प्यार का मीठा कहाँ उन्वान है,
अब लबों से खो गई मुस्कान है|
मौन लगती न्याय की पुस्तक मुझे,
हक़ नहीं बस आजकल अनुदान है|
आपके ही साथ होंगे लोग सब,
ये भरम है, आपका अभिमान है|
सत्य की पड़ताल कैसे हो भला,
थैलियों में कैद अब ईमान है|
द्वार पर साँकल लगी है देर से,
जान कर भी वह बहुत अंजान है|
हो गया भाषण समोसे भी बँटे,
गीत का किसने लिया संज्ञान है|
अब तिरंगा बाँधकर रख दो कहीं,
अब यहाँ बस मौज का सामान है|
दिल में मेरे आप ही रहते सदा,
कौन मुझसे अब अधिक धनवान है|
-:राजेश जैन ‘राही’ (रायपुर)