कोरोना के मरीजों की हार्ट अटैक से मौत चिंताजनक – डॉ. मिश्र

रायपुर
वरिष्ठ नेत्र विशेषज्ञ और अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने एक लेख लिखते हुए कहा कि पिछले कुछ समय से कोरोना से संक्रमित मरीजों के अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान और कुछ में अस्पताल से छुट्टी होने के बाद भी कुछ दिनों के अंदर हार्ट अटैक आने और हार्टफेल होने के मामले आए हैं। इनमें अनेक बड़े बड़े चिकित्सक, पत्रकार, कलाकार, राजनेता भी थे। जब लगातार ऐसे मामले ज्ञात हुए तब अध्ययनकतार्ओं का ध्यान इस ओर ध्यान आकृष्ट हुआ और कोरोना के मरीजों में हार्ट अटैक के कारणों के अध्ययन भी आरम्भ हुए। इससे अनेक तथ्य सामने आए, लेकिन हार्ट अटैक से मौत चिंताजनक विषय हैं।

श्री मिश्र ने आगे लिखा कि कोरोना वायरस महामारी की शुरूआत से ही ये सवाल सबके मन में था कि आखिर इस खतरनाक बीमारी से दुनिया को छुटकारा कैसे मिलेगा? क्या जो व्यक्ति इस वायरस की चपेट में आएगा वो ठीक होगा या नहीं? क्या इलाज के लिए अस्पताल जाना अनिवार्य होगा या फिर घर पर भी देखरेख हो सकता है? ऐसे ही ना जाने कितने सवाल आम लोगों के मन में थे। बहुत सारी अफवाहें, भ्रम भी लोगों के बीच बढ़ रहे थे। इन सबके बीच कोरोना से संक्रमित हुए अधिकांश लोग ठीक होकर अपने-अपने घर लौटने लगे और इस वायरस को मात देने लगे। अधिक संक्रमित लोगों की मृत्यु भी हुई। पर ठीक होने वाले मरीजों की संख्या अधिक ही रही। रिकवरी रेट भी अच्छा ही रहा। लेकिन आप ये जानकर हैरान रह जाएंगे कि इस बीमारी से ठीक होने के बाद भी इसके संक्रमण का प्रभाव शरीर के कुछ अंगों पर लंबे समय तक दिख सकता है। जिन के सम्बंध में भी अध्ययन चल रहे हैं। सन 2019 से ही कोरोना के मामले विश्वभर में लगतार सामने आ रहे हैं। भारत में कुछ दिनों से तो 3 लाख से अधिक मामले सामने आ रहे है। कोविड के पहले दौर में तो युवा और बच्चों में संक्रमण के मामले नहीं थे पर मौजूदा दौर में छोटे बच्चे, युवा भी संक्रमित हो रहे हैं। तब यह स्थिति और चिंतनीय होने लगी है। कोरोना वायरस में म्यूटेशन होने और अलग अलग स्ट्रेन आने के कारण अलग लक्षण भी दिखाई दे रहे हैं। यह वायरस फेफड़ों को संक्रमित करने के साथ ही प्रभावित व्यक्ति के खून को गाढ़ा कर रहा है। कोरोना संक्रमितों में डी-डाइमर प्रोटीन तेजी से बढ़ रहा है। इससे खून का थक्का बन रहा है।

खून गाढ़ा होने पर बन रहे थक्के हार्ट अटैक की बड़ी वजह बन रहे हैं। इससे ब्रेन स्ट्रोक, फेफड़े, हृदय की धमनी में अवरोध के मामले सामने आ रहे हैं। अनेक मामलों में गंभीर बात यह है कि संक्रमितों के साथ ही संक्रमण से उबर चुके लोगों के खून में भी डी-डाइमर बढ़ा हुआ मिला है। आमतौर पर होम आइसोलेशन में रहने वाले संक्रमित इसको लेकर अनजान होते हैं और उनकी खून की जांच नहीं हो पाती है। उन्हें पॉजिटिव रिपोर्ट आने पर बुखार, एंटीबायोटिक, विटामिन आदि की दवा लक्षणानुसार दे दी जाती हैं। इससे उनके लक्षण ठीक भी हो जाते हैं और वे वायरस के संक्रमण काल से उबरने लगते हैं। लेकिन ऐसे अनेक मरीजों में निगेटिव होने बाद कुछ दिनों तक उन्हें चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता होती है। इस पर उनका ध्यान नहीं जाता और बाद में कुछ मरीजों में आॅक्सीजन लेवल गिरने, छाती में दर्द होने, घबराहट की तकलीफ होती है। चिकित्सकों के अनुसार संक्रमण खत्म होते ही ज्यादातर लोग यह मान लेते हैं कि वे पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं। यह सही नहीं है। वायरस शरीर में कई दुष्प्रभाव छोड़ता है। मध्यम या गंभीर रूप से कोरोना संक्रमित होने वाले 20 से 30 फीसदी मरीजों में स्वस्थ होने के बाद भी डी-डाइमर प्रोटीन तय मात्रा से पांच गुना तक ज्यादा मिल रहा है। होम आइसोलेशन में रहने वाले 30 फीसदी संक्रमितों में ऐसा मिल रहा है। पोस्ट कोविड ओपीडी में हर दिन कुछ मरीज इस तरह के आ रहे हैं। चिकित्सकों के अनुसार कई ऐसे मरीज भी मिल रहे हैं, जिन्हें कोई लक्षण नहीं हैं। फेफड़े का सीटी स्कैन भी सामान्य मिला लेकिन डी-डाइमर तीन से पांच गुना तक बढ़ा रहता है। ज्यादा थकान, मांसपेशियों में दर्द और सांस फूलना डी-डाइमर बढ?े का संकेत हो सकता है। इलाज के लिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं। कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ?े के कारण खून पतला करने की दवाओं की मांग भी बढ़ी है। गंभीर रूप से बीमार मरीजों को खून पतला कर सकने के लिए दवाइयों का दिया जाना जरूरी है। पर यह जानकारी भी मरीजों को उपलब्ध नही है। कोरोना से संक्रमित मरीजों को लेकर एक अध्ययन किया गया है। इसके नतीजों के बाद यह दावा किया गया है कि यह वायरस कोरोना रोगियों के दिल पर भारी पड़ सकता है। अस्पताल में भर्ती होने वाले उन मरीजों में भी हार्ट फेल का खतरा बढ़ सकता है। इनमे पहले से हृदय संबंधी कोई समस्या नहीं होती है।

