राम जी पर मन मोहक “मनहरण घनाक्षरी “….
1.
रागिनी व राग राम, चित्त का चिराग़ राम,
पुण्य का प्रयाग राम, राम चारों धाम है।
मीत हो या प्रीत राम, जीत में अजीत राम,
जीत का है गीत राम, राम शक्ति नाम है।
शिष्ट में प्रकृष्ट राम, क्लिष्ट में अभीष्ट राम,
इष्ट में विशिष्ट राम, राम अभिराम है।
शत्रुओं का मित्र राम, है बड़ा विचित्र राम,
इत्र सा चरित्र राम…..राम को प्रणाम है।।
2.
है अनूप शिल्प राम, अल्प का विकल्प राम,
कल्प का प्रकल्प राम, राम आठों याम है।
आस्था का अर्श राम, हर्ष का विमर्श राम,
प्रकृति प्रकर्ष राम, राम ही ललाम है।
आरती-अजान राम, एक संविधान राम,
सूर्य के समान राम, राम अविराम है।
वासना का अंत राम, साधना में संत राम,
भावना अनंत राम, राम को प्रणाम है।।
हीरामणी वैष्णव
बालकोनगर (कोरबा)