जलवायु शिखर सम्मेलन में PM मोदी ने दुनिया को चेताया, जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से कोई भी नहीं बच पाया

नई दिल्ली,

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को छोटे द्वीपीय देशों में बुनियादी ढांचे के विकास की खातिर, “छोटे द्वीपीय देशों के लिए लचीली आधारभूत संरचना” (आईआरआईएस) पहल की शुरुआत की और कहा कि यह सबसे संवेदनशील देशों के लिए कुछ करने की नई उम्मीद, नया आत्मविश्वास और संतोष प्रदान करती है. जलवायु शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन यहां इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन भी मौजूद थे. इस कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस भी शामिल हुए.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘पिछले कुछ दशकों ने साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से कोई भी देश नहीं बच पाया है. चाहे वे विकसित देश हों या प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश, यह सभी के लिए एक बड़ा खतरा है.’ उन्होंने कहा कि छोटे द्वीपीय विकासशील देशों या एसआईडीएस को जलवायु परिवर्तन से सबसे बड़े खतरे का सामना करना पड़ता है और भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो उनके लिए एक विशेष ‘डेटा विंडो’ बनाएगी ताकि उन्हें उपग्रह के जरिए चक्रवात, ‘कोरल-रीफ’ निगरानी, ​​तट-रेखा निगरानी आदि के बारे में समय पर जानकारी प्रदान की जा सके.

इस कार्यक्रम के साथ ही विश्व नेताओं के शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत हुई. यह पहल आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन का हिस्सा है जिसके तहत विशेष रूप से छोटे द्वीपीय विकासशील देशों में प्रायोगिक परियोजनाओं के साथ क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना है.

‘पेरिस समझौते का पालन कर रहा है भारत’

सम्मेलन के पहले दिन सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साहसिक घोषणा करते हुए कहा कि भारत वर्ष 2070 में कुल शून्य उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करेगा. इसके साथ ही उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत एकमात्र देश है जो पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ‘उसकी भावना’ के तहत ‘अक्षरश:’ कार्य कर रहा है. ब्रिटेन के ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र सीओपी-26 के राष्ट्राध्यक्ष और शासनाध्यक्ष सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए मोदी ने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है और इसके नतीजे दिखाएगा. मोदी ने यह भी कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन को अपनी नीतियों के केंद्र में रख रहा है और जोर दिया कि जलवायु अनकूलन नीतियों को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए ताकि अगली पीढ़ी इन समस्याओं के प्रति जागरूक हो.