जब शिष्य ह्रदय से पुकार करें गुरु जरूर आते हैं,भक्त भगवान को ह्रदय से याद करें भगवान प्रकट हो जाते हैं….श्री संकर्षण शरण जी (गुरूजी)

गुरु वाणी,
पूज्य गुरुदेव श्री संकर्षण शरण जी (गुरूजी) के मुखारबृन्द से रामचरितमानस की कथा हम सभी शिष्यों को सुनने का परम् सौभाग्य प्राप्त हो रहा है कथा के माध्यम से पूज्य गुरुदेव जी ने यह बताएं कि रावण जब भगवान भोलेनाथ की स्तुति करते हैं आवाहन करते हैं भगवान भोलेनाथ बालू से बने ज्योतिर्लिंग में प्रकट हो जाते हैं। भरोसा होनी चाहिए हम जिसकी पूजा करते हैं जिसको अपना आराध्य मानते हैं उस पर भरोसा होनी चाहिए, भाव होनी चाहिए जब भाव से पुकारते  हैं भगवान जरूर सुनते हैं ।
रावण भक्त है और भगवान शिव की स्तुति कर रहे हैं सामने स्वयं नारायण है राम है और माता सीता भी है सबका एक साथ दर्शन करने का परम् सौभाग्य रावण को प्राप्त हो रहा है ।
भगवान स्वयं समस्त कर्ता होते हुए भी अकर्ता बनकर हम मनुष्य को श्रेय दे देते हैं:
 भगवान कितना शान से हमें देते हैं और हम कितना अभिमान से लेते हैं सब कुछ मेरा है सब कुछ मैं हूं  जबकि समस्त ब्रह्मांड तो परमात्मा के आधीन  हैं ।
भगवान ने रामेश्वर धाम की महिमा का वर्णन करते हुए पूज्य गुरुदेव जी ने बताए कि जो सेतु में जाकर भगवान में सेतु का दर्शन करता है वह भवसागर से पार हो जाता है, जो जल चढ़ाता है भगवान उस में प्रवेश कर लेता है ,और जो विधिवत पूजा -पाठ करते हैं भगवान उसको सारे कष्ट दूर करते हैं । इस तरह रामेश्वर धाम की महिमा पूज्य गुरुदेव द्वारा बताया गया।
कर्म ही मनुष्य को ऊंचाई तक ले जाता है और कर्म ही मनुष्य को नीचे गिरा देता है:
जब मनुष्य अच्छा कार्य करता है तो ऊंचाई में पहुंच जाता है और जब अहंकार और मोह के वशीभूत होकर कोई कार्य करता है अहंकार की तृप्ति के लिए करता है वह पत्थर की तरह एक  दिन नीचे गिर जाता है जिस तरह पत्थर को कितना भी ऊपर फेक दें नीचे ही गिरता है । मनुष्य अपने कर्मों के माध्यम से ही जाना जाता है सेतु बांधते समय पत्थर को कर्म के रूप में दिखाया गया जब उस कर्म में ज्ञान और वैराग्य का स्पर्श हो  नल और नील को ज्ञान और वैराग्य के रूप में बताया गया साथ में भगवान का नाम हो, उसके साथ भक्ति जुड़ जाए वह लोगों को पार करने वाला हो जाता है खुद पार हो जाता है और लोगों को भी पार कर देता है ।
नल और नील के माध्यम से पूज्य गुरुदेव जी यह बताएं कि जब हम कुछ अच्छा कार्य करते हैं और ऊंचाई को प्राप्त करते हैं लेकिन पुण्य कर्म क्षीण हो जाने के बाद फिर से नीचे गिर जाते हैं अर्थात अच्छा कार्य करके छोड़ देते हैं जब पुण्य कर्म समाप्त होता है हम फिर से अपनी अवस्था में आ जाते हैं और यदि पुण्य कर्म करते रहे तो हमेशा ऊंचाई बनी रहती है तो अवसर देखकर हमेशा यह पूजा-पाठ पुण्य कर्म करते रहना चाहिए, हमेशा ऊंचाई बनी रहेगी ।
ज्ञानिनामग्रगण्यम् और उसमें हनुमानजी मार्ग युक्ति बताते हैं और राम का नाम लिखकर के सेतु को जोड़ देते हैं जो पत्थर इधर-उधर तैर रहे थे उस को पूल बना देते हैं क्योंकि भगवान स्वयं पूरे संसार को बांधे हुए हैं । जब गुरु का मार्गदर्शन हो फिर कोई भी कार्य में सफलता जरूर मिलती हैं हमें उसके अनुसार चलने की आवश्यकता होती है, इस तरह सेतु का निर्माण होता है , जो सब को पार करने वाला बन जाता है ।