रायपुर,
बाबा गुरु घासीदास जी की 265 वीं जयंती के अवसर पर सिविल लाइन स्थित न्यू सर्किट हाउस में एक दिवसीय बौद्विक संगोष्ठी “गुरुघासीदास एवं सतनाम आंदोलन” विषय पर आयोजित किया गया। संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रुप में दिल्ली विश्विविद्यालय इतिहास विभाग के प्रो. रतन लाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ की धरती में जन्मे बाबा गुरुघासीदास जी ने किसी विश्वविद्यालय में पढ़ाई किए बिना ही सत्य के मार्ग पर चलने की शिक्षा दी है। उन्होंने कुछ इतिहासकारों को आड़ हाथों लेते हुए कहा कि सतनामी आंदोलन को मुश्लमानों के खिलाफ बताया जाता है। तो फिर आडंबर, असमानता, भेदभाव और ऊंच-नीच को खत्म करने सामाजिक आंदोलन किसके खिलाफ था। प्रो. रतन लाल ने कहा कि वर्ण व्यवस्था और शोषण के विरुद्व लड़ाई लड़ने वाले बाबा गुरुघासीदास संत नहीं विद्रोही थे। आज हम जयंती क्यों मना रहे हैं इस पर भी कुछ सवाल खड़े होते हैं। गुरु घासीदास ने सतनाम आंदोलन चलाया और कोई इसे जात बना रहा है। बाबा जी ने वैचारिक विरासत की सबसे बड़ी ताकत दी है। इसलिए इससे संभालने की जरुरत है। विचार को फैलाने के लिए आज डिजीटल माध्यमों का उपयोग किया जाना चाहिए। इसके लिए समाज के युवाओं को रिसर्चर बनाना होगा। उन्होंने कहा कि विद्वानों का वारिश जन्म के आधार पर नहीं होता, बल्कि विचारवान व्यक्ति ही विरासत को संभालता है। बेटी व बेटा की शादी में फिजूल खर्च करने की बजाय उनकी शिक्षा को प्राथमिकता देने की जरुरत है।
संगोष्ठी में पं. सुंदरलाल शर्मा विश्विविद्यालय की कुलसचिव प्रो. डॉ. इंदू अनंत ने कहा कि बाबा गुरुघासीदास जी का सतनाम आंदोलन से मृत प्राय और दिशाहीन समाज को सतनाम का मार्ग दिखाया। बाबा गुरुघासीदास ने समाज में अपमान को झेल कर उसके खिलाफ आंदोलन किया। सतनाम के सन्देश को पंथी गीतों के माध्यम से फैलाया और उन्होंने मानव-मानव एक समान का संदेश देते हए असमानता के खिलाफ आंदोलन चलाया। गुरुघासीदास ने व्यक्ति के चरित्र निर्माण पर जोर देते हुए पराई स्त्री को माता समान बताया। उन्होंने हिंसा का विरोध किया। गाय को हल जोतने की प्रथा का विरोध किया। समाज में मदिरापान से दूर रहने का संदेश दिया। जन-जन को सत्यनाम का संदेश देने पंथी गीतों को नृत्य व संगीत का माध्यम बनाया। इस आंदोलन से छत्तीसगढ़ अंचल के 5 हजार गांवों के लोग जातियों के बंधन को तोड़कर सतनाम आंदोलन में शामिल हुए।
सामाजिक कार्यकर्ता एवं चिंतक रुसेन कुमार ने कहा कि लोगों को शिक्षा के महत्व को बहुत गहराई से समझना चाहिए। अशिक्षा से अज्ञानता और अज्ञानता से अभाव उत्पन्न होती है। ये तीनों मिलकर अन्याय का रुप धारण कर लेता है। इसलिए जाने अनजाने में व्यक्ति अन्याय का हिस्सा बन कर सहता भी है।
बहुजन चिंतक विष्णु बघेल ने कहा, सतनाम आंदोलन को बाबा गुरुघासीदास ने धर्म के नाम पर फैले झूठ और अंधकार के खिलाफ आंदोलन चलाया। जाति के नाम पर ऊंच-नीच का भेदभाव जन्म के आधार पर सबसे बड़ा झूठ का विरोध किया जबकि प्रकृति ने सबको बराबर बनाया है। उन्होंने कहा कि मनुवाद ने मानवतावादी आंदोलन को सतनामी जाति बनाकर रोक दिया गया है।
आईएसएस महादेव कावरे ने कहा, समाज में शराब की लत को छुड़ाने के लिए काम करने की जरूरत है। प्रदेश के जेलों में आज सबसे ज्यादा एससी,एसटी व ओबीसी समाज के 89 प्रतिशत लोग बंद है। इस तरह की स्थिति क्यों बन रही है इस पर काम करने की जरुरत है। श्री कावरे ने कहा कि प्राकृति आपदा में मुआवजा के लिए परिजन सालों भटकते रहते हैं। इसके विलंब का कारण थाने और पीएम रिपोर्ट मिलने से देरी होती है। प्रशासनिक पद पर रहे हुए उन्होंने 24 घंटे के भीतर मुवावजा राशि बांटने का काम किया है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सामाजिक चिंतक टीआर खुंटे ने कहा कि चिन्तन मनन करने वाले लोगों की बदौलत ही समाज आगे बढ़ता है। हमारे महापुरुषों ने बिना पढ़े लिखे ही आंदोलन खड़ा कर दिया। सन्त कबीर चौपाल लगाते थे, चौपाल की चर्चा ने आंदोलन खड़ा कर दिया तो गुरु नानकदेव ने लंगर चलाया कर एक पंक्ति पर लोगों को लाया। गुरुघासीदास ने रोटी और बेटी का सम्बंध जोड़ कर सतनाम आंदोलन चलाया। छत्तीसगढ़ का सतनाम आंदोलन रावटी लगाकर सतनाम आंदोलन चलाया है। 28 मार्च को गुरु बालक दास जी की शहादत दिवस व्यापक पैमाने पर मनाया जाना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रीय मासिक पत्रिका “द फोर्थ मिरर” के प्रवेशांक का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया। संगोष्ठी में प्रमुख रुप से डॉ. नरेश कुमार साहू, जागव किसान के प्रदेश अध्यिक्ष रघुनंदन साहू व कबीर आश्रम मंदरौद के संत भुनेश्वर साहेब ने भी विचार रखें। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता व गणमान्य नागरिक भी बड़ी संख्या में उपस्थित रहें।