दसवीं अनुसूची
(अनुच्छेद 102 (2) और अनुच्छेद 191 (2))
दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में उपबंध
1. निर्वचन-
इस अनुसूची में जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-
(क) ‘सदन’ से, संसद का कोई सदन या किसी राज्य की, यथास्थिति, विधान सभा या, विधान-मंडल का कोई सदन अभिप्रेत है;
(ख) सदन के किसी ऐसे सदस्य के संबंध में जो, यथास्थिति, पैरा 2 या पैरा 3 या पैरा 4 के उपबंधों के अनुसार किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, ‘विधान-दल’ से, उस सदन के ऐसे सभी सदस्यों का समूह अभिप्रेत है जो उक्त उपबंधों के अनुसार तत्समय उस राजनीतिक दल के सदस्य हैं;
(ग) सदन के किसी सदस्य के संबंध में, ‘मूल राजनीतिक दल’ से ऐसा राजनीतिक दल अभिप्रेत है जिसका वह पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए सदस्य है;
(घ) ‘पैरा’ से इस अनुसूची का पैरा अभिप्रेत है।
2. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता-
(1) पैरा 3, पैरा 4 और पैरा 5 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सदन का कोई सदस्य, जो किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, सदन का सदस्य होने के लिए उस दशा में निरर्हित होगा जिसमें-
(क) उसने ऐसे राजनीतिक दल की अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है; या
(ख) वह ऐसे राजनीतिक दल द्वारा जिसका वह सदस्य है अथवा उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा दिए गए किसी निदेश के विरुद्ध, ऐसे राजनीतिक दल, व्यक्ति या प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, ऐसे सदन में मतदान करता है या मतदान करने से विरत रहता है और ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने को ऐसे राजनीतिक दल, व्यक्ति या प्राधिकारी ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर माफ नहीं किया है।
स्पष्टीकरण- इस उपपैरा के प्रयोजनों के लिए, –
(क) सदन के किसी निर्वाचित सदस्य के बारे में यह समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल का, यदि कोई हो, सदस्य है जिसने उसे ऐसे सदस्य के रूप में निर्वाचन के लिए अभ्यर्थी के रूप में खड़ा किया था;
(ख) सदन के किसी नामनिर्देशित सदस्य के बारे में, –
(1) उस दशा में, जिसमें वह ऐसे सदस्य के रूप में अपने नामनिर्देशन की तारीख को किसी राजनीतिक दल का सदस्य है, यह समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल का सदस्य है;
(2) किसी अन्य दशा में, यह समझा जाएगा कि वह उस राजनीतिक दल का सदस्य है जिसका, यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188 की अपेक्षाओं का अनुपालन करने के पश्चात् अपना स्थान ग्रहण करने की तारीख से छह मास की समाप्ति के पूर्व वह, यथास्थिति, सदस्य बनता है या पहली बार बनता है।
(2) सदन का कोई निर्वाचित सदस्य, जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए अभ्यर्थी से भिन्न रूप में सदस्य निर्वाचित हुआ है, सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह ऐसे निर्वाचन के पश्चात् किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाता है।
(3) सदन का कोई नामनिर्देशित सदस्य, सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा यदि वह, यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188 की अपेक्षाओं का अनुपालन करने के पश्चात् अपना स्थान ग्रहण करने की तारीख से छह मास की समाप्ति के पश्चात् किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाता है।
(4) इस पैरा के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, किसी ऐसे व्यक्ति के बारे में जो, संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 के प्रारंभ पर, सदन का सदस्य है (चाहे वह निर्वाचित सदस्य हो या नामनिर्देशित) –
(1) उस दशा में, जिसमें वह ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले किसी राजनीतिक दल का सदस्य था वहाँ, इस पैरा के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, यह समझा जाएगा कि वह ऐसे राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए अभ्यर्थी के रूप में ऐसे सदन का सदस्य निर्वाचित हुआ है;
(2) किसी अन्य दशा में, यथास्थिति, इस पैरा के उपपैरा (2) के प्रयोजनों के लिए, यह समझा जाएगा कि वह सदन का ऐसा निर्वाचित सदस्य है जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए अभ्यर्थी से भिन्न रूप में सदस्य निर्वाचित हुआ है या, इस पैरा के उपपैरा (3) के प्रयोजनों के लिए, यह समझा जाएगा कि वह सदन का नामनिर्देशित सदस्य है।
1. संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 6 द्वारा (1-3-1985 से) जोड़ा गया।
3. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता का दल विभाजन की दशा में लागू न होना-
जहाँ सदन का कोई सदस्य यह दावा करता है कि वह और उसके विधान-दल के कोई अन्य सदस्य ऐसे गुट का प्रतिनिधित्व करने वाला समूह गठित करते हैं जो उसके मूल राजनीतिक दल के विभाजन के परिणामस्वरुप उत्पन्ना हुआ है और ऐसे समूह में ऐसे विधान-दल के कम से कम एक तिहाई सदस्य हैं
वहाँ –
(क) वह पैरा 2 के उपपैरा (1) के अधीन इस आधार पर निरर्हित नहीं होगा कि-
(1) उसने अपने मूल राजनीतिक दल की अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ दी है; या
(2) उसने ऐसे दल द्वारा अथवा उसके द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति या प्राधिकारी द्वारा दिए गए किसी निदेश के विरुद्ध, ऐसे दल, व्यक्ति या प्राधिकारी की पूर्व अनुज्ञा के बिना, ऐसे सदन में मतदान किया है या वह मतदान करने से विरत रहा है और ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने को ऐसे दल, व्यक्ति या प्राधिकारी ने ऐसे मतदान या मतदान करने से विरत रहने की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर माफ नहीं किया है; और
(ख) ऐसे दल विभाजन के समय से, ऐसे गुट के बारे में यह समझा जाएगा कि वह, पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, ऐसा राजनीतिक दल है जिसका वह सदस्य है और वह इस पैरा के प्रयोजनों के लिए उसका मूल राजनीतिक दल है।
4. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता का विलय की दशा में लागू न होना-
(1) सदन का कोई सदस्य पैरा 2 के उपपैरा (1) के अधीन निरर्हित नहीं होगा यदि उसके मूल राजनीतिक दल का किसी अन्य राजनीतिक दल में विलय हो जाता है और वह यह दावा करता है कि वह और उके मूल राजनीतिक दल के अन्य सदस्य-
(क) यथास्थिति, ऐसे अन्य राजनीतिक दल के या ऐसे विलय से बने नए राजनीतिक दल के सदस्य बन गए हैं; या
(ख) उन्होंने विलय स्वीकार नहीं किया है और एक पृथक् समूह के रुप में कार्य करने का विनिश्चय किया है, और ऐसे विलय के समय से, यथास्थिति, ऐसे अन्य राजनीतिक दल या नए राजनीतिक दल या समूह के बारे में यह समझा जाएगा कि वह, पैरा 2 के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, ऐसा राजनीतिक दल है जिसका वह सदस्य है और वह इस उपपैरा के प्रयोजनों के लिए उसका मूल राजनीतिक दल है।
(2) इस पैरा के उपपैरा (1) के प्रयोजनों के लिए, सदन के किसी सदस्य के मूल राजनीतिक दल का विलय हुआ तभी समझा जाएगा जब संबंधित विधान-दल के कम से कम दो तिहाई सदस्य ऐसे विलय के लिए सहमत हो गए हैं।
5. छूट-
इस अनुसूची में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति, जो लोक सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा के उपसभापति अथवा किसी राज्य की विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति अथवा किसी राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद पर निर्वाचित हुआ है, इस अनुसूची के अधीन निरर्हित नहीं होगा,-
(क) यदि वह, ऐसे पद पर अपने निर्वाचन के कारण ऐसे राजनीतिक दल की जिसका वह ऐसे निर्वाचन से ठीक पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता स्वेच्छा से छोड़ देता है और उसके पश्चात् जब तक वह पद धारण किए रहता है तब तक, उस राजनीतिक दल में पुनः सम्मिलित नहीं होता है या किसी दूसरे राजनीतिक दल का सदस्य नहीं बनता है; या
(ख) यदि वह, ऐसे पद पर अपने निर्वाचन के कारण, ऐसे राजनीतिक दल की जिसका वह ऐसे निर्वाचन से ठीक पहले सदस्य था, अपनी सदस्यता छोड़ देता है और ऐसे पद पर न रह जाने के पश्चात् ऐसे राजनीतिक दल में पुनः सम्मिलित हो जाता है।
6. दल परिवर्तन के आधार पर निरर्हता के बारे में प्रश्नों का विनिश्चय-
(1) यदि यह प्रश्न उठता है कि सदन का कोई सदस्य इस अनुसूची के अधीन निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न, ऐसे सदन के, यथास्थिति, सभापति या अध्यक्ष के विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा और उसका विनिश्चय अंतिम होगा:
परंतु जहाँ यह प्रश्न उठता है कि सदन का सभापति या अध्यक्ष निरर्हता से ग्रस्त हो गया है या नहीं वहाँ वह प्रश्न सदन के ऐसे सदस्य के विनिश्चय के लिए निर्देशित किया जाएगा जिसे वह सदन इस निमित्त निर्वाचित करे और उसका विनिश्चय अंतिम होगा।
(2) इस अनुसूची के अधीन सदन के किसी सदस्य की निरर्हता के बारे में किसी प्रश्न के संबंध में इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन सभी कार्यवाहियों के बारे में यह समझा जाएगा कि वे, यथास्थिति, अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियां हैं या अनुच्छेद 212 के अर्थ में राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाहियाँ हैं।
7. न्यायालयों की अधिकारिता का वर्जन-
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, किसी न्यायालय को इस अनुसूची के अधीन सदन के किसी सदस्य की निरर्हता से संबंधित किसी विषय के बारे में कोई अधिकारिता नहीं होगी।
8. नियम-
(1) इस पैरा के उपपैरा (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, सदन का सभापति या अध्यक्ष, इस अनुसूची के उपबंधों
पैरा 7 को किहोतो होलोहन बनाम जोचिल्हु और अन्य (1992) 1 एस.सी.सी. 309 में बहुमत की राय के अनुसार अनुच्छेद 368 के खंड (2) के परंतुक के अनुसार अधिसूचना के अभाव में अविधिमान्य घोषित किया गया।
को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगा तथा विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध किया जा सकेगा, अर्थात् :-
(क) सदन के विभिन्न सदस्य जिन राजनीतिक दलों के सदस्य हैं, उनके बारे में रजिस्टर या अन्य अभिलेख रखना;
(ख) ऐसा प्रतिवेदन जो सदन के किसी सदस्य के संबंध में विधान-दल का नेता, उस सदस्य की बाबत पैरा 2 के उपपैरा (1) के खंड (ख) में निर्दिष्ट प्रकृति की माफी के संबंध में देगा, वह समय जिसके भीतर और वह प्राधिकारी जिसको ऐसा प्रतिवेदन दिया जाएगा।
(ग) ऐसे प्रतिवेदन जिन्हें कोई राजनीतिक दल सदन के किसी सदस्य को ऐसे राजनीतिक दल में प्रविष्ट करने के संबंध में देगा और सदन का ऐसा अधिकारी जिसको ऐसे प्रतिवेदन दिए जाएँगे; और
(घ) पैरा 6 के उपपैरा (1) में निर्दिष्ट किसी प्रश्न का विनिश्चय करने की प्रक्रिया जिसके अंतर्गत ऐसी जाँच की प्रक्रिया है, जो ऐसे प्रश्न का विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए की जाए।
(2) सदन के सभापति या अध्यक्ष द्वारा इस पैरा के उपपैरा (1) के अधीन बनाए गए नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, सदन के समक्ष, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखे जाएँगे। यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी।
वे नियम तीस दिन की उक्त अवधि की समाप्ति पर प्रभावी होंगे जब तक कि उनका सदन द्वारा परिवर्तनों सहित या उनके बिना पहले ही अनुमोदन या अननुमोदन नहीं कर दिया जाता है। यदि वे नियम इस प्रकार अनुमोदित कर दिए जाते हैं तो वे, यथास्थिति, ऐसे रूप में जिसमें वे रखे गए थे या ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होंगे। यदि नियम इस प्रकार अनुमोदित कर दिए जाते हैं तो वे निष्प्रभाव हो जाएँगे।
(3) सदन का सभापति या अध्यक्ष, यथास्थिति, अनुच्छेद 105 या अनुच्छेद 194 के उपबंधों पर और किसी ऐसी अन्य शक्ति पर जो उसे इस संविधान के अधीन प्राप्त है, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, यह निदेश दे सकेगा कि इस पैरा के अधीन बनाए गए नियमों के किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किए गए किसी उल्लंघन के बारे में उसी रीति से कार्रवाई की जाए जिस रीति से सदन के विशेषाधिकार के भंग के बारे में की जाती है।
ग्यारहवीं अनुसूची
(अनुच्छेद 243छ)
1. कृषि, जिसके अंतर्गत कृषि-विस्तार है।
2. भूमि विकास, भूमि सुधार का कार्यान्वयन, चकबंदी और भूमि संरक्षण।
3. लघु सिंचाई, जल प्रबंध और जलविभाजक क्षेत्र का विकास।
4. पशुपालन, डेरी उद्योग और कुक्कुट-पालन।
5. मत्स्य उद्योग।
6. सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी।
7. लघु वन उपज।
8. लघु उद्योग, जिनके अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी हैं।
9. खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग।
10. ग्रामीण आवासन।
11. पेय जल।
12. ईंधन और चारा।
13. सड़कें, पुलिया, पुल, फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन।
14. ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अंतर्गत विद्युत का वितरण है।
15. अपारंपरिक ऊर्जा स्त्रोत।
16. गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम।
17. शिक्षा, जिसके अंतर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी है।
18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा।
19. प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा।
20. पुस्तकालय।
21. सांस्कृतिक क्रियाकलाप।
22. बाजार और मेले।
23. स्वास्थ्य और स्वच्छता, जिनके अंतर्गत अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय भी हैं।
24. परिवार कल्याण।
25. महिला और बाल-विकास।
26. समाज कल्याण, जिसके अंतर्गत विकलांगों और मानसिक रुप से मंद व्यक्तियों का कल्याण भी है।
27. दुर्बल वर्गों का और विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का कल्याण।
28. सार्वजनिक वितरण प्रणाली।
29. सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण।
1. संविधान (तिहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 4 द्वारा (24-4-1993 से) अंतःस्थापित।
बारहवीं अनुसूची
(अनुच्छेद 243ब)
- नगरीय योजना जिसके अंतर्गत नगर योजना भी है।
- भूमि उपयोग का विनियमन और भवनों का निर्माण।
- आर्थिक और सामाजिक विकास योजना।
- सड़कें और पुल।
- घरेलू, औद्योगिक और वाणिज्यिक प्रयोजनों के लिए जल प्रदाय।
- लोक स्वास्थ्य, स्वच्छता, सफाई और कूड़ा-करकट प्रबंध।
- अग्रिशमन सेवाएँ।
- नगरीय वानिकी, पर्यावरण का संरक्षण और पारिस्थितिकी आयामों की अभिवृद्धि।
- समाज के दुर्बल वर्गों के, जिनके अंतर्गत विकलांग और मानसिक रूप से मंद व्यक्ति भी हैं, हितों की रक्षा।
- गंदी-बस्ती सुधार और प्रोन्नयन।
- नगरीय निर्धनता उन्मूलन।
- नगरीय सुख-सुविधाओं, जैसे पार्क, उद्यान, खेल के मैदानों की व्यवस्था।
- सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सौंदर्यपरक आयामों की अभिवृद्धि।
- शव गाड़ना और कब्रिस्तान; शवदाह और श्मशान और विद्युत शवदाह गृह।
- कांजी हाउस; पशुओं के प्रति क्रूरता का निवारण।
- जन्म-मरण सांख्यिकी, जिसके अंतर्गत जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण भी है।
- सार्वजनिक सुख-सुविधाएँ, जिनके अंतर्गत सड़कों पर प्रकाश, पार्किंग स्थल, बस स्टॉप और जन सुविधाएँ भी हैं।
- वधशालाओं और चर्मशोधनशालाओं का विनियमन।
- संविधान (चौहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 4 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्थापित।
परिशिष्ट 1
(1) संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954
सं. आ. 48 राष्ट्रपति, संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार की सहमति से, निम्नलिखित आदेश करते हैं :-
- (1) इस आदेश का संक्षिप्त नाम संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 है।
(2) यह 14 मई, 1954 को प्रवृत्त होगा, और ऐसा होने पर संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1950 को अधिक्रांत कर देगा।
- (2) संविधान के अनुच्छेद 1 तथा अनुच्छेद 370 के अतिरिक्त उसके 20 जून, 1964 को यथा प्रवृत्त और संविधान (उन्नसीवाँ संशोधन) अधिनियम, 1966, संविधान (इक्कीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1967, संविधान (तेईसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 5, संविधान (चौबीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971, संविधान (पच्चीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 2, संविधान (छब्बीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971, संविधान (तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1972, संविधान (इकतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा2, संविधान (तैंतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1974 की धारा 2, संविधान (अड़तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 2, 5, 6 और 7, संविधान (उनतालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975, संविधान (चालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976, संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 2, 3 और 6 और संविधान (इकसठवाँ संशोधन) अधिनियम, 1988 द्वारा यथासंशोधित, जो उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू होंगे और वे अपवाद और उपांतरण जिनके अधीन वे इस प्रकार लागू होंगे, निम्नलिखित होंगे :-
(1) उद्देशिका
(2) भाग 1
अनुच्छेद 3 में निम्नलिखित और परंतुक जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘परंतु यह और कि जम्मू-कश्मीर राज्य के क्षेत्र को बढ़ाने या घटाने या उस राज्य के नाम या उसकी सीमा में परिवर्तन करने का उपबंध करने वाला कोई विधेयक उस राज्य के विधान-मंडल की सहमति के बिना संसद में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।’।
(3) भाग 2
(क) यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में 26 जनवरी, 1950 से लागू समझा जाएगा।
(ख) अनुच्छेद 7 में निम्नलिखित और परंतुक जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘परंतु यह और कि इस अनुच्छेद की कोई बात जम्मू-कश्मीर राज्य के ऐसे स्थायी निवासी को लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्र को जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है, प्रवर्तन करने के पश्चात् उस राज्य के क्षेत्र को ऐसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो उस राज्य में पुनर्वास के लिए या स्थायी रूप से लौटने के लिए उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन दी गई है, तथा ऐसा प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक समझा जाएगा।’।
(4) भाग 3
(क) अनुच्छेद 13 में, संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे इस आदेश के प्रारंभ के प्रति निर्देश है।
(ग) अनुच्छेद 16 के खंड (3) में, राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।
(घ) अनुच्छेद 19 में, इस आदेश के प्रारंभ से (4) (5) (पच्चीस) वर्ष की अवधि के लिए :-
(1) खंड (3) और (4) में, ‘अधिकार के प्रयोग पर’ शब्दों के पश्चात् ‘राज्य की सुरक्षा या’ शब्द अंतःस्थापित किए जाएँगे;
(2) खंड (5) में, ‘या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए’ शब्दों के स्थान पर ‘अथवा राज्य की सुरक्षा के हितों के लिए’ शब्द रखे जाएँगे; और
- विधि मंत्रालय की अधिसूचना सं. का. नि. 1610, तारीख 14 मई, 1954, भारत का राजपत्र, असाधारण, भाग 3, पृष्ठ 821 में प्रकाशित।
- प्रारंभ में आने वाले शब्द संविधान आदेश 56, संविधान आदेश 74, संविधान आदेश 76, संविधान आदेश 79, संविधान आदेश 89, संविधान आदेश 91, संविधान आदेश 94, संविधान आदेश 98, संविधान आदेश 103, संविधान आदेश 104, संविधान आदेश 105, संविधान आदेश 108, संविधान आदेश 136 और तत्पश्चात् संविधान आदेश 141 द्वारा संशोधित होकर उपरोक्त रुप में आए।
- संविधान आदेश 124 द्वारा (4-2-1985 से) खंड (ख) का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 69 द्वारा ‘दस वर्ष’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 97 द्वारा ‘बीस’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(3) निम्नलिखित नया खंड जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘(7) खंड (2), (3), (4) और (5) में आने वाले ‘युक्तियुक्त निर्बंधन’ शब्दों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे निर्बंधन ऐसे हैं जिन्हें समुचित विधान-मंडल युक्तियुक्त समझता है।’।
(ङ) अनुच्छेद 22 के खंड (4) में ‘संसद’ शब्द के स्थान पर ‘राज्य विधान-मंडल’ शब्द रखे जाएँगे और खंड (7) में ‘संसद विधि द्वारा विहित कर सकेगी’ शब्दों के स्थान पर ‘राज्य विधान-मंडल विधि द्वारा विहित कर सकेगा’ शब्द रखे जाएँगे।
(च) अनुच्छेद 31 में, खंड (3), (4) और (6) का लोप किया जाएगा; और खंड (5) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखा जाएगा, अर्थात् :-
‘(5) खंड (2) की कोई बात-
(क) किसी वर्तमान विधि के उपबंधों पर, अथवा
(ख) किसी ऐसी विधि के उपबंधों पर, जिसे राज्य इसके पश्चात्-
(1) किसी कर या शास्ति के अधिरोपण या उद्ग्रहण के प्रयोजन के लिए; अथवा
(2) सार्वजनिक स्वास्थ्य की अभिवृद्धि या प्राण या संपत्ति के संकट-निवारण के लिए; अथवा
(3) ऐसी संपत्ति की बाबत, जो विधि द्वारा निष्क्रांत संपत्ति घोषित की गई है, बनाए,
कोई प्रभाव नहीं डालेगी।’
(छ) अनुच्छेद 31क में खंड (1) के परंतुक का लोप किया जाएगा; और खंड (2) के उपखंड (क) के स्थान पर निम्नलिखित उपखंड रखा जाएगा, अर्थात् :-
‘(क) ‘संपदा’ से ऐसी भूमि अभिप्रेत होगी जो कृषि के प्रायोजनों के लिए या कृषि के सहायक प्रयोजनों के लिए या चरागाह के लिए अधिभोग में है या पट्टे पर दी गई है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात् :-
(1) ऐसी भूमि पर भवनों के स्थल और अन्य संरचनाएँ;
(2) ऐसी भूमि पर खड़े वृक्ष;
(3) वन भूमि और वन्य बंजर भूमि;
(4) जल से ढके क्षेत्र और जल पर तैरते हुए खेत;
(5) बंदर और घराट स्थल;
(6) कोई जागीर, इनाम, मुआफी या मुकर्ररी या इसी प्रकार का अन्य अनुदान,
किंतु इसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं हैं :-
(1) किसी नगर, या नगरक्षेत्र या ग्राम आबादी में कोई भवन-स्थल या किसी ऐसे भवन या स्थल से अनुलग्र कोई भूमि;
(2) कोई भूमि जो किसी नगर या ग्राम के स्थल के रूप में अधिभोग में है; या
(3) किसी नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्र या छावनी या नगरक्षेत्र में या किसी क्षेत्र में, जिसके लिए कोई नगर योजना स्कीम मंजूर की गई है, भवन निर्माण के प्रयोजनों के लिए आरक्षित कोई भूमि।’।
(1) (ज) अनुच्छेद 32 में, खंड (3) का लोप किया जाएगा।
(झ) अनुच्छेद 35 में, –
(1) संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे इस आदेश के प्रारंभ के प्रति निर्देश हैं;
(2) खंड (क) (1) में, ‘अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद 32 के खंड (3)’ शब्दों, कोष्ठकों और अंकों का लोप किया जाएगा; और
(3) खंड (ख) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘(ग) संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात्, निवारक निरोध की बाबत जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर शून्य नहीं होगी कि वह इस भाग के उपबंधों में से किसी से असंगत है, किंतु ऐसी कोई विधि उक्त आदेश के प्रारंभ से (2) (3) (पच्चीस वर्ष) के अवसान पर, ऐसी असंगति की मात्रा तक, उन बातों के सिवाय प्रभावहीन हो जाएगी जिन्हें उनके अवसान के पूर्व किया गया है या करने का लोप किया गया है।’।
(ञ) अनुच्छेद 35 के पश्चात् निम्नलिखित नया अनुच्छेद जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
’35क. स्थायी निवासियों और उनके अधिकारों की बाबत विधियों की व्यावृत्ति- इस संविधान में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त ऐसी कोई विद्यमान विधि और इसके पश्चात् राज्य के विधान-मंडल द्वारा अधिनियमित ऐसी कोई विधि –
(क) जो उन व्यक्तियों के वर्गों को परिभाषित करती है जो जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासी हैं या होंगे, या
- संविधान आदेश 89 द्वारा खंड (ज) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 69 द्वारा ‘दस वर्ष’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 97 द्वारा ‘बीस’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(ख) जो-
(1) राज्य सरकार के अधीन नियोजन;
(2) राज्य में स्थावर संपत्ति के अर्जन;
(3) राज्य में बस जाने; या
(4) छात्रवृत्तियों के या ऐसी अन्य प्रकार की सहायता के जो राज्य सरकार प्रदान करे, अधिकार, की बाबत ऐसे स्थायी निवासियों को कोई विशेष अधिकार और विशेषाधिकार प्रदत्त करती है या अन्य व्यक्तियों पर कोई निर्बंधन अधिरोपित करती है, इस आधार पर शून्य नहीं होगी कि वह इस भाग के किसी उपबंध द्वारा भारत के अन्य नागरिकों को प्रदत्त किन्हीं अधिकारों से असंगत है या उनको छीनती या न्यून करती है।’।
(5) भाग 5
(1) (क) अनुच्छेद 55 के प्रयोजनों के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य की जनसंख्या तिरसठ लाख समझी जाएगी;
(ख) अनुच्छेद 81 में, खंड (2) और (3) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखे जाएँगे, अर्थात् :-
‘(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए,-
(क) लोक सभा में राज्य को छह स्थान आबंटित किए जाएँगे;
(ख) परिसीमन अधिनियम, 1972 के अधीन गठित परिसीमन आयोग द्वारा राज्य को ऐसी प्रक्रिया के अनुसार, जो आयोग उचित समझे, एक सदस्यीय प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा;
(ग) निर्वाचन-क्षेत्र, यथासाध्य, भौगोलिक रूप से संहत क्षेत्र होंगे और उनका परिसीमन करते समय प्राकृतिक विशेषताओं, प्रशासनिक इकाइयों की विद्यमान सीमाओं, संचार की सुविधाओं और लोक सुविधा को ध्यान में रखा जाएगा;
(घ) उन निर्वाचन-क्षेत्रों में, जिनमें राज्य विभाजित किया जाए, पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र समाविष्ट नहीं होंगे।
(3) खंड (2) की कोई बात लोक सभा में राज्य के प्रतिनिधित्व पर तब तक प्रभाव नहीं डालेगी जब तक परिसीमन अधिनियम, 1972 के अधीन संसदीय निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन से संबंधित परिसीमन आयोग के अंतिम आदेश या आदेशों के भारत के राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को विद्यमान सदन का विघटन न हो जाए।
