आरी तुतारी / कुलदीप शुक्ला
छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र 1 व 2 दिसंबर को हुआ जो सविंधान की सारी मर्यादा को लांघ गया जो दूर और देर तक गूंजती रही। क्या ये विशेष सत्र था भी की नहीं ये लोगों को उलझन डाल दिया है। यह सत्र विशेष है या आम है । होता तो यह कि विशेष सत्र में विशेष विषय पर चर्चा होता है। विशेष सत्र के ऐसे कई उदाहरण है।
वर्तमान में विशेष सत्र आरक्षण के मुद्दे को लेकर बुलाया गया था, लेकिन जब कार्य सूची में आरक्षण के साथ अनुपूरक बजट एवं विनियोग विधेयक भी विषय था। विधानसभा सत्र के दूसरे दिन भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि “लोकसभा, राज्यसभा से लेकर विधानसभा का इतिहास उठाकर देख लें, कभी ऐसा देखने में नहीं आया कि विशेष सत्र में विनियोग विधेयक लाया गया हो।“
इस विषय पर विधानसभा नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने सदन में सवाल उठाया कि “5 दिसंबर को भानुप्रतापुर उप चुनाव है। क्या विशेष सत्र बुलाने चुनाव आयोग से विचार विमर्श किया गया ?” विशेष सत्र के दूसरे दिन सदन के अंदर जो कुछ हुआ वो सविंधान की सारी मर्यादा को लांघ गया। नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिव कुमार डहरिया एवं वरिष्ठ भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल एक दूसरे के खिलाफ़ इस तरह आक्रामक हो गए थे कि लगने लगा पता नहीं अगले पल क्या कुछ हो जाए !
विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने स्थिति को देखते हुए सदन की कार्यवाही दस मिनट के लिए स्थगित कर दी, तब भी माहौल शांत नहीं हुआ।
गर्भ गृह में शिव डहरिया व भाजपा विधायक अजय चंद्राकर तो आपस में धक्का मुक्की हो गए। नारायण चंदेल व अन्य कुछ विधायकों ने बीच बचाव किया। फिर इन तीनों नेताओं ने सदन के बाहर आकर मीडिया के सामने जो कुछ कहा वह कहने वाला अंदाज़ और भी ज़्यादा आक्रामक था।
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद 22 साल के इतिहास में विधानसभा के भीतर पहली बार ऐसी उग्रता देखने को मिली जो कि सविंधान की सारी मर्यादा को भंग किया गया ।
जब देश और राज्य के जन प्रतिनिधि ही सविंधान की सारी मर्यादा को भंग करेंगे तो जनता किस विश्वाश करेंगी।
ऐसे तो इन सब के लिए न्यायापालिका हो या कार्यपालिका का उलघन से इनको क्या ?
अपनी सत्ता चलता है तो सब जायज है !
अब भी समय है जाग जाओ !
हंटर की मार हो या प्रजा की मार दोनों में दर्द बा
एकरा के दरद अबड़ दिन ले रहल बा
मार्ग में आजाओ नहीं तो मार्ग पर ला देगी जनता…..