रायपुर// नारायणी साहित्य अकादमी एवं अंचल कार्यालय, यूको बैंक के संयुक्त तत्वावधान में ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के समन्वयक डॉ मृणालिका ओझा एवं सुभाष चंद्र साह ने प्रतिभागी कवियों का स्वागत किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में श्रीमती सुरभि चटर्जी, वरिष्ठ प्रबंधक ने गणेश वंदना प्रस्तुत की।
काव्य गोष्ठी का आरंभ करते हुए कोरबा के डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग ने रंगों की बात करते हुए कहा कि ‘ऐसे रंग देंगे हम, धोन पाओगे तुम, फिर किसी और के हो न पाओगे तुम’, डॉ मृणालिका ओझा ने नदी पर केन्द्रित अपनी रचना में पर्यावरण पर भी चिंता जाहिर की-
‘वर्ष दर वर्ष कंकाल सी होती गई थी,
अब तो ज़मीन पर नहीं,
सिर्फ नक़्शे में उभरने लगी थी,
सिसकियाँ भी नहीं ली
न दुख ही कहा किसी से
बस रेत पर अपना अवशेष छोड़ गई थी,
मेरे शहर की नदी’।
‘होली अवसर दे रही, तोड़ो सारे बैर, रंग प्यार के बांट कर मांगों सब की खैर’ – राजेश जैन राही ने इन पंक्तियों से सबके लिए दुआ मांगते हुए अपनी अन्य रचना भी प्रस्तुत की :
अभी है छांव का मौसम, अभी शीतल हवाएं हैं
लगी है धूप कब किसको समझती बस दिशाएं हैं
नये इस दौर ने देखे महल कुटिया नहीं देखी
बड़ी तनख्वाह है लेकिन अभी दुनिया नहीं देखी।
अशोक शर्मा, महासमुन्द ने
“हाथ डाले हाथ मैं चलता रहा
फ़ासला भी दरमियां बढ़ता रहा।
गिर गया, फ़िर उठ गया, बढ़ता रहा
रास्ता तुझसे अजब रिश्ता रहा”
गजल से वाह वाही बटोरी।
शायर सुख़नवर हुसैन ने जीने का अंदाज बताया :-
“बहुत बुरा है ज़माना ये मानता हूं मगर,
कोई ज़रूरी है हर आदमी बुरा निकले।
सताए लाख ज़माना दुआ देते रहो
किसी के वास्ते हरगिज़ न बददुआ निकले।”
‘हर बार तुम्हें क्या समझाएं, होली के त्यौहार, तुझ बिन बलमा भाए न होली का त्यौहार’ कहते हुए कुमार जगदलवी ने मस्ती का आनंद दिया। मुकेश गुप्ता ने जीवन का एक नजरिया ‘खुल गई जो आंखें तुम्हारी, सच सामने आ जाएगा’ शब्दों में प्रस्तुत किया। दामु वी जगनमोहन ने ‘वाक्या रेडीमेड कपड़े की दुकान का है, सुनने में फर्क सिर्फ कान का है’ व्यंग्य प्रस्तुत किया। आलोक शुक्ला ने ‘तलवार की धार भी क़लम को सलाम करती है’ कहते हुए कविता की ताकत को रेखांकित किया। कार्यक्रम का संचालन करते हुए राजेन्द्र ओझा ने अपने उद्गार इन पंक्तियों में दर्शाए – ‘दीपावली पर दीप जलाते, गुलाल उड़ाये होली में, त्यौहारों का देश हमारा, नेह टपकता बोली में।’
टी एन बर्णवाल, मुख्य प्रबंधक, यूको बैंक ने प्रतिभागी कवियों का स्वागत – सम्मान करते हुए कार्यक्रम की सफलता की शुभकामनाएं प्रदान की।
मुख्य प्रबंधक, राजभाषा सुभाष चंद्र साह ने ‘मन हल्का हो जाता है, जब दर्द आंसू बन बह जाते हैं, फिर भी मुस्कानों में दर्द छिपा कर जीना कितना मुश्किल है’ पंक्तियों से अपनी भावना प्रकट करते हुए समस्त प्रतिभागी कवियों एवं बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों के प्रति आभार व्यक्त किया।