(4) (क) परिसीमन आयोग राज्य की बाबत अपने कर्तव्यों में अपनी सहायता करने के प्रयोजन के लिए अपने साथ पाँच व्यक्तियों को सहयोजित करेगा जो राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले लोक सभा के सदस्य होंगे।
(ख) राज्य से इस प्रकार सहयोजित किए जाने वाले व्यक्ति सदन की संरचना का सम्यक् ध्यान रखते हुए लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएँगे।
(ग) उपखंड (ख) के अधीन किए जाने वाले प्रथम नामनिर्देशन लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) दूसरा संशोधन आदेश, 1974 के प्रारंभ से दो मास के भीतर किए जाएँगे।
(घ) किसी भी सहयोजित सदस्य को परिसीमन आयोग के किसी विनिश्चय पर मत देने या हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं होगा।
(ङ) यदि मृत्यु या पदत्याग के कारण किसी सहयोजित सदस्य का पद रिक्त हो जाता है तो उसे लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा और उपखंड (क) और (ख) के उपबंधों के अनुसार यथाशक्य शीघ्र भरा जाएगा।’।
(2) (ग) अनुच्छेद 133 में खंड (1) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-
‘(1क) संविधान (तीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1972 की धारा 3 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में इस उपांतरण के अधीन लागू होंगे कि उसमें ‘इस अधिनियम’, ‘इस अधिनियम के प्रारंभ’, ‘यह अधिनियम पारित नहीं किया गया हो’ और ‘इस अधिनियम द्वारा यथा संशोधित उस खंड के उपबंधों की’
के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमशः ‘संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) दूसरा संशोधन आदेश, 1974, ‘उक्त आदेश के प्रारंभ’, ‘उक्त आदेश पारित नहीं किया गया हो’ और उक्त खंड के उपबंधों, जैसे कि वे उक्त आदेश के प्रारंभ के पश्चात् हो’ के प्रति निर्देश है’।
(3) (घ) अनुच्छेद 134 के खंड (2) में ‘संसद’ शब्द के पश्चात् ‘राज्य के विधान-मंडल के अनुरोध पर’
शब्द अंतःस्थापित किए जाएँगे।
(3) (ङ) अनुच्छेद 135 4 और 139 का लोप किया जाएगा।
- संविधान आदेश 98 द्वारा खंड (क) और खंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 98 द्वारा प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 98 द्वारा खंड (ग) और खंड (घ) को खंड (घ) और खंड (ङ) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
- संविधान आदेश 60 द्वारा अंक ‘136’ का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 56 द्वारा खंड (च) और खंड (छ) का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 60 द्वारा (26-1-1960 से) अंतःस्थापित।
(6) (5क) भाग 6
(1) (क) अनुच्छेद 153 से 217 तक, अनुच्छेद 219, अनुच्छेद 221, अनुच्छेद 223, 224,
224क और 225 तथा अनुच्छेद 227, से 237 तक का लोप किया जाएगा।)
(ख) अनुच्छेद 220 में, संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान
(जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1960 के प्रति निर्देश हैं।
(2) (ग) अनुच्छेद 222 में, खंड (1) के पश्चात् निम्नलिखित नया खंड अंतःस्थापित किया जाएगा,
अर्थात् :-
‘(1क) प्रत्येक ऐसा अंतरण जो जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय से अथवा उस उच्च न्यायालय को हो, राज्यपाल के परामर्श के पश्चात् किया जाएगा।’)
(6) भाग 11
(3) (क) अनुच्छेद 246 के खंड (1) में आने वाले ‘खंड (2) और खंड (3)’ शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के स्थान पर ‘खंड (2)’ शब्द, कोष्ठक और अंक रखे जाएँगे और खंड (2) में आने वाले ‘खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी’ शब्दों, कोष्ठकों और अंक का तथा संपूर्ण खंड (3) और खंड (4) का लोप किया जाएगा।
(4) (5) (ख) अनुच्छेद 248 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखा जाएगा, अर्थात् :-
‘248. अवशिष्ट विधायी शक्तियाँ- संसद को, –
(6) (क) विधि द्वारा स्थापित सरकार को आतंकित करने या जनता या जनता के किसी अनुभाग में आतंक उत्पन्न करने या जनता के किसी अनुभाग को पृथक् करने या जनता के विभिन्न अनुभागों के बीच समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कार्यों को अंतर्वलित करने वाले क्रियाकलाप को रोकने के संबंध में;
(7) (कक) भारत की प्रभुता तथा प्रादेशिक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या विच्छिन्न करने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग का अध्यर्पण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग को संघ से विलग कराने अथवा भारत के राष्ट्रीय ध्वज, भारतीय राष्ट्रगान और इस संविधान का अपमान करने वाले
(8) (अन्य क्रियाकलाप को रोकने) के संबंध में; और
(ख) (1) समुद्र या वायु द्वारा विदेश यात्रा पर;
(2) अंतर्देशीय विमान यात्रा पर;
(3) मनीआर्डर, फोनतार और तार को सम्मिलित करते हुए, डाक वस्तुओं पर,कर लगाने के संबंध में, विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।’।
(9) (स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद में, ‘आतंकवादी कार्य’ से बमों, डायनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थों या ज्वलनशील पदार्थों या अग्न्यायुधों या अन्य प्राणहर आयुधों या विषों का या अपायकर गैसों या अन्य रसायनों या परिसंकटमय प्रकृति के किन्हीं अन्य पदार्थों का (चाहे वे जैव हों या अन्य) उपयोग करके किया गया कोई कार्य या बात अभिप्रेत है।);
(10) (खख) अनुच्छेद 249 के खंड (1) में, ‘राज्य सूची में प्रगणित ऐसे विषय के संबंध में, जो उस संकल्प में विनिर्दिष्ट है,’ शब्दों के स्थान पर ‘उस संकल्प में विनिर्दिष्ट ऐसे विषय के संबंध में, जो संघ सूची या समवर्ती सूची में प्रगणित विषय नहीं है,’ शब्द रखे जाएँगे।)
(ग) अनुच्छेद 250 में, ‘राज्य-सूची में प्रगणित किसी भी विषय कें संबंध में’ शब्दों के स्थान पर ‘संघ-सूची में प्रगणित न किए गए विषयों के संबंध में भी’ शब्द रखे जाएँगे।
(ङ) अनुच्छेद 253 में निम्नलिखित परंतुक जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
- संविधान आदेश 89 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 74 द्वारा (24-11-1965 से) खंड (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 66 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 85 द्वारा खंड (ख) और खंड (खख), मूल खंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 93 द्वारा खंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 122 द्वारा अंतःस्थापित।
- संविधान आदेश 122 द्वारा खंड (क) को खंड (कक) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
- संविधान आदेश 122 द्वारा ‘क्रियाकलापों को रोकने’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 122 द्वारा अंतःस्थापित।
- संविधान आदेश 129 द्वारा खंड (खख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 129 द्वारा खंड (घ) का लोप किया गया।
‘परंतु संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ के पश्चात्, जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में व्यवस्था को प्रभावित करने वाला कोई विनिश्चय भारत सरकार द्वारा उस राज्य की सरकार की सहमति से ही किया जाएगा।’।
(2) (च) अनुच्छेद 225 का लोप किया जाएगा।
(2) (छ) अनुच्छेद 256 को उसकें खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया जाएगा और उसमें निम्नलिखित नया खंड जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘(2) जम्मू-कश्मीर राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग करेगा जिससे उस राज्य के संबंध में संविधान के अधीन संघ के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का संघ द्वारा निर्वहन सुगम हो; और विशिष्टतया उक्त राज्य यदि संघ वैसी अपेक्षा करे, संघ की ओर से और उसके व्यय पर संपत्ति का अर्जन या अधिग्रहण करेगा अथवा यदि संपत्ति उस राज्य की हो तो ऐसे निबंधनों पर, जो करार पाए जाएँ या करार के अभाव में जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा अवधारित किए जाएँ, उसे संघ को अंतरित करेगा।’
(4) (ज) अनुच्छेद 261 के खंड (2) में, ‘संसद द्वारा बनाई गई’ शब्दों का लोप किया जाएगा।
(7) भाग 12
(6) (क) अनुच्छेद 267 के खंड (2), अनुच्छेद 273, अनुच्छेद 283 के खंड (2) (7) (और अनुच्छेद 290) का लोप किया जाएगा।
(6) (ख) अनुच्छेद 266, 282, 284, 298, 299 और 300 में राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।
(6) (ग) अनुच्छेद 277 और 295 में, संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे इस आदेश के प्रारंभ के प्रति निर्देश हैं।
(8) भाग 13
8 अनुच्छेद 303 के खंड (1) में, ‘सातवीं अनुसूची की सूचियों में से किसी में व्यापार और वाणिज्य संबंधी किसी प्रविष्टि के आधार पर, ‘शब्दों का लोप किया जाएगा।
(8)
(9) भाग 14
(9) (अनुच्छेद 312 में, ‘राज्यों के’ शब्दों के पश्चात्'(जिसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य भी है)’ कोष्ठक और शब्द अंतःस्थापित किए जाएँगे।)
(10) (10) भाग 15
(क) अनुच्छेद 324 के खंड (1) में, जम्मू-कश्मीर के विधान-मंडल के दोनों सदनों में से किसी सदन के निर्वाचनों के बारे में संविधान के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रति निर्देश है।
(11) (ख) अनुच्छेद 325, 326, 327 और 329 में राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रति निर्देश नहीं है।
(ग) अनुच्छेद 328 का लोप किया जाएगा।
(घ) अनुच्छेद 329 में, ‘या अनुच्छेद 328’ शब्दों और अंकों का लोप किया जाएगा।
(12) (ङ) अनुच्छेद 329क में, खंड (4) और (5) का लोप किया जाएगा।
(11) भाग 16 (13)
1. संविधान आदेश 66 द्वारा खंड (च) का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 66 द्वारा खंड (छ) और खंड (ज) को खंड (च) और खंड (छ) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
- संविधान आदेश 56 द्वारा खंड (झ) का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 56 द्वारा खंड (ञ) को खंड (झ) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया और तत्पश्चात् संविधान आदेश 66 द्वारा उसे खंड (ज) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
- संविधान आदेश 55 द्वारा अंतःस्थापित खंड (क) और खंड (ख) का संविधान आदेश 56 द्वारा लोप किया गया।
- संविधान आदेश 55 द्वारा खंड (क), खंड (ख) और खंड (ग) को क्रमशः खंड (ग), खंड (घ) और खंड (ङ) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया और तत्पश्चात् संविधान आदेश 56 द्वारा उन्हें क्रमशः खंड (क), खंड (ख) और खंड (ग) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
- संविधान आदेश 94 द्वारा ‘अनुच्छेद 290 और अनुच्छेद 291’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 56 द्वारा कोष्ठक और अक्षर ‘(क)’ तथा खंड (ख) का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 56 द्वारा पूर्ववर्ती उपांतरण के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 60 द्वारा (26-1-1960 से) उप-पैरा (10) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 75 द्वारा खंड (ख) और खंड (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 105 द्वारा अंतःस्थापित।
- संविधान आदेश 124 द्वारा खंड (क) का लोप किया गया।
(1) (क) अनुच्छेद 331, 332, 333, (2) (336 और 337) का लोप किया जाएगा।
(1) (ख) अनुच्छेद 334 और 335 में राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।
(3) (ग) अनुच्छेद 339 के खंड (1) में ‘राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों’ शब्दों के स्थान पर ‘राज्यों की अनुसूचित जनजातियों’ शब्द रखे जाएँगे।
(12) भाग 17
इस भाग के उपबंध केवल वहीं तक लागू होंगे जहाँ तक वे-
(1) संघ की राजभाषा,
(2) एक राज्य और दूसरे राज्य की बीच, अथवा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा, और
(3) उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा, से संबंधित है।
(13) भाग 18
(क) अनुच्छेद 352 में निम्नलिखित नया खंड जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘(4) (6) केवल आंतरिक अशांति या उसका संकट सन्निकट होने के आधार पर की गई आपात की उद्घोषणा (अनुच्छेद 354 की बाबत लागू होने के सिवाय) जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में तभी लागू होगी (5) (जब वह-
(क) उस राज्य की सरकार के अनुरोध पर या उसकी सहमति से की गई है; या
(ख) जहाँ वह इस प्रकार नहीं की गई है वहां वह उस राज्य की सरकार के अनुरोध पर या उसकी सहमति से राष्ट्रपति द्वारा बाद में लागू की गई है।)’।
(6) (ख) अनुच्छेद 356 के खंड (1) में, इस संविधान के उपबंधों या उपबंध के प्रति निर्देशों का जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के संविधान के उपबंधों या उपबंध के प्रति निर्देश है;
(7) (खख) अनुच्छेद 356 के खंड (4) में दूसरे परंतुक के पश्चात् निम्नलिखित परंतुक अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-
‘परंतु यह भी कि जम्मू-कश्मीर राज्य के बारे में 18 जुलाई, 1990 को खंड (1) के अधीन जारी की गई उद्घोषणा के मामले में इस खंड के पहले परंतुक में ‘तीन वर्ष’ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह (5) ‘(छह वर्ष)’ के प्रति निर्देश है।)’
