बता ऐ! ख़ुदा तू कहाँ सो रहा, शहर में धुआँ ही धुआँ हो रहा…’बल्लू-बल’

साहित्य,

बता ऐ! ख़ुदा तू कहाँ सो रहा,
शहर में धुआँ ही धुआँ हो रहा।
ये तेरा बनाया हुआ आदमी,
तुम्हारी धरा पे छुरा बो रहा।
बुढ़ापे की लाठी गई हाथ से,
सहारा इधर का उधर हो रहा।
मुझे मौत ही अब लगे बेहतर,
मेरी ज़िन्दगी का सफ़र खो रहा।
कई रात से यार सोए नहीं,
धमाका यहाँ हर पहर हो रहा।
किसी को किसी की नहीं है खबर,
बगल में खड़ा आदमी खो रहा।
महल भी रहा ना रही झोपड़ी,
ज़मीदोज़ होकर कुआँ हो रहा।
इबादत तुम्हीं से करूँ आख़िरी,
तेरा ही रहे वो तेरा जो रहा।
बताओ यहाँ बल करे और क्या,
धरा तो धरा, आसमाँ रो रहा।

  -:बल्लू-बल
(थानखम्हरिया)