तालिबानियों ने 15 से 45 साल तक की लड़कियां की लिस्ट मांगी

काबुल

 

तालिबान की वापसी से महिलाएं सबसे ज्यादा खौफजदा हैं, क्योंकि बीते दिनों कुछ प्रांतों पर कब्जे के बाद से ही उसके नेताओं ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। उन्होंने जुलाई की शुरुआत में बदख्शां और तखर स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ निकाह के लिए 15 साल से बड़ी लड़कियां और 45 साल से कम उम्र की विधवाओं की फेहरिस्त देने का हुक्म दिया था।

अगर यह निकाह हुए तो इन महिलाओं को पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाकर फिर से इस्लामी तालीम दी जाएगी। मानवाधिकार वादियों का कहना है कि अफगानिस्तान में महिलाओं को यौन दासता में धकेलने की इस तालिबानी कवायद से दुनिया को पहले की तरह नजरें नहीं फेरनी चाहिए।

महिलाओं को लेकर भाग रहे परिवार

मैकगिल यूनिवर्सिटी टोरंटो में विधि और मानवाधिकार की एसोसिएट प्रोफेसर वृंदा नारायण का कहना है काबुल पहुंचने से पहले ही इस तरह के तालिबानी आदेश ने देश की महिलाओं-बेटियों और उनके परिवारों में बड़ा गहरा खौफ पैदा कर दिया है। आलम यह है कि पिछले 3 महीनों में ही करीब 9 लाख लोग विस्थापित हुए हैं।

आंखों में तैर रहा 1996 का भयावह मंजर

तालिबान का ताजा आदेश सख्त चेतावनी है कि आने वाले दिनों में अफगानिस्तान का भविष्य क्या है। साथ ही 1996-2001 में उसके क्रूर शासन की भी यादें ताजा करता है। जब महिलाओं के अधिकारों पर तरह-तरह के जुल्म किए गए। उन्हें शिक्षा से दूर रखा गया, बुर्का पहनने पर मजबूर किया गया और बिना पुरुष संरक्षक के घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई।

अफगानिस्तान में महिलाओं की स्थिति को लेकर पाकिस्तानी युवा सामाजिक कार्यकर्ता और नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसूफजई ने भी चिंता जाहिर की है। तालिबानी आतंकवाद दंश झेल चुकीं मलाला ने कहा जिस तरह तालिबान अफगानिस्तान में वापस आया है, उससे हम पूरी तरह स्तब्ध हैं।

अफगानिस्तान में महिलाओं को लेकर चिंतित हूं: मलाला यूसुफजई

मलाला ने कहा कि मैं महिलाओं अल्पसंख्यकों और मानवाधिकारों के बारे में बहुत चिंतित हूं। 24 वर्षीय मलाला ने एक ट्वीट में अफगानी नागरिकों और शरणार्थियों की सुरक्षा पर जोर देते हुए कहा कि वैश्विक, क्षेत्रीय और स्थानीय ताकतों को फौरन युद्ध विराम का आह्वान करना चाहिए।

20 वर्षों की बढ़त खोने का डर

तालिबान भले ही दावा करे कि उसने महिलाओं के अधिकारों पर अपना रुख बदल लिया है लेकिन ताजा आदेशों और हजारों महिलाओं को यौन दासता में धकेलने के इरादे ने उसके दावों की पोल खोल दी है। वैश्विक समुदाय की मौजूदगी में बीते 20 वर्षों में अफगानी महिलाओं ने जो जीवन स्तर हासिल किया था, खासतौर पर शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक भागीदारी, वह अब खतरे में है।

जिनेवा कन्वेंशन ने मारा मानवता के खिलाफ अपराध

आतंकवादियों को लुभाने के मकसद से पत्नियों की पेशकश करना तालिबान की एक रणनीति है। जिनेवा कन्वेंशन के अनुसार, दुष्कर्म और जबरन वेश्यावृत्ति के खिलाफ महिलाओं का बचाव किया जाना चाहिए। 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने घोषणा की थी कि यौन हिंसा का कोई भी रूप युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध हो सकते हैं।

संयुक्त राष्ट्र को निभानी होगी निर्णायक भूमिका

अब जब तालिबान अफगानिस्तान पर पूर्ण कब्जा कर चुका है, तो संयुक्त राष्ट्र को महिलाओं पर अत्याचार रोकने के लिए निर्णायक भूमिका निभानी होगी। तालिबान के खिलाफ प्रतिबंध हटाने की शर्तों में महिला अधिकार को कायम रखने की प्रतिबद्धता शामिल हो।
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तालिबान की वापसी से महिलाएं सबसे ज्यादा खौफजदा हैं, क्योंकि बीते दिनों कुछ प्रांतों पर कब्जे के बाद से ही उसके नेताओं ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया था। उन्होंने जुलाई की शुरुआत में बदख्शां और तखर स्थानीय धार्मिक नेताओं को तालिबान लड़ाकों के साथ निकाह के लिए 15 साल से बड़ी लड़कियां और 45 साल से कम उम्र की विधवाओं की फेहरिस्त देने का हुक्म दिया था।

अगर यह निकाह हुए तो इन महिलाओं को पाकिस्तान के वजीरिस्तान ले जाकर फिर से इस्लामी तालीम दी जाएगी। मानवाधिकार वादियों का कहना है कि अफगानिस्तान में महिलाओं को यौन दासता में धकेलने की इस तालिबानी कवायद से दुनिया को पहले की तरह नजरें नहीं फेरनी चाहिए।

महिलाओं को लेकर भाग रहे परिवार

मैकगिल यूनिवर्सिटी टोरंटो में विधि और मानवाधिकार की एसोसिएट प्रोफेसर वृंदा नारायण का कहना है काबुल पहुंचने से पहले ही इस तरह के तालिबानी आदेश ने देश की महिलाओं-बेटियों और उनके परिवारों में बड़ा गहरा खौफ पैदा कर दिया है। आलम यह है कि पिछले 3 महीनों में ही करीब 9 लाख लोग विस्थापित हुए हैं।

आंखों में तैर रहा 1996 का भयावह मंजर

तालिबान का ताजा आदेश सख्त चेतावनी है कि आने वाले दिनों में अफगानिस्तान का भविष्य क्या है। साथ ही 1996-2001 में उसके क्रूर शासन की भी यादें ताजा करता है। जब महिलाओं के अधिकारों पर तरह-तरह के जुल्म किए गए। उन्हें शिक्षा से दूर रखा गया, बुर्का पहनने पर मजबूर किया गया और बिना पुरुष संरक्षक के घर से बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई।

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