जहां पर सब कार्य सुन्दर हो वह सुंदरकांड है – श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी)

अध्यात्म ।। श्रीमती कल्पना शुक्ला ।।  आज श्रीराम कथा के आठवें दिन पर परम पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरु जी) ने सुंदरकांड की कथा बताएं और यह बताएं कि सुंदरकांड में सुंदर पर्वत पर चढ़कर हनुमान जी सब कार्य सुंदर ही किए, राक्षसों का नाश,विभीषण का राजतिलक राम के द्वारा, लंका दहन, माता सीता का पता लगाना, ईर्ष्या रूपी सिंघिका का वध करना, सेतु निर्माण ,सभी कार्य सुंदर ही किए, इसलिए इस कथा का नाम भी सुंदर कांड है।

हनुमान जी की यात्रा मनुष्य के जीवन की यात्रा है, किसके संग कैसा व्यवहार करना चाहिए हनुमान जी सीखा रहे हैं, लोभ रूपी मैनाक पर्वत को दूर से प्रणाम करते है, किसी के पुत्र बन गए और किसी को मार देते हैं ,ईर्ष्या रूपी सिंघिका को मार देते है।सिंघिका के माध्यम से यह बताएं कि ईर्ष्या का भाव जब मन में आ जाए तो वह किसी को आगे बढ़ने नहीं देता जलन जब होता है वह किसी को आगे नहीं बढ़ते देख सकता और उसके कार्य में विघ्न जरूर पैदा करता है ,सिंघिका भी हनुमान जी के साथ वही कर रही है यह प्रवृत्ति मनुष्य में भी होती है जब मन में ईर्ष्या, जलन हो तो किसी को आगे बढ़ते हुए नहीं देख पाते है। आगे गुरुजी यह बताए कि

जो अपने घर में बड़े बुजुर्गों का सम्मान करता है उसकी बात सुन लेता है वही सफल होता है

हनुमान जी जामवंत की बात सुनते हैं और मानते भी है, लंका की यात्रा में सफल होते हैं सम्मान प्राप्त करते हैं । वहीं पर रावण अपने नाना मल्यवंत की बात नहीं सुनते हैं और उसको अपमानित करते हैं सब जगह उसे भी अपमानित होकर पराजित होना पड़ता है।

भ्रमित जीवन तब होता है जब हमारे मन तमाम तरह के नकारात्मक प्रश्न आने लग जाता है और हम पूरा जीवन काम में ही बिता देते हैं भगवान की कथा ना जाने के कारण मन हमेशा खिन्न होता है जब हम साधना आरंभ करके संसार रूपी समुद्र को पार करेंगे तब शांति की प्राप्त होगी । हनुमान जी हमेशा अहंकार से बचते हैं जब अहंकार हो जाता है तो हम अपने आराध्य से भगवान से दूर हो जाते हैं इसलिए हर पल हनुमान जी कार्य करते हैं लेकिन उसमें दिखावा नहीं करते हैं और भगवान से कहते हैं कि मेरी रक्षा करो अहंकार से, सब कुछ अपने आराध्य श्री राम के ऊपर छोड़ देते हैं जब हम सब कुछ अपने आराध्य पर छोड़ते हैं तो भगवान हमारी रक्षा करते हैं।