(ग) (अनुच्छेद 360 का लोप किया जाएगा।)
(14) भाग 19
(10) (क) (11) (अनुच्छेद 365) का लोप किया जाएगा।
(10) (ख) अनुच्छेद 367 में निम्नलिखित खंड जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘(4) इस संविधान के, जैसा कि वह जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू होता है, प्रयोजनों के लिए-
(क) इस संविधान या उसके उपबंधों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उक्त राज्य के संबंध में लागू संविधान के या उसके उपबंधों के प्रति निर्देश भी हैं।
(13) (कक) राज्य की विधान सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा, जम्मू-कश्मीर के सदरे-रियासत के रूप में तत्समय मान्यता प्राप्त तथा तत्समय पदस्थ राज्य मंत्रि-परिषद की सलाह पर कार्य करने वाले व्यक्ति के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं।
(ख) उस राज्य की सरकार के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत अपनी मंत्रि-परिषद की सलाह पर कार्य कर रहे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं : परंतु 10 अप्रैल 1965 से पूव की किसी अवधि की बाबतल ऐसे निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत अपनी मंत्रि-परिषद की सलाह से कार्य कर रहे सदरे-रियासत के प्रति निर्देश है;
- संविधान आदेश 124 द्वारा खंड (ख) और खंड (ग) को खंड (क) और खंड (ख) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
- संविधान आदेश 124 द्वारा ‘336, 337 339 और 342 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 124 द्वारा अंतःस्थापित।
- संविधान आदेश 104 द्वारा ‘(4)’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 100 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 71 द्वारा खंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 151 द्वारा जोड़ा गया।
- संविधान आदेश 154 द्वारा ‘चार वर्ष’ के स्थान पर और पुनः संविधान आदेश 160 द्वारा ‘पाँच वर्ष’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 74 द्वारा खंड (क) का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 74 द्वारा खंड (ख) और खंड (ग) को खंड (क) और खंड (ख) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
- संविधान आदेश 94 द्वारा ‘अनुच्छेद 362 और अनुच्छेद 365’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान आदेश 56 द्वारा मूल खंड (ग) का लोप किया गया।
- संविधान आदेश 74 द्वारा खंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(ग) उच्च न्यायालय के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश हैं;
1 (2) (घ) उक्त राज्य के स्थायी निवासियों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनसे ऐसे व्यक्ति अभिप्रेत हैं जिन्हें राज्य में प्रवृत्त विधियों के अधीन राज्य की प्रजा के रूप में, संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ से पूर्व, मान्यता प्राप्त थी या जिन्हें राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा राज्य के स्थायी निवासियों के रूप में मान्यता प्राप्त है; और
(3) (ङ) राज्यपाल के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं :
परंतु 10 अप्रैल, 1965 से पूर्व की किसी अवधि की बाबत, ऐसे निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राष्ट्रपति द्वारा जम्मू-कश्मीर के सदरे-रियासत के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्ति के प्रति निर्देश हैं और उनके अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा सदरे-रियासत की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सक्षम व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त किसी व्यक्ति के प्रति निर्देश भी हैं।)’
(15) भाग 20
(4) (क) (5) (अनुच्छेद 368 के खंड (2) में) निम्नलिखित परंतुक जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘परंतु यह और कि कोई संशोधन जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में तभी प्रभावी होगा जब वह अनुच्छेद 370 के खंड (1) के अधीन राष्ट्रपति के आदेश द्वारा लागू किया गया हो।’
(6) (ख) अनुच्छेद 368 के खंड (3) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ा जाएगा, अर्थात् :-
‘(4) जम्मू-कश्मीर संविधान के –
(क) राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों, कृत्यों, कर्तव्यों, उपलब्धियों, भत्तों, विशेषाधिकारों या उन्मुक्तियों; या
(ख) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, विभेद के बिना निर्वाचन नामावलि में सम्मिलित किए जाने की पात्रता, वयस्क मताधिकार और विधान परिषद के गठन, जो जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 138, 139, 140 और 150 में विनिर्दिष्ट विषय हैं, से संबंधित किसी उपबंध में या उसके प्रभाव में कोई परिवर्तन करने के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि का कोई प्रभाव तभी होगा जब ऐसी विधि राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के पश्चात्, उनकी अनुमति प्राप्त कर लेती है।’
(16) भाग 21
(क) अनुच्छेद 369, 371, (7) (371क), (8) (372क), 373, अनुच्छेद 374 के खंड (1), (2), (3) और (5) और (9) (अनुच्छेद 376 से 378क तक का और अनुच्छेद 392) का लोप किया जाएगा।
(ख) अनुच्छेद 372 में, –
(1) खंड (2) और (3) का लोप किया जाएगा;
(2) भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त विधि के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाली हिदायतों, ऐलानों, इश्तिहारों, परिपत्रों, रोबकारों, इरशादों, याददाश्तों, राज्य परिषद के संकल्पों, संविधान सभा के संकल्पों और अन्य लिखतों के प्रति निर्देश भी होंगे; और
(3) संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे इस आदेश के प्ररंभ के प्रति निर्देश हैं।
(ग) अनुच्छेद 374 के खंड (4) में, राज्य में प्रिवी कौंसिल के रूप में कार्यरत प्राधिकारी के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह जम्मू-कश्मीर संविधान अधिनियम, संवत् 1996 के अधीन गठित सलाहकार बोर्ड के प्रति निर्देश हैं, और संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे इस आदेश के प्रारंभ के प्रति निर्देश हैं।
(17) भाग 22
अनुच्छेद 394 और 395 का लोप किया जाएगा।
(18) पहली अनुसूची
(19) दूसरी अनुसूची
- संविधान आदेश 56 द्वारा खंड (घ) का लोप किया गया।
2. संविधान आदेश 56 द्वारा खंड (ङ) को खंड (घ) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया गया।
3. संविधान आदेश 74 द्वारा खंड (ङ) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4. संविधान आदेश 101 द्वारा खंड (क) के रूप में संख्यांकित।
5. संविधान आदेश 91 द्वारा ‘अनुच्छेद 368 में’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
6. संविधान आदेश 101 द्वारा अंतःस्थापित।
7. संविधान आदेश 74 द्वारा अंतःस्थापित।
8. संविधान आदेश 56 द्वारा अंतःस्थापित।
9. संविधान आदेश 56 द्वारा ‘अनुच्छेद 376 से अनुच्छेद 392 तक’ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(1)(20) तीसरी अनुसूची
प्ररूप 5, 6, 7 और 8 का लोप किया जाएगा।
(21) चौथी अनुसूची
(2) (22) सातवीं अनुसूची
(क) संघ-सूची में,-
(1) प्रविष्टि 3 के स्थान पर ‘3. छावनियों का प्रशासन’ प्रविष्टि रखी जाएगी;
(3) (2) प्रविष्टि 8, 9 (4) (और 34), 5*** प्रविष्टि 79 और प्रविष्टि 81 में ‘अंतरराज्यीय प्रव्रजन’ शब्दों का लोप किया जाएगा;)
(6) (7) (3) प्रविष्टि 72 में,-
(क) किसी ऐसी निर्वाचन याचिका में जिसके द्वारा उस राज्य के विधान-मंडल के दोनों सदनों में से किसी सदन के लिए निर्वाचन प्रश्नगत है, जम्मू-कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा किए गए किसी विनिश्चय या आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय को अपीलों के संबंध में राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश है;
(ख) अन्य मामलों के संबंध में राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत उस राज्य के प्रति निर्देश नहीं है;
(8) (और)
(9) (4) प्रविष्टि 97 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखी जाएगी, अर्थात्:-
(10) (97. (क) विधि द्वारा स्थापित सरकार को आतंकित करने या लोगों या लोगों के सी अनुभाग में आतंक उत्पन्न करने या लोगों के किसी अनुभाग को पृथक् करने या लोगों के विभिन्न अनुभागों के बीच समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कार्यों को अंतर्वलित करने वाले, (ख) भारत की प्रभुता तथा प्रादेशिक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या विच्छिन्न करने, अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग का अध्यर्पण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के भाग को संघ से विलग कराने
अथवा भारत के राष्ट्रीय ध्वज, भारतीय राष्ट्र-गान और इस संविधान का अपमान करने वाले, क्रियाकलाप को रोकना, समुद्र या वायु द्वारा विदेश यात्रा, अंतर्देशीय विमान यात्रा और डाक वस्तुओं पर जिनके अंतर्गत मनीआर्डर, फोनतार और तार हैं, कर;
स्पष्टीकरण- इस प्रविष्टि में, ‘आतंकवादी कार्य’ का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 248 के स्पष्टीकरण में है।)
(ख) राज्य सूची का लोप किया जाएगा।
(11) (ग) समवर्ती सूची में,-
(12) (1) प्रविष्टि 1 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखी जाएगी, अर्थात्:-
‘1. दंड विधि, (जिसके अंतर्गत सूची 1 में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराध और सिविल शक्ति की सहायता के लिए नौ सेना, वायु सेना या संघ के किन्हीं अन्य सशस्त्र बलों के प्रयोग नहीं हैं) जहाँ तक ऐसी दंड विधि इस अनुसूची में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधि के विरुद्ध अपराधों से संबंधित है।’)
(13) (14) (1क) प्रविष्टि 2 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखी जाएगी, अर्थात् :-
‘2. दंड प्रक्रिया (जिसके अंतर्गत अपराधों को रोकना तथा दंड न्यायालयों का, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय नहीं हैं, गठन और संगठन है) जहाँ तक उसका संबंध-
- संविधान आदेश 56 द्वारा पैरा 6 से संबंधित उपांतरण का लोप किया गया।
2. संविधान आदेश 66 द्वारा उपपैरा (22) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
3. संविधान आदेश 85 द्वारा मद (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4. संविधान आदेश 92 द्वारा ’34 और 60′ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
5. संविधान आदेश 95 द्वारा ‘प्रविष्टि 67में ‘और अभिलेख ‘ शब्दों’ शब्दों और अंकों का लोप किया गया।
6. संविधान आदेश 74 द्वारा मूल मद (3) का लोप किया गया।
7. संविधान आदेश 83 द्वारा मद (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
8. संविधान आदेश 85 द्वारा अंतःस्थापित।
9. संविधान आदेश 93 द्वारा मद (4) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
10. संविधान आदेश 122 द्वारा (4-6-1985 से) प्रविष्टि 97 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
11. संविधान आदेश 69 द्वारा खंड (ग) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
12. संविधान आदेश 70 द्वारा मद (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
13. संविधान आदेश 94 द्वारा अंतःस्थापित।
14. संविधान आदेश 122 द्वारा उपखंड (1क) और (1ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(1) किन्हीं ऐसे विषयों से, जो ऐसे विषय हैं, जिनके संबंध में संसद को विधियाँ बनाने की शक्ति है, संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराधों से है; और
(2) किसी विदेश में राजनयिक और कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने तथा शपथ पत्र लिए जाने से है।’,
(1ख) प्रविष्टि 12 के स्थान पर, निम्नलिखित प्रविष्टि रखी जाएगी, अर्थात् :-
’12. साक्ष्य तथा शपथ, जहाँ तक उनका संबंध-
(1) किसी विदेश में राजनयिक और कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने तथा शपथ पत्र लिए जाने से है; और
(2) किन्हीं ऐसे अन्य विषयों से है, जो ऐसे विषय हैं, जिनके संबंध में संसद को विधियाँ बनाने की शक्ति है।’
(1ग) प्रविष्टि 13 के स्थान पर ’13. सिविल प्रक्रिया, जहाँ तक उसका संबंध किसी विदेश में राजनयिक तथा कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने तथा शपथ-पत्र लिए जाने से है’ प्रविष्टि रखी जाएगी;
1 (2) (3) (2) प्रविष्टि 30 के स्थान पर ’30. जन्म-मरण सांख्यिकी, जहाँ तक उसका संबंध जन्म तथा मृत्यु से है, जिसके अंतर्गत जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण है’ प्रविष्टि रखी जाएगी;
4 (5) (3) प्रविष्टि 3, प्रविष्टि 5 से 10 तक (जिसमें ये दोनों सम्मिलित हैं), प्रविष्टि 14, 15, 17, 20, 21, 27, 28, 29, 31, 32, 37, 38, 41 तथा 44 का लोप किया जाएगा;
(3क) प्रविष्टि 42 के स्थान पर ’42. संपत्ति का अर्जन और अधिग्रहण, जहाँ तक उसका संबंध सूची 1 की प्रविष्टि 67 या सूची 3 की प्रविष्टि 40 के अंतर्गत आने वाली संपत्ति के या किसी ऐसी मानवीय कलाकृति के, जिसका कलात्मक या सौंदर्यात्मक मूल्य है, अर्जन से है’ प्रविष्टि रखी जाएगी; और (6) (4) प्रविष्टि 45 में, ‘सूची 2 या सूची 3’ के स्थान पर ‘इस सूची’ शब्द रखे जाएँगे।
