कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया….धान लुवाई के बेरा…..”सोमेश देवांगन”

साहित्य,

सुरूज के उगती बड़े बिहीनियां,
कनिहा मा खोचे टेव के हसियॉ।
कहे धान लुवे ला सब जाबोन रे,
कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया।।…

मूढ़ मा बोहे चलव पेज पसिया,
साग धरव बने हवय रमकेरिया।
कहे अपन अपन ले अघुवाव रे,
कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया।।…

मुच् मुच् करत हे भउजी भईया,
कहय बने लुवव धान के लुवईया।
लुवे भर धान सब ला बुलावत हे रे,
कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया।।…

बेटी दमांद के हावय गोहरइया,
पूछत हे अपन बहिनी ला पुसईया।
करपा उठाय बर चिल्लवात हे रे ,
कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया।।…

जांगर टोर कसे मेहनत करईया,
सोनहा धान ह हावय अब झरइया।
महतारी अपना मया बगरावत हे रे,
कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया।।…

साल भर खेत के तुम हव रखईयां,
पार मा लगायेव तुमा अउ रखिया।
ये बरी बनाय बर तुक तुकाये हव रे,
कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया।।…

गाँव के देवी देवता ला सुमरईया,
जय होवय कहेव अन्नपूर्णा मईया।
ये दे अपन परसाद ला बाटत हे रे,
कहय माटी के बेटा भुइयां के कमईया।।

-:सोमेश देवांगन

 

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