दीपावली विशेष : सुआगीत
सुआ लोकगीत छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यतः गोंड़ जनजाति की महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला नृत्य-गीत है। “सुआ” का अर्थ होता है, ‘तोता’, जो रटी-रटायी बातों को बोलता है।
महिलाएं पारंपरिक श्रृंगार के साथ बाँस की टोकनी में भरे धान के ऊपर तोते की प्रतिमा रखकर और उसके चारो ओर वृत्ताकार में ताली बजाकर नाचती हुए मधुर स्वर में गाती हैं। यह दिपावली के कुछ दिन पूर्व से आरम्भ होकर दिवाली के दिन तक गाया जाता है।
सुआ मुख्यतः वियोग एवं श्रृंगार प्रधान लोकगीत है। लेकिन सामाजिक एवं आध्यात्मिक सन्देश देने के लिए भी अनेक सुआ गीत प्रचलन में है।
प्रस्तुत लोकगीत में एक स्त्री अपने मन की व्यथा तोते को इस विश्वास के साथ कहती है कि वह उसका सन्देश दूर देश गए प्रिय तक पहुँचायेगा।
डॉ आदित्य शुक्ल के द्वारा प्रस्तुत सुआ लोकगीत को युटुब पर बहुत ज्यादा देखा पसंद किया जा रहा है.
छत्तीसगढ़ी सुआ लोकगीत के मिठास के साथ आपको सपरिवार दीपावली की हार्दिक मंगलकामनाएँ।