(23) आठवीं अनुसूची
(7) (24) नवीं अनुसूची
(8) (क) प्रविष्टि 64 के पश्चात्, निम्नलिखित प्रविष्टियाँ जोड़ी जाएँगी, अर्थात् :-
(9) (64क) जम्मू-कश्मीर राज्य कुठ अधिनियम (संवत् 1978 का सं. 1);
(9) (64ख) जम्मू-कश्मीर अभिधृति अधिनियम (संवत् 1980 का सं. 2);
(9) (64ग) जम्मू-कश्मीर भूमि अन्य संक्रमण अधिनियम (संवत् 1995 का सं. 5);
10 (11) (64घ) जम्मू-कश्मीर बृहद् भू-संपदा उत्सादन अधिनियम (संवत् 2007 का सं. 17);
(11) (64ङ) जागीरों और भू-राजस्व के अन्य समनुदेशनों आदि के पुनर्ग्रहण के बारे में 1951 का
आदेश सं. 6-एच, तारीख 10 मार्च, 1951;
(12) (64च. जम्मू-कश्मीर बंधक संपत्ति की वापसी अधिनियम, 1976 (1976 का अधिनियम 14);
64छ. जम्मू-कश्मीर ऋणी राहत अधिनियम, 1976 (1976 का अधिनियम 15)।
(13) (ख) संविधान (उनतालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1975 द्वारा अंतःस्थापित प्रविष्टि 87 से 124 तक को क्रमशः प्रविष्टि 65 से 102 के रूप में पुनःसंख्याँकित किया जाएगा।
(14) (ग) प्रविष्टि 125 से 188 तक को क्रमशः प्रविष्टि 103 से 166 के रूप में पुनःसंख्यांकित किया जाएगा।
- संविधान आदेश 74 द्वारा मद (2) और मद (3) का लोप किया गया।
2. संविधान आदेश 70 द्वारा अंतःस्थापित।
3. संविधान आदेश 74 द्वारा मद (4) को मद (2) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया।
4. संविधान आदेश 72 द्वारा मद (5) और मद (6) का लोप किया गया।
5. संविधान आदेश 95 द्वारा मद (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
6. संविधान आदेश 74 द्वारा मद (7) को मद (4) के रूप में पुनःसंख्यांकित किया गया।
7. संविधान आदेश 74 द्वारा उपपैरा (24) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
8. संविधान आदेश 105 द्वारा संख्यांकित।
9. संविधान आदेश 98 द्वारा पुनःसंख्यांकित।
10. संविधान आदेश 106 द्वारा लोप किया गया।
11. संविधान आदेश 106 द्वारा पुनःसंख्यांकित।
12. संविधान आदेश 106 द्वारा अंतःस्थापित।
13. संविधान आदेश 105 द्वारा अंतःस्थापित।
14. संविधान आदेश 108 द्वारा (31-12-1977 से) अंतःस्थापित।
(1) (25) दसवीं अनुसूची
(क) ‘अनुच्छेद 102 (2) और अनुच्छेद 191 (2)’ शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के स्थान पर, ‘अनुच्छेद
102 (2)’ कोष्ठक, शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(ख) पैरा 1 के खंड (क) में, ‘या किसी राज्य की, यथास्थिति, विधान सभा या विधान-मंडल का कोई सदन’ शब्दों का लोप किया जाएगा;
(ग) पैरा 2 में,-
(1) उपपैरा 1 में, स्पष्टीकरण के खंड (ख) के उपखंड (2) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188’ शब्दों और अंकों के स्थान पर, ‘अनुच्छेद 99’ शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(2) उपपैरा (3) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188’ शब्दों और अंकों के स्थान पर, ‘अनुच्छेद 99’ शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(3) उपपैरा (4) में, संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 के प्रारंभ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) संशोधन आदेश, 1989 के प्रारंभ के प्रति निर्देश है;
(घ) पैरा 5 में, ‘अथवा किसी राज्य की विधान परिषद के सभापति या उप सभापति अथवा किसी राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष’ शब्दों का लोप किया जाएगा;
(ङ) पैरा 6 के उपपैरा (2) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियाँ हैं या अनुच्छेद 212 के अर्थ में राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाहियाँ हैं’ शब्दों और अंकों के स्थान पर ‘अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियाँ हैं’ शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(च) पैरा 8 के उपपैरा (3) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 105 या अनुच्छेद 194’ शब्दों और अंकों के स्थान पर, ‘अनुच्छेद 105’ शब्द और अंक रखे जाएँगे।
- संविधान आदेश 136 द्वारा अंतःस्थापित।
परिशिष्ट 2
संविधान के, उन अपवादों और उपांतरणों के जिनके अधीन संविधान जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू होता है, वर्तमान पाठ के प्रति निर्देश से, पुनर्कथन
(टिप्पणी- वे अपवाद और उपांतरण जिनके अधीन संविधान जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू होता है या तो वे हैं जिनका उपबंध संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954में किया गया है या वे हैं जो संविधान के कुछ संशोधनों के जम्मू-कश्मीर राज्य को न लागू होने के परिणामस्वरूप है। ऐसे सभी अपवाद और उपांतरण जिनका व्यावहारिक महत्व है, उस पुनर्कथन में सम्मिलित हैं जो शीघ्र निर्देश को मात्र सुकर बनाने के लिए हैं। सही स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 को और उक्त आदेश के खंड 2 में वर्णित संविधान के पश्चात्वर्ती संशोधनों द्वारा यथा संशोधित संविधान के 20 जून, 1964 के पाठ के प्रति निर्देश करना होगा।)
- उद्देशिका
(क) पहले पैरा में ‘समाजवादी पंथ निरपेक्ष’ का लोप करें।
(ख) पूर्वांतिम पैरा में ‘और अखंडता’ का लोप करें।
(2) भाग 1
अनुच्छेद 3-
(क) निम्नलिखित और परंतुक जोड़ें, अर्थात् :-
‘परंतु यह और कि जम्मू-कश्मीर राज्य के क्षेत्र को बढ़ाने या घटाने या उस राज्य के नाम या उसकी सीमा में परिवर्तन करने का उपबंध करने वाला कोई विधेयक उस राज्य के विधान-मंडल की सहमति के बिना संसद में पुरःस्थापित नहीं किया जाएगा।’
(ख) स्पष्टीकरण 1 और स्पष्टीकरण 2 का लोप करें।
(3) भाग 2
(क) यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में 26 जनवरी, 1950 से लागू समझा जाएगा;
(ख) अनुच्छेद 7 – निम्नलिखित परंतुक जोड़े, अर्थात् :-
‘परंतु यह और कि इस अनुच्छेद की कोई बात जम्मू-कश्मीर राज्य के ऐसे स्थायी निवासी को लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्रो को जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है, प्रव्रजन करने के पश्चात् उस राज्य के क्षेत्र को ऐसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो उस राज्य में पुनर्वास के लिए या स्थायी रूप से लौटने के लिए उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा या उसके अधीन दी गई है, तथा ऐसा प्रत्येक व्यक्ति भारत का नागरिक समझा जाएगा।’
(4) भाग 3
(क) अनुच्छेद 13- संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 (सं.आ. 48) के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं,
(ग) अनुच्छेद 16- खंड (3) में, राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।
(घ) अनुच्छेद 19-
(अ) खंड (1) में-
(1) उपखंड (ङ) में अंत में, ‘और’ का लोप करें :-
(2) उपखंड (ङ) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अंतःस्थापित करें, अर्थात् :-
‘(च) संपत्ति के अर्जन, धारण और व्ययन का; और’;
(आ) खंड 5 में, ‘उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)’ के स्थान पर ‘उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च)’ रखें।
(ङ) अनुच्छेद 22- खंड (4) में ‘संसद’ शब्द के स्थान पर ‘राज्य विधान-मंडल’ शब्द रखे जाएँगे और खंड (7) में ‘संसद विधि द्वारा विहित कर सकेगी’ शब्दों के स्थान पर ‘राज्य विधान-मंडल विधि द्वारा विहित कर सकेगा’ शब्द रखे जाएँगे।
(च) अनुच्छेद 30- खंड (1क) का लोप करें।
(छ) अनुच्छेद 30 के पश्चात् निम्नलिखित अंतःस्थापित करें, अर्थात् :-
‘संपत्ति का अधिकार
- संपत्ति का अनिवार्य अर्जन-
(1) कोई व्यक्ति विधि के प्राधिकार के बिना अपनी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा।
(2) कोई संपत्ति, सार्वजनिक प्रयोजन के लिए ही और केवल ऐसी विधि के प्राधिकार से अनिवार्यतः अर्जित या अधिगृहीत की जाएगी, अन्यथा नहीं, जो
संपत्ति के अर्जन या अधिग्रहण का, ऐसी राशि के बदले जो उस विधि द्वारा नियत की जाए या जो ऐसे सिद्धांतों के अनुसार अवधारित की जाए और ऐसी रीति से दी जाए जो उस विधि में विनिर्दिष्ट हों, उपबंध करती हैं; और ऐसी किसी विधि किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि इस प्रकार नियत या अवधारित राशि पर्याप्त नहीं है अथवा ऐसी पूरी राशि या उसका कोई भाग नकद न दिया जा कर अन्यथा दिया जाना है :
परंतु अनुच्छेद 30 के खंड (1) निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी शिक्षा-संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने से संबद्ध विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि के अधीन जो राशि नियत या अवधारित की जाए वह ऐसी हो जो उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार को निर्बंधित या निराकृत न करे।
(2क) जहाँ विधि किसी संपत्ति के स्वामित्व का या कब्जा रखने के अधिकार का अंतरण राज्य या किसी ऐसे निगम को, जो कि राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण के अधीन है, करने के लिए उपबंध नहीं करती है वहाँ, इस बात के होते हुए भी कि वह किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करती है, उसकी बाबत यह नहीं समझा जाएगा कि वह संपत्ति के अनिवार्य अर्जन या अधिग्रहण के लिए उपबंध करती है।
(2ख) अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (च) की कोई बात किसी ऐसी विधि पर प्रभाव नहीं डालेगी जो खंड (2) में निर्दिष्ट है।
(5) खंड (2) की कोई बात-
(क) किसी वर्तमान विधि के उपबंधों पर, अथवा
(ख) किसी ऐसी विधि के उपबंधों पर, जिसे राज्य इसके पश्चात्-
(1) किसी कर या शास्ति के अधिरोपण या उद्ग्रहण के प्रयोजन के लिए, अथवा
(2) लोक स्वास्थ्य की अभिवृद्धि या प्राण या संपत्ति के संकट-निवारण के लिए, अथवा
(3) ऐसी संपत्ति की बाबत, जो विधि द्वारा निष्क्रांत संपत्ति घोषित की गई है,
बनाए, कोई प्रभाव नहीं डालेगी।’।
(ज) अनुच्छेद 31 के पश्चात् निम्नलिखित उपशीर्ष का लोप करें, अर्थात् :-
‘कुछ विधियों की व्यावृत्ति’
(झ) अनुच्छेद 31क-
(अ) खंड (1) में-
(1) ‘अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19’ के स्थान पर ‘अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 31’ रखें;
(2) खंड (1)के पहले परंतुक का लोप करें;
(3) दूसरे परंतुक में ‘यह और कि’ के स्थान पर ‘यह कि’ रखें।
(आ) खंड (2) में उपखंड (क) के स्थान पर निम्नलिखित उपखंड रखें, अर्थात् :-
‘(क) ‘संपदा’ से ऐसी भूमि अभिप्रेत होगी जो कृषि के प्रयोजनों के लिए या कृषि के सहायक प्रयोजनों के लिए या चरागाह के लिए अधिभोग में है या पट्टे पर दी गई है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात् :-
(1) ऐसी भूमि पर भवनों के स्थल और अन्य संरचनाएँ;
(2) ऐसी भूमि पर खड़े वृक्ष;
(3) वन भूमि और वन्य बंजर भूमि;
(4) जल से ढके क्षेत्र और जल पर तैरते हुए खेत;
(5) जंदर और घराट स्थल;
(6) कोई जागीर, इनाम, मुआफी या मुकर्ररी या इसी प्रकार का अन्य अनुदान,
किंतु इसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं हैं :-
(1) किसी नगर, या नगरक्षेत्र या ग्राम आबादी में कोई भवन-स्थल या किसी ऐसे भवन या स्थल से अनुलग्र कोई भूमि;
(2) कोई भूमि जो किसी नगर या ग्राम के स्थल के रूप में है, या
(3) किसी नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्र या छावनी या नगरक्षेत्र में या किसी क्षेत्र में, जिसके लिए कोई नगर योजना स्कीम मंजूर की गई है, भवन निर्माण के प्रयोजनों के लिए आरक्षित कोई भूमि।’।
(ञ) अनुच्छेद 31ग- यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(ट) अनुच्छेद 32-खंड (3) का लोप करें।
(ठ) अनुच्छेद 35-
(अ) संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 (सं.आ. 48) के प्रारंभ अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं;
(आ) खंड (क) (1) में, ‘अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद 32 के खंड (3)’ का लोप करें; और
(इ) खंड (ख) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़े, अर्थात् :-
‘(ग) संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात्, निवारक निरोध की बाबत जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर शून्य नहीं होगी कि वह इस भाग के उपबंधों में से किसी से असंगत है, किंतु ऐसी कोई विधि उक्त आदेश के प्रारंभ से पच्चीस वर्ष के अवसान पर, ऐसी असंगति की मात्रा तक, उन बातों के सिवाय प्रभावहीन हो जाएगी जिन्हें उनके अवसान के पूर्व किया गया या करने का लोप किया गया है।’।
(ङ) अनुच्छेद 35 के पश्चात् निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़ें, अर्थात् :-
’35क. स्थायी निवासियों और उनके अधिकारों की बाबत विधियों की व्यावृत्ति-
इस संविधान में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त ऐसी कोई विद्यमान विधि और इसके पश्चात् राज्य के विधान-मंडल द्वारा अधिनियमित ऐसी कोई विधि-
(क) जो उन व्यक्तियों के वर्गों को परिभाषित करती है जो जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासी हैं या होंगे, या
(ख) जो-
(1) राज्य सरकार के अधीन नियोजन;
(2) राज्य में स्थावर संपत्ति के अर्जन;
(3) राज्य में बस जाने; या
