साहित्य,
प्रेम का दीप जलाना सीखो,
दिल का भेद हटाना सीखो।
करो नहीं अपनों से घृणा,
ईर्ष्या – द्वेष मिटाना सीखो।।
चलो, एक दस्तूर हो जाये,
जिससे वो मजबूर हो जाये।
एक दीपक ऐसा जलाना ,
जो खुदा को मंजूर हो जाये।।
ये रौशनी का पर्व है, माना,
पर एक काम करके जाना।
सारे पुराने घाव मिटाकर ,
दुश्मन को भी गले लगाना।।
आज उन्हें भी करना याद,
लाकर होठों पे फरियाद ।
कुर्बानी दी हमारे खातिर,
जो वतन के हैं सैंयाद ।।
अगर वो रूठे, जग रूठेगा,
हर किसी का दिल टूटेगा।
एक दीप उनके नाम जलाना,
वरना न तन से जाँ छूटेगा।।
-: बल्लू-बल