का अनावरण भी किया

बीजापुर।

बड़े सालों के बाद बीजापुर सुकमा के सरहदी इलाके में माओवादियों ने एक बड़ी सभा का आयोजन किया । सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार  माओवाद संगठन का यह आयोजन शहीदों की यादा में शहीद सप्ताह के रूप में मनाया गया  । माओवाद संगठन ने 28 जुलाई से 3 अगस्त तक कुछ पकड़ वाले इलाकों में छोटी-छोटी सभा – रैलियां की फिर बाद 3 अगस्त को शहीद सप्ताह के समापन पर बीजापुर सुकमा के सीमांत क्षेत्रों में संगठन ने बड़े स्तर पर आयोजन किया गया।  जिसमें आसपास  के क्षेत्रों से लगभग 12 हजार से ज्यादा ग्रामीण जुटे। सभा स्थल पर माओवादियों ने अपने शीर्ष नेता अक्की राजू उर्फ हरगोपाल की स्मृति में लगभग 64 फीट उंचा स्मारक का अनावरण भी किया। कार्यक्रम में मौजूद शीर्ष नेताओं का कहना था कि माओवाद के इतिहास में यह स्मारक अब तक का सबसे उंचा स्मारक है। स्मारक से लगे मंच की दीवारों पर संगठन के शीर्ष नेताओं समेत मुठभेड़ों, मारियों में मारे गए साथी नक्सलियों की तस्वीरें भी चस्पा की गई थी। घने जंगली क्षेत्रों में स्मारक और मंच का निर्माण माओवादियों ने दो माह में पूरा किया।

3 अगस्त को शहीद सप्ताह के अंतिम दिन हजारों ग्रामीणों की भीड़ को रैली की शक्ल में तब्दील कर माओवादियों ने जंगल के रास्ते एक विशाल रैली की और लाल सलाम, माओवाद जिंदाबाद जैसे नारे भी उनसे लगवाए।

इसमे बड़ी संख्या में हथियारबंद लाल लड़ाकों के अलावा छत्तीसगढ़-तेलंगाना से शीर्ष स्तर के नक्सली नेता शिरकत करने पहुंचे थे।

प्राप्त सूत्रों  के अनुसार रैली के माध्यम से हजारों ग्रामीणों को नक्सली स्मारक स्थल तक लेकर पहुंचे। जहां माओवादियों के तेलंगाना स्टेट कमेटी के एक शीर्ष नेता द्वारा स्मारक अनावरण और मृत साथियों को श्रृद्धांजलि देने के बाद लगभग 10 घंटे तक चरणबद्ध कार्यक्रम का सिलसिला शुरू हुआ। जिसमें चेतना नाट्य मंडली के सदस्यां द्वारा नाच-गान के अलावा मारे गए माओवादियों के परिजनों को मंच पर संबोधन के लिए बुलाया गया, इसके अलावा आयोजन में मौजूद शीर्ष नेताओं ने भी बारी-बारी से अपना संबोधन दिया।

हालांकि पूरे आयोजन के दौरान माओवादियों के शीर्ष नेताओं ने मीडिया के सवालों से दूरियां बनाए रखी। संगठन के दिशा-निर्देषों का हवाला देते पत्रकारों के किसी भी सवाल पर चर्चा को वे तैयार नहीं हुए। केवल शहीदी सप्ताह के आयोजन के इतिहास पर मौखिक तौर पर संक्षिप्त जानकारी साझा करते इतना ही बताया गया कि लगभग 50 वर्षां से संगठन शहीदी सप्ताह का आयोजन करता आ रहा है।

इधर माओवादियों की तरफ से लंबे अंतराल के बाद बस्तर के बीहड़ में बड़े स्तर के आयोजन से एक बार फिर माओवाद संगठन के आधार को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं। आयोजन के कई मायने भी निकाले जा रहे हैं। कयास लग रहे हैं कि कही आयोजन के जरिए माओवादियों ने एक तरह से सशस्त्र शक्ति का प्रदर्शन तो नहीं किया ? बहरहाल बस्तर के बीहड़ माओवादियों की बड़े पैमाने पर मौजूदगी से नक्सल उन्मूलन को लेकर राज्य व केंद्र स्तर पर नई नीति क्या होगी, यह देखने वाली बात होगी।