(4) छात्रवृत्तियों के या ऐसी अन्य प्रकार की सहायता के जो राज्य सरकार प्रदान करे, अधिकार,
की बाबत ऐसे स्थायी निवासियों को कोई विशेष अधिकार और विशेषाधिकार प्रदत्त करती है या अन्य व्यक्तियों पर कोई निर्बंधन अधिरोपित करती है, इस आधार पर शून्य नहीं होगी कि वह इस भाग के किसी उपबंध द्वारा भारत के अन्य नागरिकों को प्रदत्त किन्हीं अधिकारों से असंगत है या उनको छीनती या न्यून करती है।’।
(5) भाग 4- यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(6) भाग 4क- यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(5) भाग 5-
(क) अनुच्छेद 55-
(अ) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य की जनसंख्या तिरसठ लाख समझी जाएगी;
(आ) स्पष्टीकरण में परंतुक का लोप करें।
(ख) अनुच्छेद 81- खंड (2) और (3) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखें, अर्थात् :-
‘(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए,-
(क) लोक सभा में राज्य को छह स्थान आबंटित किए जाएँगे;
(ख) परिसीमन अधिनियम, 1972 के अधीन गठित परिसीमन आयोग द्वारा राज्य को ऐसी प्रक्रिया के अनुसार, जो आयोग उचित समझे, एक सदस्यीय प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा;
(ग) निर्वाचन-क्षेत्र, यथासाध्य, भौगोलिक रूप से संहत क्षेत्र होंगे और उनका परिसीमना करते समय प्राकृतिक विशेषताओं, प्रशासनिक इकाइयों की विद्यमान सीमाओं, संचार की सुविधाओं और लोक सुविधा को ध्यान में रखा जाएगा; और
(घ) उन निर्वाचन-क्षेत्रों में, जिनमें राज्य विभाजित किया जाए, पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र समाविष्ट नहीं होगा
(3) खंड (2) की कोई बात लोक सभा में राज्य के प्रतिनिधित्व पर तब तक प्रभाव नहीं डालेगी जब तक परिसीमन अधिनियम, 1972 के अधीन संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र के परिसीमन से संबंधित परिसीमन आयोग के अंतिम आदेश या आदेशों के भारत के राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को विद्यमान सदन का विघटन न हो जाए।
(4) (क) परिसीमन आयोग राज्य की बाबत अपने कर्तव्यों में अपनी सहायता करने के प्रयोजन के लिए अपने साथ पाँच व्यक्तियों को सहयोजित करेगा जो राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले, लोक सभा के सदस्य होंगे।
(ख) राज्य से इस प्रकार सहयोजित किए जाने वाले व्यक्ति सदन की संरचना का सम्यक् ध्यान रखते हुए लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष्ट किए जाएँगे।
(ग) उपखंड (ख) के अधीन किए जाने वाले प्रथम नामनिर्देशन लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) दूसरा संशोधन आदेश, 1974 के प्रारंभ से दो मास के भीतर किए जाएँगे।
(घ) किसी भी सहयोजित सदस्य को परिसीमन आयोग के किसी विनिश्चय पर मत देने या हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं होगा।
(ङ) यदि मृत्यु या पदत्याग के कारण किसी सहयोजित सदस्य का पद रिक्त हो जाता है तो उसे लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा और उपखंड (क) और (ख) के उपबंधों के अनुसार यथाशक्य शीघ्र भरा जाएगा’।
(ग) अनुच्छेद 82- दूसरे और तीसरे परंतुक का लोप करें।
(घ) अनुच्छेद 105- खंड (3) में ‘वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने के ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं’ के स्थान पर ‘वही होंगी जो इस संविधान के प्रारंभ पर यूनाइटेड किंगडम की पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कामन्स की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं’ रखें।’।
(ङ) अनुच्छेद 132 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात् :-
‘132. कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता-
(1) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल, दांडिक या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी यदि वह उच्च न्यायालय प्रमाणित कर देता है कि उस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है।
(2) जहाँ उच्च न्यायालय ने ऐसे प्रमाणपत्र देने से इंकार कर दिया है वहाँ, यदि उच्चतम न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है तो, वह ऐसे निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील के लिए विशेष इजाजत दे सकेगा।
(3) जहाँ ऐसा प्रमाणपत्र या ऐसी इजाजत दे दी गई है वहाँ उस मामले में कोई पक्षकार इस आधार पर कि पूर्वोक्त किसी प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है तथा उच्चतम न्यायालय की इजाजत से अन्य किसी आधार पर, उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा।
स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए ‘अंतिम आदेश’ पद के अंतर्गत ऐसे विवाद्यक का विनिश्चय करने वाला आदेश है जो, यदि अपीलार्थी के पक्ष में विनिश्चित किया जाता है तो, उस मामले के अंतिम निपटारे के लिए पर्याप्त होगा।’।
(च) अनुच्छेद 133-
(अ) खंड (1) में ‘अनुच्छेद 134क के अधीन’ का लोप करें।
(आ) खंड (1) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अंतःस्थापित करें, अर्थात् :-
‘(1क) संविधान (तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1972 की धारा 3 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में इस उपांतरण के अधीन लागू होंगे कि उसमें ‘इस अधिनियम’, ‘इस अधिनियम के प्रारंभ’ यह अधिनियम पारित नहीं किया गया हो’ और ‘इस अधिनियम द्वारा यथासंशोधित उस खंड के उपबंधों को’ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमशः ‘संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) दूसरा संशोधन आदेश, 1974’, ‘उक्त आदेश के प्रारंभ’, ‘उक्त आदेश पारित नहीं किया गया हो’ और ‘उक्त खंड के उपबंधों, जैसे कि वे उक्त आदेश के प्रारंभ के पश्चात् हो’ प्रति निर्देश है।’।
(छ) अनुच्छेद 134-
(अ) खंड (1) के उपखंड (ग) में ‘अनुच्छेद 134क के अधीन’ का लोप करें;
(आ) खंड (2) में ‘संसद’ के पश्चात् ‘राज्य के विधान-मंडल के अनुरोध पर’ अंतःस्थापित करें।
(ज) अनुच्छेद 134क, 135, 139 और 139क- ये अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं हैं।
(झ) अनुच्छेद 145- खंड (1) में उपखंड (गग) का लोप करें।
(ञ) अनुच्छेद 150- ‘जो राष्ट्रपति, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की सलाह पर, विहित करे’ के स्थान पर ‘जो भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक राष्ट्रपति के अनुमोदन से, विहित करे’ रखें।
(8) भाग 6
(क) अनुच्छेद 153 से 217 तक, अनुच्छेद 219, अनुच्छेद 221, अनुच्छेद 223, 224, 224क और 225 तथा अनुच्छेद 227 से 233, अनुच्छेद 233क और अनुच्छेद 234 से 237 तक का लोप करें।
(ख) अनुच्छेद 220- संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1960 के प्रारंभ, अर्थात् 26 जनवरी, 1960 के प्रति निर्देश हैं।
(ग) अनुच्छेद 222- खंड (1) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अंतःस्थापित करें, अर्थात् :-
‘(1क) प्रत्येक ऐसा अंतरण जो जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय से या उस न्यायालय को हो, राज्यपाल के परामर्श के पश्चात् किया जाएगा।’।
(घ) अनुच्छेद 226-
(अ) खंड (2) को खंड (1क) के रूप में पुनःसंख्यांकित करें।
(आ) खंड (3) का लोप करें;
(इ) खंड (4) को खंड (2) के रूप में पुनःसंख्यांकित करें और इस प्रकार पुनःसंख्यांकित खंड (2) में ‘इस अनुच्छेद’ के स्थान पर ‘खंड (1) या खंड (1क)’ रखें।
(9) भाग 8- यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(10) भाग 10- यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(11) भाग 11-
(क) अनुच्छेद 246-
(अ) खंड (1) में, ‘खंड (2) और खंड (3)’ के स्थान पर ‘खंड (2)’ रखें।
(आ) खंड (2) में, ‘खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी’ का लोप करें।
(इ) खंड (3) और खंड (4) का लोप करें।
(ख) अनुच्छेद 248 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात् :-
‘248. अवशिष्ट विधायी शक्तियाँ- संसद को,-
(क) विधि द्वारा स्थापित सरकार को आतंकित करने या लोगों या लोगों के किसी अनुभाग में आतंक उत्पन्न करने या लोगों के किसी अनुभाग को पृथक् करने या लोगों के विभिन्न अनुभागों के बीच समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कार्यों को अंतर्वलित करने वाले क्रियाकलाप को रोकने के संबंध में;
(कक) भारत की प्रभुता तथा प्रादेशिक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या विछिन्न करने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग का अध्यर्पण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग को संघ से विलग कराने अथवा भारत के राष्ट्रीय ध्वज, भारतीय राष्ट्रगान और इस संविधान का अपमान करने वाले अन्य क्रियाकलाप को रोकने के संबंध में, और
(ख) (1) समुद्र या वायु द्वारा विदेश यात्रा पर;
(2) अंतर्देशीय विमान यात्रा पर;
(3) मनीआर्डर, फोनतार, और तार को सम्मिलित करते हुए, डाक वस्तुओं पर,
कर लगाने के संबंध में, विधि बनाने की अनन्य शक्ति है।
स्पष्टीकरण- इस अनुच्छेद में, ‘आतंकवादी कार्य’ से बमों, डायनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थों या ज्वलनशील पदार्थों या अग्नयायुधों या अन्य प्राणहर आयुधों या विषों का या अपायकर गैसों या अन्य रसायनों या परिसंकटमय प्रकृति के किन्हीं अन्य पदार्थों का (चाहे वे जैव हों या अन्य) उपयोग करके किया गया कोई कार्य या बात अभिप्रेत है।’।
(खख) अनुच्छेद 249, खंड (1) में, ‘राज्य-सूची में प्रगणित ऐसे विषय के संबंध में, जो उस संकल्प में विनिर्दिष्ट है’, के स्थान पर ‘उस संकल्प में विनिर्दिष्ट ऐसे विषय के संबंध में, जो संघ-सूची या समवर्ती सूची में प्रगणित विषय नहीं है,’ रखें।
(ग) अनुच्छेद 250 ‘राज्य-सूची में प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में’ के स्थान पर ‘संघ-सूची में प्रगणित न किए गए विषयों के संबंध में भी’ रखें।
(घ) खंड (घ) का लोप करें।
(ङ) अनुच्छेद 253 में निम्नलिखित परंतुक जोड़ें, अर्थात् :-
‘परंतु संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ के पश्चात्, जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में व्यवस्था को प्रभावित करने वाला कोई विनिश्चय भारत सरकार द्वारा उस राज्य की सरकार की सहमति से ही किया जाएगा।’।
(च) अनुच्छेद 255 का लोप करें।
(छ) अनुच्छेद 256 को उसके खंड (1) के रूप में पुनःसंख्यांकित करें और उसमें निम्नलिखित नया खंड जोड़ें, अर्थात् :-
‘(2) जम्मू-कश्मीर राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग करेगा जिससे उस राज्य के संबंध में संविधान के अधीन संघ के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का संघ द्वारा निर्वहन सुगम हो; और विशिष्टतया उक्त राज्य, यदि संघ वैसी अपेक्षा करे, संघ की ओर से और उसके व्यय पर संपत्ति का अर्जन या अधिग्रहण करेगा अथवा यदि संपत्ति उस राज्य की हो तो ऐसे निबंधनों पर, जो करार पाए जाएँ या करार के अभाव में जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा अवधारित किए जाएँ, उसे संघ को अंतरित करेगा।’।
(ज) अनुच्छेद 261- खंड (2) में ‘संसद द्वारा बनाई गई’ का लोप करें।
(12) भाग 12
(क) अनुच्छेद 266, 282, 284, 298 और 300- इन अनुच्छेदों में राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।
(ख) अनुच्छेद 267 के खंड (2), अनुच्छेद 273, अनुच्छेद 283 के खंड (2) और अनुच्छेद 290 का लोप करें।
(ग) अनुच्छेद 277 और 295- इन अनुच्छेदों में संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं।
(घ) उपशीर्ष ‘अध्याय 4- संपत्ति का अधिकार’ और अनुच्छेद 300क का लोप करें।
(13) भाग 13- अनुच्छेद 303 के खंड (1) में, ‘सातवीं अनुसूची की सूचियों में से किसी में व्यापार और वाणिज्य संबंधी किसी प्रविष्टि के आधार पर’ का लोप करें।
(14) भाग 14- अनुच्छेद 312 के सिवाय इस भाग में, ‘राज्य’ के प्रति निर्देश के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य नहीं है।
(15) भाग 14क- यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं होता है।
(16) भाग 15- अनुच्छेद 324-
(क) खंड (1) में, जम्मू-कश्मीर के विधान-मंडल के दोनों सदनों में से किसी सदन के लिए निर्वाचनों के बारे में संविधान के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रति निर्देश है।
(ख) अनुच्छेद 325, 326 और 327- इस अनुच्छेद में राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।
(ग) अनुच्छेद 328 का लोप करें।
(घ) अनुच्छेद 329-
(अ) राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है;
(आ) ‘या अनुच्छेद 328’ का लोप करें।
(17) भाग 16
मूल खंड (क) का लोप किया गया और खंड (ख) और खंड (ग) को, खंड (क) और खंड (ख) के रू प में पुनःअक्षरांकित किया गया।
(क) अनुच्छेद 331, 332, 333, 336 और 337 का लोप करें।
(ख) अनुच्छेद 334 और 335- राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है।
(ग) अनुच्छेद 339- खंड (1) में ‘राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों’ शब्दों के स्थान पर ‘राज्यों की अनुसूचित जनजातियों’ शब्द रखें।
(18) भाग 17
इस भाग के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य को केवल वहीं तक लागू होंगे जहाँ तक वे-
(1) संघ की राजभाषा,
