कहीं आदमी आत्मबल खो रहा, किसी का ठिकाना सबल हो रहा…”बल्लू-बल”

साहित्य,

कहीं आदमी आत्मबल खो रहा,
किसी का ठिकाना सबल हो रहा।
भरोसा जिन्हें है ख़ुदा पे यहाँ,
वही आजकल तो सफल हो रहा।
पहाड़ों के शाही परिंदों का घर,
गुबारों में सनकर अज़ल हो रहा।
खड़ा था जहाँ वो वहाँ ही रहा,
अगल हो रहा ना बगल हो रहा।
जिसे ज़िन्दगी की अकड़ हो गई,
नहीं यार ‘बल’ आजकल वो रहा।

-:बल्लू-बल

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