गुरु नानक देव का संदेश नाम जपो, किरत करो और वंड के शक्को

आलेख : तेजपाल सिंह हंसपाल

श्री गुरुनानक देव जी सिक्ख धर्म के संस्थापक और सिक्ख धर्म के पहले गुरु थे। उनके बारे ये बात खास रुप से कही जाती है कि वे मानवता के पुजारी थे और उन्होनें पूरे विश्व को मानवता और भाईचारे का संदेश दिया। श्री गुरुनानक देव जी ने अपने शिष्यों को एक मूल मंत्र दिया था कि नाम जपो, किरत करो और वंड के शक्को

     उनका पहला मूल मंत्र है नाम जपो इसके संदर्भ में श्री गुरु नानक देव जी ने कहा है कि – ‘सोचै सोचि न होवईजो सोची लखवार। चुपै चुपि न होवईजे लाई रहा लिवतार। यानी ईश्वर का रहस्य सिर्फ सोचने से नहीं जाना जा सकता है, इसलिए नाम जपे। नाम जपना यानी ईश्वर का नाम बार-बार सुनना, उसका स्मरण करना और दोहराना। नानक जी ने इसके दो तरीके बताए हैं – संगत में रहकर जप किया जाए। संगत यानी पवित्र संतों की मंडली। या एकांत में जप किया जाए। जप से चित्त एकाग्र हो जाता है और आध्यात्मिक-मानसिक शक्ति मिलती है और मनुष्य का तेज बढ़ जाता है।

     दूसरा मूल मंत्र है किरत करो – यानी ईमानदारी से मेहनत कर आजीविका कमाना। श्रम की भावना सिख अवधारणा का भी केंद्र है। इसे स्थापित करने के लिए नानक जी ने एक अमीर जमींदार के शानदार भोजन की तुलना में गरीब के कठिन श्रम के माध्यम से अर्जित किए गए मोटे अनाज वाले भोजन को प्राथमिकता दी थी।

      तीसरा मूल मंत्र है वंड छको- एक बार गुरु नानक जी दो बेटों और लेहना (गुरु अंगद देव) के साथ थे। सामने एक शव ढंका हुआ था। नानक जी ने पूछा- इसे कौन खाएगा। बेटे मौन थे। लेहना ने कहा- मैं खाऊंगा। उन्हें गुरु पर विश्वास था। कपड़ा हटाने पर पवित्र भोजन मिला। लेहना ने इसे गुरु को समर्पित कर ग्रहण किया। नानक जी ने कहा- लेहना को पवित्र भोजन मिला, क्योंकि उसमें समर्पण का भाव और विश्वास की ताकत है। सिख इसी आधार पर आय का दसवां हिस्सा साझा करते हैं, जिसे दसवंत कहते हैं। इसी से लंगर चलता है।

     गुरुनानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में ग्राम तलवंडी में श्री मेहता कालू के घर में हुआ था। इनकी माता का नाम माता तृप्ता था। इनकी एक बड़ी  बहन थी जिसका नाम नानकी थी। उनका जन्म सिक्ख धर्म में गुरुपर्व क रुप में मनाया जाता है। तलवंडी का नाम बाद में बदल कर ननकाना सहिब कर दिया गया जो अब पाकिस्तान में है। श्री गुरु नानक देव जी ने करतारपुर नाम का एक शहर बसाया था जो अब पाकिस्तान में पंजाब की सीमा से लगा हुआ है। यह स्थल आज पूरे विश्व भर के सिक्खों का एक बहुत ही पूज्यनीय स्थलों में से एक है।

आलेख : तेजपाल सिंह हंसपाल,4 फाफाडीह नाका, रायपुर (छत्तीसगढ़)

 

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