नव दुर्गा का सार गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

नवरात्रि का उत्सव  आत्म-अनुभव  का समय है, स्रोत पर वापस जाने का समय है। इस समयावधि में साधक उपवास, प्रार्थना, ध्यान और मौन धारण करते हैं। जिससे हमें हमारे अस्तित्व के भौतिक, सूक्ष्म और कारण तीनों  स्तरों पर राहत मिलती है। उपवास शरीर को शुद्ध करता है, मौन वाणी को शुद्ध करता है और अनवरत विचार करने वाले मन को विश्राम देता है, और ध्यान व्यक्ति को स्वयं के निकट  ले जाता है।

हम देखते हैं कि नवरात्रि के दौरान देवी की पूजा नौ रूपों में की जाती है। हर रूप और नाम में एक देवत्व को पहचानना ही नवरात्रि है।

शैलपुत्री (प्रथम रात्रि)

शैलपुत्री शिखर (शैल) की पुत्री है। सामान्य व्याख्या यह है कि वह हिमालय पर्वत की पुत्री है, लेकिन यह एक स्थूल समझ है। योग के पथ पर इसका अर्थ उच्चतम स्तर की चेतना है । जब ऊर्जा अपने चरम पर होती है, तभी आप उसे पहचान सकते हैं,  केवल तभी शुद्ध चेतना का अनुभव किया जा सकता है। यहाँ शिखर का तात्पर्य किसी तीव्र अनुभूति के शिखर से है। जब आप किसी भावना के साथ सौ प्रतिशत होते हैं, और यह आपके पूरे अस्तित्व को विलीन कर लेती है, तो वास्तव में देवी दुर्गा का जन्म होता है; बिल्कुल बच्चों की तरह, जिन्हें सौ प्रतिशत गुस्सा आता है और फिर वो कुछ ही मिनटों में इससे बाहर हो जाते हैं

ब्रह्मचारिणी (द्वितीय रात्रि)
यह हमारी चेतना का वह पहलू है जो शुद्ध, निर्मल और कुंवारी है।यह सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त देवी का प्रतीक है। यह ऊर्जा ब्रह्म में निवास करती है, जो हमें ब्रह्म की ओर ले जाती है।

चंद्रघंटा (तृतीय रात्रि)
यह चंद्रमा और घंट धारण करती है। कहा जाता है कि लाखों चंद्रमाओं की सुंदरता हमारी ही चेतना में मौजूद होती है। वह उत्थान चेतना जो सौंदर्य को धारण और प्रदर्शित करती है, चंद्रघंटा है। क्या आप जानते हैं कि घंटनाद होने पर क्या होता है? उस ध्वनि से चेतना भर जाती है। अन्य सभी विचार और चिंताएं ध्वनि में विलीन हो जाती हैं। आप आनंदमय स्थिति में आ जाते हैं।

कुष्मांडा (चतुर्थ रात्रि)
यह देवी का ऊर्जा के एक गोले का रूप है । जब भी आप अपने भीतर ऊर्जा के एक गोले का अनुभव करें, तो जान लें कि यह देवी का एक पहलू है। कूष्मांडा कद्दू को भी संदर्भित करता है, क्योंकि सब्जियों में सबसे अधिक प्राण होता है।

स्कंदमाता (पंचम रात्रि)
स्कंदमाता गर्वित मातृत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं। स्कंद सेनापति हैं। एक सैनिक की मां की गरिमा बहुत भिन्न होती है। आमतौर पर माताओं  को संतान की फ़िक्र होती है लेकिन स्कंद की माता को कोई चिंता नहीं है क्योंकि वह जानती हैं कि उनका पुत्र ग्रह की रक्षा करेगा। आत्मविश्वास और गर्व के साथ प्रेम स्कंदमाता का गुण है।कात्यायनी (षष्ठी रात्रि )
एक साधु थे, जिनके मन में कोई इच्छा नहीं थी। लेकिन जब वह देवी माँ से प्रार्थना कर रही थे, तो वह प्रकट हुईं और पूछा, “तुम क्या चाहते हो?” साधु ने कहा, “मैं चाहता हूं कि तुम मेरी पुत्री हो और मेरा उपनाम धारण करो।” दुर्गा ने भक्त का उपनाम रखकर स्वयं को प्रकट किया । कात्यायनी देवी माँ की वह शक्ति है जो सभी इच्छाओं को पूर्ण करती है और वह चेतना जो आपकी सभी सीमित पहचानों को दूर करते हुए आपकी पहचान को अपना मान लेती है।

कालरात्रि (सप्तमी  रात्रि)
देवी कालरात्रि दुर्गा का उग्र रूप है। कालरात्रि काली रात या काली ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। रात्रि को भी देवी माँ का एक पहलू माना जाता है क्योंकि रात्रिकाल में हमारी आत्मा को सुकून, विश्राम और शांति का अनुभव होता है। रात्रिकाल के आकाश में अनंत की एक झलक मिलती है

महागौरी (अष्टमी रात्रि)
यह दुर्गा का सुंदर और निर्मल रूप है, जो जीवन में गति और स्वतंत्रता प्रदान करता है।
सिद्धिदात्री (नवमी रात्रि )
सिद्धिदात्री सिद्धि प्रदान करती हैं। पूर्णता प्राप्त कर लेने की भावना या पूर्णता की कमी, सीमित अस्तित्व को दर्शाते हुए आपके अहंकार को दृढ़ करती है। जब आपको लगता है कि आप पूर्ण नहीं हैं और देवी माँ आपको यह देने जा रही हैं, तब आप उस अभाव से बाहर आ जाते हैं। यदि आपको लगता है कि आपने अपने प्रयासों से जीवन में कुछ चीजें हासिल की हैं, तो यहां फिर से आपको एहसास होता है कि मां ने आपको यह उपहार दिया है। इसे महसूस करते ही, आप आत्मा की शुद्ध प्रकृति, देवी माँ की चेतना के साथ एक हो जाते हैं। इसलिए सिद्धि की प्राप्ति हमारे करने से नहीं है, बल्कि आपको दी जा रही है, यही सिद्धिदात्री है।हालांकि नवरात्रि को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है, लेकिन वेदांत की दृष्टि से, यह प्रत्यक्ष द्वैत पर पूर्ण वास्तविकता की विजय है।