मानवता के उच्च शिखर पर पहुंचने के लिए अपने द्वारा प्रतिदिन किए गए कर्मों का आत्म निरीक्षण कर, अपने कर्मों में क्रमशः संशोधन, सुधार करते हुए आगे बढ़ना। अपने कर्मों के शुद्धिकरण द्वारा अपने आचरण का शुद्धिकरण करना ही मानवता की पराकाष्ठा है। हम एक अच्छे मानव तभी बन सकते हैं जब हम प्रतिदिन अपने द्वारा किए गए कर्मों का निरीक्षण व परीक्षण करें व उस में हुई गलतियों का दिन प्रतिदिन बिना किसी भेदभाव के मानवता और सही गलत के आधार पर सुधार करें। उन्हें दोहराएं नहीं, उद्देश्य अच्छाई और दूसरों की भलाई ईमानदारी परोपकार, समयनिष्टता, जिसका महत्व व्यक्ति के आचरण को वा सोच को परिशिष्ट वा शुद्ध बनाता है, इसीलिए कबीरदास जी कहते हैं कि समय का सदैव सदुपयोग करो समय की कीमत को पहचानो समय किसी के लिए रुकता नहीं है तुम्हारी उन्नति और तुम्हारा आचरण समय के सदुपयोग पर ही निर्भर है, तुम्हें प्राप्त कार्य और दिया हुआ कार्य वह अपना कर्तव्य समझकर करो तभी वह फलित होगा, मन में यह सोच नहीं होना चाहिए कि हम तो नौकर हैं, हमारा क्या अपना समय पास कर लेते हैं, और अपनी रोजी पका लेते हैं, यह धारणा स्वयं के आचरण और स्वयं की बर्बादी है, तुम्हारे समय के सदुपयोग पर ही देश की उन्नति व समाज की उन्नति निर्भर है, वा तुम्हारे स्वयं की उन्नति भी समय का सदुपयोग करने पर निर्भर है, जो तुम्हें ना तो दिखाई देती है, और ना ही समझ में आती है, लेकिन इसका असर और फारुख आपके आचरण और भविष्य पर पड़ता है, इसीलिए सदैव इमानदारी से समय का सदुपयोग करते हुए अपने कार्य को संपादित करो, समय के सदुपयोग के लिए- कबीरदास जी कहते हैं कि- काल करे सो आज कर आज करे सो अब। पल में प्रलय होएगी बहुरि करेगा कब।। व्यक्ति की दिनचर्या में वह भी आजीविका से जुड़ी दिनचर्या में समयनिष्टता का महत्वपूर्ण स्थान व योगदान है, अपने कर्तव्य की शुरुआत समय से करना व समय पर समाप्त करना आपके आचरण का एक सद्गुण वह आपके जीविकोपार्जन का एक महान उत्कृष्ट कर्तव्य है। हमें अपने आचरण और कर्तव्यों का प्रतिदिन आत्मनिरीक्षण करना चाहिए और अपने कर्मों में कदम दर कदम ऊपर की ओर आगे की ओर बढ़ाते जाना चाहिए, तभी हम जीवन के शिखर तक पहुंचने में कामयाब होंगे सदैव अपने आचरण में कार्य के प्रति लगन, ईमानदारी, समय का सदुपयोग धोखा और छल कपट से दूर अपने कार्य को मूर्त रूप देने का प्रयास करना चाहिए, अपने जीवन में अपने विवेक को इतना जागृत रखो कि झूठी तारीफ और वास्तविक तारीफ में अंतर को पहचान सकूं झूठी तारीफ सुनकर खुश हो ना तुम्हें और तुम्हारे आश्रम को बर्बादी की ओर ले जाएगा वही सच्ची आलोचना तुम्हारे आचरण में उत्तरोत्तर सुधार लाते जाएगा, इस दुनिया में जितनी भी अच्छी बातें हैं अच्छे कदम हैं सब ज्ञान की पुस्तकों शिक्षा और प्रवचनों के माध्यम से ही कहीं जा चुकी हैं हमें केवल उनको अपने आचरण में उतारना है उन अच्छी बातों पर अमल करना है तभी हम सफलता की ओर बढ़ेंगे, हमें सदैव अच्छाई की ओर बढ़ने के लिए यकीन और उम्मीद बनाए रखना चाहिए यही दोनों ऐसे लक्ष्य हैं जो आपकी सफलता को आसान और संभव बनाने में आपकी मदद करते हैं सीख और उपदेश सदैव अपने आचरण से देना चाहिए ना की वाणी से जरूरत से ज्यादा आधुनिकता की ओर पढ़ने के लिए उल्टे सीधे कर्मों को अपने आचरण में कदापि नहीं उतारना चाहिए आधुनिकता के वास्तविक अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए भौतिकता की अंधी दौड़ में अपने आचरण की बर्बादी अपनी शिक्षा के महत्व की बर्बादी अपने जीवन के सकारात्मक उद्देश्य मैं भटकाव लाती है, भौतिकता की ओर बहुत सोच विचार कर कदम उठाने की जरूरत है जीवन में सदैव अपने चेहरे पर मुस्कुराहट लाने की कोशिश करना चाहिए स्वयं खुश रहो और दूसरों को भी खुश रखो दूसरों की परेशानियों और कठिनाइयों पर सहानुभूति पूर्वक चिंतन मनन करना चाहिए उनका मजाक कभी भी नहीं उड़ाना चाहिए हो सके तो उन्हें उनकी परेशानियों के निदान के लिए सकारात्मक हल की सलाह देकर उनका हौसला बढ़ाना चाहिए। यही हमारी शिक्षा सोच समझ और संस्कार के परिणाम हैं जिनका हमें अपने जीवन में सदैव सदुपयोग करना चाहिए। बुराई की आदत है कि वह कभी हार मानती नहीं है, और अच्छाई की खासियत है कि वह कभी हारती नहीं है, किसी भूखे को रोटी खिलाना बहुत बड़े पुण्य का काम है लेकिन उससे बड़े पुण्य का काम यह है कि उसे रोटी कमाने का तरीका सिखा दो। लोग कहते हैं कि व्यक्ति को अमीर होना चाहिए लेकिन मैं कहता हूं, कि व्यक्ति में जमीर होना चाहिए। हो सके तो जिंदगी में सुकून ढूंढिए। ख्वाहिशें है तो अनंत है जिंदगी भर खत्म नहीं होंगी।
के. के. पाठक डगनिया रायपुर