(2) एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच, अथवा किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा, और
(3) उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा, से संबंधित हैं।
(19) भाग 18
(क) अनुच्छेद 352 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात् :-
‘352. आपात की उद्घोषणा – (1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि गंभीर आपात विद्यमान है जिससे युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है, तो वह उद्घोषणा द्वारा उस आशय की घोषणा कर सकेगा।
(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा-
(क) पश्चात्वर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी;
(ख) संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी;
(ग) दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है:
परंतु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है, और यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है किंतु ऐसी उद्घोषणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है।
(3) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति का संकट सन्निकट है तो यह घोषित करने वाली आपात की उद्घोषणा कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है, युद्ध या ऐसा कोई आक्रमण या अशांति के वास्तव में होने से पहले भी की जा सकेगी।
(4) इस अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति अथवा युद्ध, बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति के सन्निकट संकट के भिन्न-भिन्न आधारों पर भिन्न-भिन्न घोषणाएँ करने की शक्ति होगी चाहे खंड (1) के अधीन राष्ट्रपति द्वारा पहले से की गई उद्घोषणा हो या न हो और ऐसी उद्घोषणा प्रवर्तन में हो या नहीं।
(5) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-
(क) खंड (1) और खंड (3) में वर्णित राष्ट्रपति का समाधान अंतिम और निश्चायक होगा और उसे किसी आधार पर किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा;
(ख) उपखंड (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए न तो उच्चतम न्यायालय को न किसी अन्य न्यायालय को-
(1) राष्ट्रपति द्वारा की गई उद्घोषणा द्वारा खंड (1) में वर्णित आशय की घोषणा; या
(2) ऐसी उद्घोषणा के प्रवृत्त बने रहने, की विधि मान्यता के बारे में किसी भी आधार पर कोई प्रश्न ग्रहण करने की अधिकारिता होगी।
(6) केवल आंतरिक अशांति या उसका संकट सन्निकट होने के आधार पर की गई आपात् की उद्घोषणा(अनुच्छेद 354 की बाबत के सिवाय) जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में तभी लागू होगी जब वह-
(क) उस राज्य की सरकार के अनुरोध पर या उसकी सहमति से की गई है; या
(ख) जहाँ वह इस प्रकार नहीं की गई है वहाँ वह उस राज्य की सरकार के अनुरोध पर या उसकी सहमति से राष्ट्रपति द्वारा बाद में लागू की गई है।’।
(ख) अनुच्छेद 353- परंतुक का लोप करें।
(ग) अनुच्छेद 356-
(अ) खंड (1) में, इस संविधान के उपबंधों या उपबंध के प्रति निर्देशों का जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के संविधान के उपबंधों या उपबंध के प्रति निर्देश है;
(आ) खंड (4) में :-
(1) प्रारंभिक भाग के स्थान पर निम्नलिखित रखें, अर्थात् :-
‘इस प्रकार अनुमोदित उद्घोषणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, खंड (3) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे संकल्प के पारित किए जाने की तारीख से छह मास की अवधि के अवसान पर प्रवृत्त नहीं रहेगी।’;
(2) दूसरे परंतुक के पश्चात् निम्नलिखित परंतुक अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :-
‘परंतु यह भी कि जम्मू-कश्मीर राज्य के बारे में 18 जुलाई, 1990 को खंड (1) के अधीन जारी की गई उद्घोषणा के मामले में इस खंड के पहले परंतुक में ‘तीन वर्ष’ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह ‘छह वर्ष’ के प्रति निर्देश है।’।
(इ) खंड (5) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखें, अर्थात् :-
‘(5) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, खंड (1) में वर्णित राष्ट्रपति का समाधान अंतिम और निश्चायक होगा और किसी भी आधार पर किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।’।
(घ) अनुच्छेद 357- खंड (2) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखें, अर्थात् :-
‘(2) राज्य के विधान-मंडल की शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद द्वारा अथवा राष्ट्रपति या खंड (1) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट अन्य प्राधिकारी द्वारा बनाई गई ऐसी विधि जिसे संसद अथवा राष्ट्रपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्घोषणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होता, उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात् एक वर्ष की अवधि के अवसान पर, अक्षमता की मात्रा तक, उन बातों के सिवाय जिन्हें उक्त अवधि के अवसान के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है प्रभावहीन हो जाएगी यदि वे उपबंध जो प्रभावहीन हो जाएँगे, सक्षम विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा पहले ही निरसित या उपांतरणों के सहित या उनके बिना पुनः अधिनियमित नहीं कर दिए जाते हैं।’।
(ङ) अनुच्छेद 358 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात् :-
‘358. आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन- जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब अनुुच्छेद 19 की कोई बात भाग 3 में यथापरिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्बंधित नहीं करेगी किंतु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरंत प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है।’।
(च) अनुच्छेद 359-
(अ) खंड (1) में ‘(अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर)’ का लोप करें;
(आ) खंड (1क) में,-
(1) ‘(अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर)’ का लोप करें;
(2) परंतुक का लोप करें;
(इ) खंड (1ख) का लोप करें;
(ई) खंड (2) में परंतुक का लोप करें।
(छ) अनुच्छेद 360 का लोप करें।
(20) भाग 19
(क) अनुच्छेद 361क- यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(ख) अनुच्छेद 365 का लोप करें।
(ग) अनुच्छेद 367- खंड (3) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ें, अर्थात् :-
‘(4) इस संविधान के, जैसा कि वह जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू होता है, प्रयोजनों के लिए-
(क) इस संविधान या उसके उपबंधों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उक्त राज्य के संबंध में लागू संविधान के या उसके उपबंधों के प्रति निर्देश भी हैं;
(कक) राज्य की विधान-सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा, जम्मू-कश्मीर के सदरे-रियासत के रूप में तत्समय मान्यताप्राप्त तथा तत्समय पदस्थ राज्य मंत्रि-परिषद् की सलाह पर कार्य करने वाले व्यक्ति के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं;
(ख) उक्त राज्य की सरकार के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत अपनी मंत्रि-परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं:
परंतु 10 अप्रैल, 1965 से पहले की किसी अवधि की बाबत, ऐसे निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत अपनी मंत्रि-परिषद् की सलाह से कार्य कर रहे सदरे-रियासत के प्रति निर्देश हैं;
(ग) उच्च न्यायालय के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश हैं।
(घ) उक्त राज्य के स्थायी निवासियों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनसे ऐसे व्यक्ति अभिप्रेत हैं जिन्हें राज्य में प्रवृत्त विधियों के अधीन राज्य की प्रजा के रूप में, संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ से पूर्व, मान्यता प्राप्त थी या जिन्हें राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा राज्य के स्थायी निवासियों के रूप में मान्यता प्राप्त है; और
(ङ) राज्यपाल के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं :
परंतु 10 अप्रैल, 1965 से पहले की किसी अवधि की बाबत, ऐसे निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राष्ट्रपति द्वारा जम्मू-कश्मीर के सदरे-रियासत के रूप में मान्यता प्राप्त व्यक्ति के प्रति निर्देश हैं और उनके अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा सदरे-रियासत की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सक्षम व्यक्ति के रूप में मान्यता प्राप्त किसी व्यक्ति के प्रति निर्देश भी हैं।’।
(21) भाग 20
अनुच्छेद 368-
(क) खंड (3) में निम्नलिखित और परंतुक जोड़े, अर्थात् :-
‘परंतु यह और कि कोई संशोधन जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में तभी प्रभावी होगा जब वह अनुच्छेद 370 के खंड (1) के अधीन राष्ट्रपति के आदेश द्वारा लागू किया गया हो।’।
(ख) खंड (4) और खंड (5) का लोप करें, और खंड (3) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ें, अर्थात् :-
‘(4) जम्मू-कश्मीर के संविधान के-
(क) राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों, कृत्यों, कर्तव्यों, उपलब्धियों, भत्तों, विशेषाधिकारों या उन्मुक्तियों, या
(ख) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, विभेद के बिना निर्वाचन नामावली में सम्मिलित किए जाने की पात्रता, वयस्क मताधिकार और विधान परिषद के गठन, जो जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 138, 139, 140 और 150 में विनिर्दिष्ट विषय हैं,
से संबंधित किसी उपबंध में या उसके प्रभाव में कोई परिवर्तन करने के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि का कोई प्रभाव तभी होगा जब ऐसी विधि राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के पश्चात्, उसकी अनुमति प्राप्त कर लेती है।’।
(22) भाग 21
(क) अनुच्छेद 369, 371, 371क, 372क, 373 और अनुच्छेद 376 से 378क तक का और अनुच्छेद 392 का लोप करें।
(ख) अनुच्छेद 372 में,-
(अ) खंड (2) और (3) का लोप करें;
(आ) भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त विधि के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाली हिदायतों, ऐलानों, इश्तिहारों, परिपत्रों, रोबकारों, इरशादों, याददाश्तों, राज्य परिषद् के संकल्पों, संविधान सभा में संकल्पों और अन्य लिखतों के प्रति निर्देश होंगे;
(इ) संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 (सं.आ. 48) के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं।
(ग) अनुच्छेद 374-
(अ) खंड (1), (2), (3) और (5) का लोप करें;
(आ) खंड (4) में, राज्य में प्रिवी कौंसिल के रूप में कार्य करने वाले प्राधिकारी के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह जम्मू-कश्मीर संविधान अधिनियम संवत् 1996 के अधीन गठित सलाहकार बोर्ड के प्रति निर्देश है; और संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं।
(23) भाग 22- अनुच्छेद 394 तथा 395 का लोप करें।
(24) तीसरी अनुसूची- प्ररूप 5, 6, 7 और 8 का लोप करें।
(25) पाँचवीं अनुसूची- यह अनुसूची जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(26) छठी अनुसूची- यह अनुसूची जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है।
(27) सातवीं अनुसूची-
(क) सूची 1- संघ सूची-
(अ) प्रविष्टि 2क का लोप करें;
(आ) प्रविष्टि 3 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
‘3. छावनियों का प्रशासन।’;
(इ) प्रविष्टि 8, 9, 34 और 79 का लोप करें;
(ई) प्रविष्टि 72 में,-
(1) किसी ऐसी निर्वाचन याचिका में जिसके द्वारा उस राज्य के विधान-मंडल के दोनों सदनों में से किसी सदन के लिए निर्वाचन प्रश्नगत है, जम्मू-कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा किए गए किसी विनिश्चय या आदेश के विरुद्ध उधातम न्यायालय को अपीलों के संबंध में राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश है;
(2) अन्य मामलों के संबंध में राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत उस राज्य के प्रति निर्देश नहीं है;
(उ) प्रविष्टि 81 में ‘अंतरराज्यिक प्रव्रजन’ का लोप करें;
(ऊ) प्रविष्टि 97 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
’97. (क) विधि द्वारा स्थापित सरकार को आतंकित करने या लोगों या लोगों के किसी अनुभाग में आतंक उत्पन्न करने या लोगों के किसी अनुभाग को पृथक् करने या लोगों के विभिन्ना अनुभागों के बीच समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कार्यों को अंतर्वलित करने वाले;
(ख) भारत की प्रभुता तथा प्रादेशिक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या विछिन्न करने, अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग का अध्यर्पण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के भाग को संघ से विलग कराने अथवा भारत के राष्ट्रीय ध्वज, भारतीय राष्ट्रगान और इस संविधान का अपमान करने वाले, क्रियाकलाप को रोकना,
समुद्र या वायु द्वारा विदेश यात्रा, अंतरदेशीय विमान यात्रा और डाक वस्तुओं पर, जिनके अंतर्गत मनीआर्डर, फोनतार और तार हैं, कर।
