ई-फार्मेसी पर सरकार द्वारा कोई कारवाई न करने पर कैट ने श्री मांडविया से नाराज़गी जताई

रायपुर,

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी, चेयरमेन मगेलाल मालू, अमर गिदवानी, प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी, कार्यकारी अध्यक्ष विक्रम सिंहदेव, परमानन्द जैन, वाशु माखीजा, महामंत्री सुरिन्द्रर सिंह, कार्यकारी महामंत्री भरत जैन, कोषाध्यक्ष अजय अग्रवाल एवं मीड़िया प्रभारी संजय चौंबे ने बताया कि देश में अनेक बड़े विदेशी और देसी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा की जा रही ऑनलाइन फ़ार्मेसी द्वारा ड्रग एवं कॉस्मैटिक क़ानून की लगातार अवहेलना करते हुए आपूर्ति की जा रही दवाइयों ने न केवल देश के करोड़ों थोक और खुदरा केमिस्टों के व्यापार को बुरी तरह प्रभावित किया है बल्कि उपभोक्ता विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण भारतीय उपभोक्ताओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य को खतरे में डालते जा रहे हैं। इस मुद्दे पर कन्फ़ेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री  मनसुख मंडाविया से इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर बार बार याद दिलाने के बावजूद कोई कारवाई न करने पर बेहद नाराज़गी जताते हुए अफ़सोस ज़ाहिर किया है । कैट ने उनसे इस मुद्दे पर गठित मंत्रियों के समूह जिसके अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे, की सिफ़ारिशों को तुरंत सार्वजनिक करने का भी आग्रह किया है। इस बीच कैट का एक प्रतिनिधिमंडल जल्द ही स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल से मुलाकात करेगा और उन्हें देश में ई-फार्मेसियों के नियम एवं क़ानून के स्पष्ट उल्लंघन के बारे में अवगत कराएगा।

कैट के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अमर पारवानी एवं प्रदेश अध्यक्ष जितेन्द्र दोशी ने कहा की देश में दवाओं का निर्माण, आयात, बिक्री और वितरण औषधि और प्रसाधन सामग्री क़ानून और नियमों द्वारा नियंत्रित होता है। इस अधिनियम के नियम कड़े हैं और न केवल प्रत्येक आयातक, निर्माता, विक्रेता या दवाओं के वितरक के लिए एक वैध लाइसेंस होना अनिवार्य है, बल्कि यह भी अनिवार्य है कि सभी दवाओं को केवल एक पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा ही दिया जाए। हालांकि, ई-फार्मेसी मार्केटप्लेस हमारे देश के कानून की खामियों का दुरुपयोग कर रहे हैं और बिना डॉक्टर के पर्चे के दवाएं बेचकर और पंजीकृत फार्मासिस्ट के बिना दवाओं का वितरण करके निर्दोष भारतीय उपभोक्ताओं के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ई-फार्मेसी, टाटा 1एमजी, नेटमेड्स और अमेज़ॅन फार्मेसी जैसे ई-फार्मेसी मार्केटप्लेस इन घोर उल्लंघनों में सबसे आगे हैं और इन के मनमाने रवैये पर जल्द अंकुश लगना चाहिए।

पारवानी और दोशी ने कहा कि सरकार को केवल उन्हीं ई-फार्मेसियों को अनुमति देनी चाहिए जिनके पास ऐसी दवाएं हैं जिन्हें ई-फार्मेसी पर बेचने की अनुमति है और इसके अतिरिक्त सभी शेष ई-फार्मेसी को बंद करने के निर्देश देने चाहिए। साथ ही, किसी भी व्यक्ति को ई-फार्मेसी इकाई और उपभोक्ता के बीच मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिए वेब पोर्टल स्थापित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए, यदि कोई नकली, मिलावटी या गलत ब्रांड वाली दवा उपभोक्ता तक पहुंचाई जाती है, तो फार्म इजी या नेटमेड जैसा बाज़ार हमेशा मध्यस्थ की दलील देकर छिप जाएगा जो कि वर्तमान ई-कॉमर्स व्यापार में भी एक व्यापक कदाचार है। एक इकाई जो पूरी तरह से इन्वेंट्री का मालिक है, उसे सभी परिस्थितियों में उत्तरदायी होना होगा।

पारवानी और दोशी ने सरकार से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि सभी दवाएं केवल पंजीकृत खुदरा फार्मेसी से वितरित की जाए हैं क्योंकि केवल एक पंजीकृत फार्मासिस्ट द्वारा उचित सत्यापन प्रक्रिया का पालन करने के बाद यह सुनिश्चित किया जाता है कि उपभोक्ताओं को ठीक वही मिले जो वे ऑर्डर करते हैं। दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि सरकार को न्यूनतम 1,00,000 रुपये का जुर्माना लगाना चाहिए जो कि 10,00,000 रुपये तक हो सकता है ताकि फार्मेसी, नेटमेड्स, अमेज़ॅन फार्मेसी, टाटा 1 एमजी जैसे उल्लंघनकर्ताओं को उपयुक्त रूप से दंडित किया जा सके।

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