ऋतुराज फिर आया मन को लुभाता फूल खिले मनभावन – अजय जैन ‘विकल्प’

  1. साहित्य ।। अजय जैन ‘विकल्प। 

ऋतुराज

फिर आया

मन को लुभाता

फूल खिले

मनभावन।

 

मन

अपना झूमे

लपक लूँ ख़ुशी

छूटे नहीं

साथ।

प्रेम

हास-उल्लास

हर कोई गुलज़ार

मौसम हसीं

मनमोहन।

यादें

खजाना खुला

स्मृति ढेर सारी

हमराह कौन ?

आज।

नवयौवन

खिला चेहरा

वसंत की बयार

उड़ना चाहे

प्यार।

लुभाती

तितलियाँ रंगीन

प्रकृति की चित्रकारी

बड़ी हसीन

मनमोहिनी।

धरा

महक उठी

ओढ़ी पीली चादर

किसान चहके

जनउत्सव।

 

कोयल

बनी कोकिला

पंछी झूमे डाल

करें सुस्वागतम

सबका।

 

अभिलाषा

माँ शारदे

कृपा बनी रहे

वर मिलें

अनेक।

 

बाँसुरी

मन मोहती

छिड़ी सुरीली तान

इठलाए गोरिया

चहके।