स्पष्टीकरण- इस प्रविष्टि में, ‘आतंकवादी कार्य’ का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 248 के स्पष्टीकरण में है।’।
(ख) सूची 2- राज्य सूची का लोप करें।
(ग) सूची 3- समवर्ती सूची-
(अ) प्रविष्टि 1 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
‘1. दंड विधि (जिसके अंतर्गत सूची 1 के विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराध और सिविल शक्ति की सहायता के लिए नौ-सेना, वायुसेना या संघ के किन्हीं अन्य सशस्त्र बलों के प्रयोग नहीं हैं,) जहाँ तक ऐसी दंड विधि इस अनुसूची में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधि के विरुद्ध अपराधों से संबंधित है।
(आ) प्रविष्टि 2 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
‘2. दंड प्रक्रिया, (जिसके अंतर्गत अपराधों को रोकना तथा दंड न्यायालयों का, जिनके अंतर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय नहीं हैं, गठन और संगठन है) जहाँ तक उसका संबंध-
(1) किन्हीं ऐसे विषयों से, जो ऐसे विषय हैं, जिनके संबंध में संसद को विधियाँ बनाने की शक्ति है, संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराधों से है, और
(2) किसी विदेश में राजनयिक और कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने तथा शपथ-पत्र लिए जाने से है’;
(इ) प्रविष्टि 3, प्रविष्टि 5 से 10 तक, (जिसमें ये दोनों सम्मिलित हैं,) प्रविष्टि 14, 15, 17, 20, 21, 27, 28, 29, 31, 32, 37, 38, 41 तथा 44 का लोप करें;
(ई) प्रविष्टि 11क, 17क, 17ख, 20क और 33क जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं हैं;
(उ) प्रविष्टि 12 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
’12. साक्ष्य तथा शपथ, जहाँ तक उनका संबंध-
(1) किसी विदेश में राजनयिक और कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने तथा शपथ-पत्र लिए जाने से है; और
(2) किन्हीं ऐसे अन्य विषयों से है, जो ऐसे विषय हैं, जिनके संबंध में संसद को विधियाँ बनाने की शक्ति है।’।
(ऊ) प्रविष्टि 13 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
’13. सिविल प्रक्रिया, जहाँ तक उसका संबंध किसी विदेश में राजनयिक तथा कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने से तथा शपथ-पत्र लिए जाने से है’;
(ए) प्रविष्टि 25 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
’25. श्रमिकों को व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण’;
(ऐ) प्रविष्टि 30 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
’30. जन्म-मरण सांख्यिकी, जहाँ तक उसका संबंध जन्म तथा मृत्यु से है, जिसके अंतर्गत जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण है’;
(ओ) प्रविष्टि 42 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :-
’42. संपत्ति का अर्जन और अधिग्रहण, जहाँ तक उसका संबंध सूची 1 की प्रविष्टि 67 या सूची 3 की प्रविष्टि 40 के अंतर्गत आने वाली संपत्ति के या किसी ऐसी मानवीय कलाकृति के, जिसका कलात्मक या सौंदर्यात्मक मूल्य है, अर्जन से है’;
(औ) प्रविष्टि 45 में, ‘सूची 2 या सूची 3’ के स्थान पर ‘इस सूची’ शब्द रखें।
(28) नौवीं अनुसूची
(क) प्रविष्टि 64 के पश्चात्, निम्नलिखित प्रविष्टियाँ जोड़ें, अर्थात् :-
’64क. जम्मू-कश्मीर राज्य कुठ अधिनियम (संवत् 1978 का सं. 1)।
64ख. जम्मू-कश्मीर अभिधृति अधिनियम (संवत् 1980 का सं. 2)।
64ग. जम्मू-कश्मीर भूमि अन्य संक्रमण अधिनियम (संवत् 1995 का सं. 5)।
64घ. जम्मू-कश्मीर बृहद् भू-संपदा उत्सादन अधिनियम (संवत् 2007 का सं. 17)।
64ङ. जागीरों और भू-राजस्व के अन्य समनुदेशनों आदि के पुनर्ग्रहण के बारे में 1951 का आदेश सं. 6-एच, तारीख 10 मार्च, 1951।
64च. जम्मू-कश्मीर बंधक संपत्ति की वापसी अधिनियम, 1976 (1976 का अधिनियम 14)’;
64छ. जम्मू-कश्मीर ऋणी राहत अधिनियम, 1976 (1976 का अधिनियम 15)’;
(ख) प्रविष्टि 65 से 86 तक जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं होती है;
(ग) प्रविष्टि 86 के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अंतःस्थापित करें, अर्थात् :-
’87. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (1951 का केंद्रीय अधिनियम 43), लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 1974 (1974 का केंद्रीय अधिनियम 58), निर्वाचन विधि (संशोधन) अधिनियम, 1975 (1975 का केंद्रीय अधिनियम 40)।’;
(घ) प्रविष्टि 91 के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अंतःस्थापित करें, अर्थात् :-
’92. आंतरिक सुरक्षा अधिनियम, 1971 (1971 का केंद्रीय अधिनियम 26)।’;
(ङ) प्रविष्टि 129 के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अंतःस्थापित करें, अर्थात् :-
‘130. आक्षेपणीय सामग्री प्रकाशन निवारण अधिनियम, 1976 (1976 का केंद्रीय अधिनियम 27)।’;
(च) ऊपर उपदर्शित रूप में, प्रविष्टि 87, प्रविष्टि 92 और प्रविष्टि 130 के अंतःस्थापन के पश्चात् प्रविष्टि 87 से प्रविष्टि 188 तक को क्रमशः प्रविष्टि 65 से प्रविष्टि 166 के रूप में पुनःसंख्यांकित करें।
(29) दसवीं अनुसूची
(क) ‘(अनुच्छेद 102 (2) और अनुच्छेद 191 (2))’ शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के स्थान पर, ‘(अनुच्छेद 102 (2))’ कोष्ठक, शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(ख) पैरा 1 के खंड (क) में, ‘या किसी राज्य की, यथास्थिति, विधान सभा या विधान-मंडल का कोई सदन’ शब्दों का लोप किया जाएगा;
(ग) पैरा 2 में,-
(1) उपपैरा 1 में, स्पष्टीकरण के खंड (ख) के उपखंड (2) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188’ शब्दों और अंकों के स्थान पर, ‘अनुच्छेद 99’ शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(2) उपपैरा (3) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188’ शब्दों और अंकों के स्थान पर, ‘अनुच्छेद 99’ शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(3)उपपैरा (4) में, संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 के प्रारंभ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) संशोधन आदेश, 1989 के प्रारंभ के प्रति निर्देश है;
(घ) पैरा 5 में, ‘अथवा किसी राज्य की विधान परिषद् के सभापति या उपसभापति अथवा किसी राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष’ शब्दों का लोप किया जाएगा;
(ङ) पैरा 6 के उपपैरा (2) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियाँ हैं या अनुच्छेद 212 के अर्थ में राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाहियाँ हैं’ शब्दों और अंकों के स्थान पर ‘अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियाँ है’ शब्द और अंक रखे जाएँगे;
(च) पैरा 8 के उपपैरा (3) में, ‘यथास्थिति, अनुच्छेद 105 या अनुच्छेद 194’ शब्दों और अंकों के स्थान पर, ‘अनुच्छेद 105’ शब्द और अंक रखे जाएँगे;
परिशिष्ट 3
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 से उद्धरण
- संक्षिप्त नाम और प्रारंभ-
(1)
(2) यह उस तारीख को प्रवृत्त होगा जो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे और इस अधिनियम के विभिन्न उपबंधों के लिए वि तारीखें नियत की जा सकेंगी।
- अनुच्छेद 22 का संशोधन- संविधान के अनुच्छेद 22 में,-
(क) खंड (4) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखा जाएगा, अर्थात् :-
‘(4) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली कोई विधि किसी व्यक्ति का दो मास से अधिक की अवधि के लिए निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नही करेगी जब तक कि समुचित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति की सिफारिश के अनुसार गठित सलाहकार बोर्ड ने उक्त दो मास की अवधि की समाप्ति से पहले यह प्रतिवेदन नहीं दिया है कि उसकी राय में ऐसे निरोध के लिए पर्याप्त कारण है :
परंतु सलाहकार बोर्ड एक अध्यक्ष और कम से कम दो अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा और अध्यक्ष समुचित उच्च न्यायालय का सेवारत न्यायाधीश होगा और अन्य सदस्य किसी उच्च न्यायालय के सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे :
परंतु यह और कि इस खंह की कोई बात किसी व्यक्ति का उस अधिकतम अवधि के लिए निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जो खंड (7) के उपखंड (क) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विहित की जाए।
स्पष्टीकरण- इस खंड में, ‘समुचित उच्च न्यायालय’ से अभिप्रेत है-
(1) भारत सरकार या उस सरकार के अधीनस्थ किसी अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा किए गए निरोध आदेश के अनुसरण में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में, दिल्ली संघ राज्यक्षेत्र के लिए उच्च न्यायालय;
(2) (संघ राज्यक्षेत्र से भिन्न) किसी राज्य सरकार द्वारा किए गए निरोध आदेश के अनुसरण में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में, उस राज्य के लिए उच्च न्यायालय; और
(3) किसी संघ राज्यक्षेत्र के प्रशासक या ऐसे प्रशासक के अधीनस्थ किसी अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा किए गए निरोध आदेश के अनुसरण में निरुद्ध व्यक्ति की दशा में वह उच्च न्यायालय जो संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन विनिर्दिष्ट किया जाए।’;
(ख) खंड (7) में,-
(1) उपखंड (क) का लोप किया जाएगा;
(2) उपखंड (ख) को उपखंड (क) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया जाएगा; और
(3) उपखंड (ग) को उपखंड (ख) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया जाएगा और इस प्रकार पुनःअक्षरांकित उपखंड में ‘खंड (4) के उपखंड (क)’ शब्दों, कोष्ठकों, अंक और अक्षर के स्थान पर ‘खंड (4)’ शब्द, कोष्ठक और अंक रखे जाएँगे।
परिशिष्ट 4
संविधान (छियासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2002
[12 दिसम्बर, 2002]
भारत के संविधान का और संशोधन करने के लिए अधिनियम
भारत गणराज्य के तिरपनवें वर्ष में संसद द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :–
1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ– (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम संविधान (छियासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2002 है।
(2) यह उस तारीख। को प्रवृत्त होगा जो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।
2. नए अनुच्छेद 21क का अंतःस्थापन– संविधान के अनुच्छेद 21 के पश्चात्, निम्नलिखित अनुच्छेद अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात :–
”21क. शिक्षा का अधिकार– राज्य, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में, जो राज्य विधि द्वारा, अवधारित करे, उपबंध करेगा ।”
- अनुच्छेद 45 के स्थान पर नए अनुच्छेद का प्रतिस्थापन– संविधान के अनुच्छेद 45 के स्थान पर, निम्नलिखित अनुच्छेद रखा जाएगा, अर्थात् :–
”45. छह वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था देखरेख और शिक्षा का उपबंध– राज्य, सभी बालकों के लिए छह वर्ष की आयु पूरी करने तक, प्रारंभिक बाल्यावस्था देख-रेख और शिक्षा देने के लिए उपबंध करने का प्रयास करेगा।” - अनुच्छेद 51क का संशोधन-संविधान के अनुच्छेद 51क में, खंड (ञ) के पश्चात्, निम्नलिखित खंड जोड़ा जाएगा, अर्थात् :–
”(ट) यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।”
* तारीख अधिसूचित की जानी है।
परिशिष्ट 5
संविधान (अठासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003
[15 जनवरी, 2004]
भारत के संविधान का और संशोधन करने के लिए अधिनियम
भारत गणराज्य के चौवनवें वर्ष में संसद् द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो :–
1. संक्षिप्त नाम और प्रारंभ–(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम संविधान (अठासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 है।
(2) यह उस तारीख* को प्रवृत्त होगा, जिसे केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, नियत करे।
2. नए अनुच्छेद 268क का अंतःस्थापन–संविधान के अनुच्छेद 268 के पश्चात् निम्नलिखित अनुच्छेद अंतःस्थापित किया जाएगा, अर्थात् :–
”268क. संघ द्वारा उद्गृहीत किए जाने वाला और संघ तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाने वाला सेवा कर–(1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा उद्गृहीत किए जाएँगे और ऐसा कर खंड (2) में उपबंधित रीति से भारत सरकार तथा राज्यों द्वारा संगृहीत और विनियोजित किया जाएगा।
(2) किसी वित्तीय वर्ष में, खंड (1) के उपबंध के अनुसार उद्गृहीत ऐसे किसी कर के आगमों का–
(क) भारत सरकार और राज्यों द्वारा संग्रहण;
(ख) भारत सरकार और राज्यों द्वारा विनियोजन,
संग्रहण और विनियोजन के ऐसे सिद्धान्तों के अनुसार किया जाएगा, जिन्हें संसद विधि द्वारा बनाए।”
- अनुच्छेद 270 का संशोधन–संविधान के अनुच्छेद 270 के खंड (1) में, ”अनुच्छेद 268 और अनुच्छेद 269” शब्दों और अंकों के स्थान पर, ”अनुच्छेद 268, अनुच्छेद 268क और अनुच्छेद 269” शब्द, अंक और अक्षर रखे जाएँगे।
4. सातवीं अनुसूची का संशोधन–संविधान की सातवीं अनुसूची में, सूची 1–संघ सूची में, प्रविष्टि 92ख के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अंतःस्थापित की जाएगी, अर्थात् :–
”92ग. सेवाओं पर कर।”