भोपाल
प्रदेश में अब केंद्र सरकार और उसके उपक्रमों के लिए किसी अधोसंरचना कार्य और परियोजना के लिए आपसी सहमति से किसानों, भूमिस्वामियों की जमीन का अधिग्रहण करने पर राज्य सरकार प्रशासनिक व्यय की राशि वसूलेगी। यह प्रशासनिक व्यय जमीन के कुल रकबे का कलेक्टर गाइडलाइन में तय कुल बाजार मूल्य का एक प्रतिशत होगा। इसमें भूमि के अलावा मकान, पेड़ और अन्य अचल परिसंपत्तियों की कीमत का आंकलन भी बाजार मूल्य में किया जाएगा। ऐसे में प्रदेश सरकार के खजाने में अब जमीन अधिग्रहण से भी करोड़ों की राशि जमा होगी।
केंद्र सरकार और उसके उपक्रमों रेलवे, बीएसएनएल, पावरग्रिड, एनटीपीसी, एनएचएआई समेत अन्य के द्वारा विकास कार्यों के मद्देनजर प्रदेश सरकार के माध्यम से जमीन का अधिग्रहण कराया जाता है। इस जमीन का अधिग्रहण करने के बदले अब तक राज्य सरकार कोई शुल्क केंद्र व राज्य सरकार या उसके किसी उपक्रम से नहीं लेती थी लेकिन अब सरकार ने तय किया है कि इसके लिए संबंधित एजेंसी से प्रशासनिक व्यय के नाम पर राशि वसूली जाएगी।
चूंकि राज्य सरकार या उसके किसी उपक्रम के द्वारा आपसी सहमति से भूमि क्रय नीति 2014 के निर्देश के अंतर्गत प्रशासनिक व्यय के रूप में वसूली जाने वाली राशि राज्य सरकार के ही खाते में आनी है, इसलिए नियमों में किए गए संशोधन में राज्य सरकार से प्रशासनिक व्यय वसूली का उल्लेख नहीं है लेकिन केंद्र सरकार और उसके उपक्रमों के लिए राशि वसूली के लिए राजस्व विभाग ने नोटिफिकेशन कर दिया है। इसमें कहा गया है कि विभाग, उपक्रम सर्वप्रथम अधोसंरचना, परियोजना के लिए क्रय की जाने वाली भूमि की न्यूनतम आवश्यकता का आंकलन कर निजी भू धारक की क्रय की जाने वाली भूमि चिन्हांकित करेगा। इशके बाद आवश्यकता के मुताबिक भूमि क्रय करने के लिए विभाग/उपक्रम का प्राधिकारी कलेक्टर को आवेदन प्रस्तुत करेगा। केंद्र सरकार के विभाग/उपक्रम के मामले में नीति के अंतर्गत कार्यवाही के लिए भूमि या भूखंड तथा उस पर स्थित अचल परिसंपत्तियों के कुल बाजार मूल्य का एक प्रतिशत प्रशासनिक व्यय लिया जाएगा।
अब तक राज्य सरकार द्वारा आपसी सहमति से भूमि क्रय नीति के अंतर्गत राज्य सरकार के कामों और परियोजनाओं के लिए ही अधिग्रहण किया जाता था लेकिन अब केंद्र सरकार की निर्माण और परियोजनाओं के मामले में भी आपसी सहमति से भूमि क्रय नीति के अंतर्गत अधिग्रहण की कार्यवाही की जा सकेगी। इस व्यवस्था को इसलिए लागू किया गया है क्योंकि भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम 2013 के अंतर्गत इस प्रक्रिया का पालन करने में तीन से चार वर्ष तक का समय लग जाता है। ऐसे में परियोजनाओं और योजनाओं का काम लेट होता है। केंद्र सरकार को इस व्यवस्था में जोड़ने के लिए राज्य सरकार ने अब परिपत्र की कंडिकाओं में राज्य शासन के साथ केंद्र शासन और राज्य सरकार के साथ केंद्र सरकार शब्द जोड़ दिए हैं। इससे अब केंद्र सरकार और उसके उपक्रमों को भी आपसी सहमति से भूमि क्रय नीति के अंतर्गत जमीन दी जा सकेगी।