अमेरिका के माउंट सिनाई अस्पताल के शोधकतार्ओं के अनुसार इस तरह के मामले पाए गए हैं। डॉक्टरों को इस तरह की संभावित जटिलताओं के प्रति अवगत रहना चाहिए। अध्ययन की प्रमुख शोधकर्ता और इकान स्कूल आॅफ मेडिसिन की निदेशक ने कहा कि उन कुछ चुनिंदा लोगों में भी हार्ट फेल होने का खतरा पाया गया, जिनमें पहले से इस जोखिम का कोई कारक नहीं था। अमेरिकन कॉलेज आॅफ कार्डियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, शोधकतार्ओं ने पिछले साल 27 फरवरी से लेकर 26 जून के दौरान माउंट सिनाई हेल्थ सिस्टम के अस्पतालों में भर्ती रहे 6,439 कोरोना मरीजों पर चिकित्सीय इतिहास पर अध्ययन किया। उन्होंने इनमें से 37 रोगियों में हार्ट फेल के नए केस पाए। इन रोगियों में से आठ में पहले से हृदय संबंधी कोई समस्या नहीं थी। 14 पीड़ित हृदय रोग का पहले सामना कर चुके थे। जबकि 15 हृदय रोग से पीड़ित नहीं थे। लेकिन इनमें हार्ट अटैक के खतरे का एक कारक पाया गया था। एक अन्य अध्ययन के अनुसार कोविड-19 रोगियों को संक्रमण के बाद दिल का दौरा पड?े पर मौत होने का खतरा हो सकता है। कुछ दिनों पहले प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि इस मामले में महिलाएं विशेष रूप से अधिक संवेदनशील हैं। स्वीडन में किए गए अध्ययन में पाया गया है कि कोविड-19 की चपेट में आईं महिलाओं की दिल का दौरा पड?े से मौत होने की आशंका पुरुषों के मुकाबले अपेक्षाकृत अधिक है। यूरोपियन हार्ट पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि इसमें 1,946 ऐसे लोगों को शामिल किया गया जिन्हें बीते साल एक जनवरी से 20 जुलाई के बीच अस्पताल के बाहर किसी दूसरे स्थान पर दिल का दौरा पड़ा।

जबकि 1,080 ऐसे लोग शामिल किए गए जिनके साथ अस्पताल में ऐसा हुआ। स्वीडन के गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय के अध्ययनकतार्ओं के अनुसार महामारी के दौरान किए गए अध्ययन में अस्पताल में दिल के दौरे का शिकार हुए 10 प्रतिशत लोग कोरोना वायरस से संक्रमित थे। जबकि अस्पताल से बाहर ऐसे रोगियों की संख्या 16 प्रतिशत थी। उन्होंने कहा कि अस्पताल में दिल के दौरे का शिकार हुए लोंगों के तीस दिन के अंदर जान गंवाने का खतरा 3.4 गुणा बढ़ गया था। जबकि जिन लोगों के साथ अस्पताल से बाहर ऐसा हुआ उनके समान अवधि में मरने का खतरा 2.3 गुणा अधिक था। गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय ने कहा, हमारे अध्ययन से साफ पता चलता है कि दिल का दौरा पड?ा और कोरोना वायरस से संक्रमित होना एक घातक संयोजन है। इस सम्बंध में दिल्ली के प्रसिद्ध हृदय रोग चिकित्सक डॉक्टर के के अग्रवाल ने कुछ दिनों पहले एक वीडियो जारी कर कहा है कि यदि कोरोना के संक्रमण के समाप्त होने के बाद भी किसी व्यक्ति के सीने के बीचों-बीच जलन है, घुटन है, दवाब है, दर्द हो रहा है, पसीना या सांस फूलने जैसे लक्षण दिखें तो तुरंत वॉटर सॉल्युबल ऐस्प्रिन 300 मिली ग्राम की गोली चबा लें। जिससे हृदयाघात की संभावना 22 फीसदी कम हो जाती है। उन्होंने जानकारी दी कि अगर किसी व्यक्ति की उम्र 30 साल से ऊपर है, कोविड का संक्रमण हुआ है या उससे अभी उबरे हैं और अचानक छाती के बीचोबीच, दबाव, घुटन जैसे लक्षण दिखें तो सबसे पहले ऐस्प्रिन चबा लें। अगर नहीं है तो आप डिस्प्रिन ले सकते हैं। पर चिकित्सक की सलाह तुरन्त लें। इस मामले में तनिक भी लापरवाही न बरतें।