कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी,  प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन,  कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चैबे  बताया कि कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट ) ने कल  ग्रुप -7 समूह के सदस्य राष्ट्रों की हुई एक बैठक में ग्रुप ऑफ सेवन के सदस्य देशों के बीच गंभीर चर्चा में जिसमें दुनिया की कुछ सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा  विभिन्न देशों में किये जाने वाले व्यापार पर कम से कम 15 प्रतिशत की न्यूनतम वैश्विक कॉर्पोरेट कर दर लगाने पर बानी सहमति का स्वागत करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम बताया है। कैट ने कहा की यह कदम हालांकि बहुत प्रारंभिक चरण में है और यदि इसे लागू किया जाता है तो निश्चित रूप से बहुराष्ट्रीय कंपनियों की उन व्यापार प्रथाओं पर नियंत्रण और संतुलन स्थापित हो जाएगा जिसके चलते वो जिस देश में व्यापार करती हैं, उस देश को कर के एक बड़े हिस्से से वंचित कर देती हैं। इस सहमति को एक प्रगतिशील कदम कहा जा सकता है जो अंतरराष्ट्रीय कराधान प्रणाली में एक आवश्यक सुधार लाएगा।  बड़ी संख्या में बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ जो वास्तु अथवा सेवाओं का उपभोग करने वाले देशों के राजकोष से अपनी कर देयता से बचने के तरीके और साधन विकसित कर रही हैं, उन पर लगाम लगने की सम्भावना है ।  कैट ने जोर देकर कहा की  इस तरह के कर  का औचित्य तभी उचित है जब इस तरह के कर की बड़ी राशि उस देश को दी जाएँ जिसमें वस्तु या सेवा का उपयोग किया जाता है।
कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी ने कहा कि हालांकि समझौते का बारीक विवरण बाद में जारी होगा लेकिन प्रथम दृष्टि में यह ऐतिहासिक कदम अंतरराष्ट्रीय कर कानूनों में व्यापक बदलाव लाएगा और विभिन्न देशों के बीच एक बड़े समझौते को जमीन देगा  जिसका उद्देश्य बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को टैक्स हेवन की तलाश करने से रोका जाए और उन्हें अपनी आय का अधिक भुगतान उन देशों की सरकारों को करने के लिए मजबूर करें जहां वे अपना व्यवसाय संचालित करते हैं। यह निश्चित रूप से भारत जैसे देशों के राजस्व को बढ़ावा देगा जो दुनिया में सबसे बड़ी उपभोक्ता आधारित अर्थव्यवस्था है।
पारवानी और दोशी ने कहा कि इस तरह की अंतरराष्ट्रीय सहमति की विशेषता यह है की  बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब अपने लाभ को अपारदर्शी या लाभकारी कर ढांचे वाले देशों को चालाकी से स्थानांतरित करके अपने वित्तीय दायित्वों से दूर नहीं रह पाएंगे। वे कर का भुगतान करेंगे जैसा कि उस देश में अंतिम रूप से सहमत हो सकता है जहां वे अपना सामान या सेवाएं बेचते हैं।
ऐसा दिखाई देता है की इस सहमति से दवा पेटेंट, सॉफ्टवेयर और बौद्धिक संपदा पर रॉयल्टी से आय पर कर देने से बचने के लिए यह कंपनियां अपने पारंपरिक घरेलू देशों में उच्च करों का भुगतान करने से बचने की अनुमति लेती हैं। इस सहमति के अनुसार वैश्विक न्यूनतम कॉर्पोरेट कर की दर केवल 15  प्रतिशत तय करना बहुत कम है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के तेजी से बढ़ते व्यापारिक स्वरुप की तुलना में यह कर दर तय होनी चाहिए।
पारवानी और  दोशी ने कहा कि इस समझौते के पीछे मूल सिद्धांत उपभोग आधारित कर है न कि मूल आधारित कर जी -7 बैठक में लिए गए निर्णयों से यह ष्स्पष्टष् है  कि बड़ी डिजिटल फर्मों को उचित स्तर का कर देना चाहिए जिस देश में वो काम करती हैं ताकि उस देश राजस्व बढ़ा सकें ।
कैट के कर कानूनी सलाहकार और प्रसिद्ध कर अधिवक्ता श्री सुशील वर्मा ने कहा कि अगर समझौते को अंतिम रूप से लागू किया जाता है, तो कुछ सबसे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर अतिरिक्त कर लगाया जाएगा, जो संभावित रूप से अमेजॅन, फेसबुक और गूगल जैसे प्रौद्योगिकी दिग्गजों के साथ-साथ अन्य बड़े वैश्विक व्यवसायों करने वाली कंपनियों पर लागू होगा। जी – 7 देशों में जिसमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यू.के., यू.एस. और कनाडा शामिल हैं द्वारा कम से कम 15 प्रतिशत की वैश्विक न्यूनतम कर दर के लिए एक सर्वसम्मत समझौते पर पहुंचना, एक बड़ा कदम है हालांकि कर राशि दर को अंतिम रूप से अभी तय किया जाना बाकी है जो जुलाई 21 में इस प्रस्ताव को जी 20  की बैठक में रखे जाने के बाद इन्हें अंतिम रूप देने में छह महीने लग सकते हैं।
इस व्यापक सहमति का विश्लेषण करते हुए श्री सुशील वर्मा ने कहा कि निस्संदेह न्यूनतम कर की दर पर आम सहमति तक पहुंचना अपेक्षाकृत आसान हो सकता है, जब देशों के बीच कर राजस्व को विभाजित करने की बात आती है, तो यह इस बात पर निर्भर करता है कि कंपनियां अपना सामान और सेवाएं कहां बेचती हैं – जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिक्री का बिंदु कहा जाता है । इस सहमति से दुनिया के 139 देशों को सबसे बड़े और सबसे अधिक लाभदायक बहुराष्ट्रीय कंपनियों  के वैश्विक मुनाफे के एक छोटे से हिस्से पर कराधान का एक नया अधिकार मिलेगा और उनकी गणना के अनुसार, न्यूनतम दर 15 प्रतिशत यूरोपीय संघ के देशों के खजाने में प्रति वर्ष लगभग €50 बिलियन अतिरिक्त राजस्व देंगी जबकि यदि यह कर दर  25 प्रतिशत होती है तो इस कर से  लगभग 200 बिलियन प्राप्त होंगे।
 
            

