साहित्य,
नादबह्म
दो शब्दों का योग है।
नाद मतलब कलरव, ध्वनि।
बह्म मतलब प्रातः काल ।
बह्म मुहुर्त में अन्तरमन की आवाज को एकाग्रता से सुनना ही नादबह्म कहलाता है।
यह दिन भर हमें आन्दित रखता है ।
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड अपने ही अन्दर है ।
इसे पाने के लिए ध्यान, साधना की जरूरत होती है।जिससे मन में ओज बना रहता है । और एक दिव्य शक्ति हमें सकारात्मकता की ओर बढ़ने को प्रेरित करती है। जिससे जीवन में आंनद की अनुभूति होती है।
नादब्रह सुनने के लिए सर्वप्रथम ध्यान मग्न होकर ऊँ का उच्चारण करें । फिर भ्रामरी योग कर एकाग्रता से सांसों की सरगम को सुने ।
और स्वयं से स्व का स्वमान कर आंनद की अनुभूति कर दिनभर स्वयं को चार्ज रखे ।
आज के समय में लोग मोबाइल को भगवान समझ बैठे हैं ।उठते ही मोबाइल में लग जाते हैं । ध्यान साधना के लिए वक्त ही नहीं दे पाते। जैसे जमीन को उपजाऊ बनाने के लिए उर्वरा की जरूरत होती है ।
वैसे ही आत्मा को परमात्मा से साक्षात्कार के लिए ध्यान साधना की जरूरत होती है।
सभी को नादबह्म कर परम आनंद का अनुभव लेना चाहिए ।
-संगीता गुप्ता